प्रमुख सचिव की कुर्सी छीनना “Political Revenge or Fire of Scam”
आनन-फानन में शासकीय अवकाश के दिन शनिवार को उद्यानिकी विभाग की प्रमुख सचिव कल्पना श्रीवास्तव और आयुक्त मनोज अग्रवाल को पद से हटाया जाना सचिवालय से बाहर अब सियासी सुर्खियाँ बन रहा है।
जिस आक्त की जाँच की जा ही थी उसी के तबादला आदेश में खुद घोटाले की जाँचकर्ता विभाग की प्रमुख सचिव को भी हटा दिया जाना खासी चर्चा का विषय है।
कल्पना श्रीवास्तव को हटाए जाने के बाद उन्हें नई नियुक्ति नहीं दी गई। फिलहाल वे मध्यप्रदेश सरकार की प्रमुख सचिव तो हैं लेकिन वे कल से कहाँ बैठेंगी, क्या काम करेंगी यह सरकार ने तय नहीं किया है। इस तरह का तबादला किया जाना और फिर कोई जिम्मेदारी नहीं दी जाना लूप लाईन के नज़रिए से रेयरेस्ट ऑफ द रेयर केटेगिरी में माना जाता है।
राजनीतिक गलियारों में इस बात को लेकर आश्चर्य व्यक्त किया जा रहा है कि ऐसा क्या जरूरी था कि उद्यानिकी विभाग के दो वरिष्ठ अधिकारियों को एक झटके में हटा दिया गया। इसके लिए विशेष रूप से मंत्रालय खोलकर आदेश जारी किए गए। यह काम अगले वर्किंग डे सोमवार को भी हो सकता था।
आखिर सरकार की ऐसी क्या मजबूरी थी कि उसे इतनी जल्दबाजी में इतना बड़ा कदम उठाना पड़ा। आखिर कल्पना श्रीवास्तव को किस बात की सजा मिली है यह भी सोचनीय विषय है क्योंकि उन्हें किसी प्रकार का कोई काम नहीं दिया गया है। कल्पना श्रीवास्तव की छवि परिणाम मूलक अधिकारी के रूप में रही है। सरकार ने जब जब जो जो काम सौंपा वह उन्होंने बेहतर तरीके से अंजाम दिया है।
क्या है प्याज घोटाला-
उद्यानिकी कर्मचारी संघ के प्रदेश अध्यक्ष महेश प्रताप सिंह बुंदेला ने सितंबर महीने में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को पत्र लिखकर उद्यानिकी विभाग के आयुक्त मनोज अग्रवाल को हटाने मांग करते हुए प्याज घोटाले संबंधी शिकायत की थी। दरअसल उद्यानिकी विभाग ने राष्ट्रीय बागवानी मिशन (एनएचएम) में किसानों के लिए प्याज की खरीदी की थी। 2 करोड़ रुपए से 90 क्विंटल प्याज की खरीदी की गई थी। खरीदी बिना टेन्डर एक निजी संस्था से की गई। प्याज का बीज 2300 रुपए प्रति क्विंटल में खरीदा गया था।
जबकि सब्जी बीज बेचने की दर 1100 रुपए प्रति क्विंटल है। सवाल यह भी है कि योजना का क्रियान्वयन एमपी एग्रो के माध्यम से होना था तो फिर दूसरी संस्थाओं से खरीदी क्यों की गई। शिकायतों के बाद प्रमुख सचिव उद्यानकी कल्पना श्रीवास्तव ने तत्काल एक्शन लिया। 18 अक्टूबर को एक आदेश जारी कर खरीदी के भुगतान पर रोक लगा दी और मनोज अग्रवाल से स्पष्टीकरण मांगा। बाद में मामला ईओडब्ल्यू के पास चला गया।
ईओडबल्यू मनोज अग्रवाल के खिलाफ जाँच कर रहा है। शनिवार की शाम ताबडतोड़ मनोज अग्रवाल को हटाने और उनकी प्रतिनियुक्ति समाप्त कर वन विभाग को उनकी सेवाएं लौटाने का आदेश जारी किया गया। मजेदार बात यह है कि इसी आदेश के साथ कल्पना श्रीवास्तव को भी हटा दिया गया।
सवाल तो यह भी है कि शिवराज सरकार ने आखिरकार मनोज अग्रवाल जैसे दागी अफसर को प्रतिनियुक्ति देकर ऐसे महत्वपूर्ण विभाग का आयुक्त क्यों बनाया। मनोज अग्रवाल पर पहले भी भ्रष्टाचार के मामले दर्ज हैं।
सीहोर में डीएफओ रहते हुए उनके खिलाफ लोकायुक्त ने भ्रष्टाचार का मामला दर्ज किया था और उनके खिलाफ आईपीसी की धारा 420, 468, 471, 120 (बी) और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा 7,13 (a)1, 13(b) के तहत मामला दर्ज किया गया था। सामान्य प्रशासन विभाग के नियमों के अनुसार इस तरह के गंभीर मामलों के आरोपी को किसी अन्य विभाग में प्रतिनियुक्ति पर नहीं भेजा जाना चाहिए था।
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कल्पना श्रीवास्तव को हटाने के आदेश से नाराज कांग्रेसी नेता और राज्यसभा सदस्य विवेक तन्खा ने शनिवार देर शाम ही एक ट्वीट किया जिसमें उन्होंने सरकार की नियत पर सवाल किए। ट्वीट में लिखा है- “ अजब और गजब मध्यप्रदेश @ChouhanShivraj का। जिस प्रमुख सचिव ने प्याज घोटाला उजागर दिया, उसी को विभाग से हटा दिया…गजब है। शिवराज जी आप क्या संदेश देना चाहते हैं, वो अब दिख रहा है। अब चुप रहने का समय भी खत्म हो रहा है।” तन्खा ने कमलनाथ और दिग्विजय सिंह को भी टैग किया है।
प्याज घोटाले में जाँच का रुख किस तरफ बदल रहा है फिलहाल यह साफ नहीं है.