Solar Eclipse: अपनी भाषा अपना विज्ञान- सूर्य ग्रहण
देवासुर संग्राम में सागर मंथन के बाद जब अमृत-कलश की छीना झपटी हुई और अंत में देवता लोग एक एक बूंद पी रहे थे, दो असुर, राहु और केतु वेष बदल कर समूह में घुस आये, अमृत छक लिया, अमरत्व मिल गया, लेकिन आदत से बाज नहीं आते थे, यदा कदा, मौका मिलते ही सूरज या चन्द्रमा का हड़पने की कोशिश करते।
सूर्य और चन्द्र ग्रहणों की भविष्य वाणी का विज्ञान चीन, भारत (आर्यभट्ट), यूनान और मेसोपोटामिया के पंचांगों में हजारों सालों से धीरे धीरे विकसित होता रहा है।लेकिन अंध विश्वासों और मिथ्या धारणाओं की पकड़ अभी भी बनी हुई है, कुछ देशों में, यदि ग्रहण के बारे में पहले से पता हो तो राजा को छिपा देते थे, एक नकली टेम्परेरी राजा को सिंहासन पर बैठा देते थे। यदि अपशकुन के रूप में राजा की मौत लिखी हो तो असली राजा बच जावें। चीन के दो राज-ज्योतिषियो को मृत्युदंड मिला था जब वे ग्रहण की भविष्यवाणी नहीं कर पाये थे।
ज्योतिष की जन्मकुंडली मे इन्हें अशुभ ग्रह मानते है। मेरा इसमें कोई विश्वास नहीं है। इसके जैसी ढेरों कथाएं दुनिया की सभी सभ्यताओं में प्रचलित रही है. अन्तर है तो सिर्फ इतना कि वहां के लोग आगे बढ़ गये है, इन Myths को मनोरंजक किस्सों के रूप में पढ़ सुनकर हंस लेते हैं। उन्होने विज्ञान को अपना लिया है।
आज का विज्ञान इतना उन्नत है कि भूत काल से लेकर भविष्य काल के अनेक Eclipse के बारे बता सकता है तारीख, समय और अवधि [घण्टे – मिनिट – सेकण्ड], स्थान [अक्षांश – देशांश], धरती के नक्शे पर उसका पथ — एक पट्टी संकरी और गाढ़ी — पूर्ण ग्रहण का मार्ग — The path of Totality — मुश्किल से 100-200 किमी चौड़ी। दूसरी चौड़ी पट्टी जहां विभिन्न प्रतिशत वाले आंशिक ग्रहण दिखाई देंगे.
सूर्य ग्रहण ऐसी खगोलीय घटना है जिसे देखने और फोटो खींचने के लिये महंगे वैज्ञानिक टेलीस्कोप की या उच्च कोटि के कैमरों की या रात् में साफ काले आकाश की जरूरत नही होती। यह वह मंजर है जो एक आम नागरिक साधारण लेकिन प्रामाणिक सूर्य-चश्मे (sun-glasses) के साथ देख सकता है।
पूर्ण सूर्य ग्रहण का वैज्ञानिक महत्व खूब है। सबसे पहला तो यह कि आम लोगों के मन में वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देना। वैज्ञानिकों के लिये इसके दूसरे महत्व भी हैं।
18 अगस्त 1868 के Solar Eclipse में खगोलविद नार्मन लॉकीयर और पियरे जेनसन ने ढंके हुए सूरज की किनारी से प्रदीप्त होने वाले कोरोना (मुकुट) के प्रकाश का अध्ययन किया और एक नया तत्व [Element] खोज निकाला — हीलियम । मेंडलीफ की पीरियाडिक टेबल में हाइड्रोजन के बाद दूसरे नम्बर का तत्व। बहुत हल्का। ब्रम्हाण्ड में बहुलता से उपलब्ध। सूर्य की भट्टी का उत्पादन। सूर्य ऊर्जा कैसे पैदा करता है? हाइड्रोजन के दो परमाणुओं को अति उच्च तापमान और दबाव पर मिलाकर, संश्लेषित कर, Fusion करके, हीलियम का एक अणु बनाता है। हायड्रोजन बम में यही होता है। हीलियम नाम पड़ा यूनानी भाषा के शब्द Helios से जिसका अर्थ होता है सूर्य।
21 मई 1919 को फ्रैंक वाटसन डायसन और आर्थर स्टेनली एडिंगटन ने पूर्ण सूर्य ग्रहण के कुछ मिनिटों में वृहस्पति ग्रह के चन्द्रमाओं पर अपनी दूरबीन फोकस करी हुई थी। अलबर्ट आइन्सटाइन का सापेक्षता सिद्धान्त प्रकाशित हो चुका था। पेपर और पेन्सिल से लिखी गई गणितीय इबारतों से जन्में सिद्धान्त को प्रायोगिक प्रमाण की दरकार थी। आइन्सटाइन के अनुसार प्रकाश किरणे भारहीन नहीं होती। फोटान में पदार्थ होता है। गुरुत्वाकर्षण का असर पड़ता है। जरुरी नहीं कि प्रकाश सीधी रेखा में चले। और लो, देखो, Eclipse के दौरान बृहस्पति के उपग्रहों की गति और स्थिति में परिवर्तन पाया गया। साध्य उपपन्न हुआ।
NASA ने एक प्रोजेक्ट 2017 के सूर्यग्रहण के समय शुरु किया था। Eclipse Megamovie [ग्रहण – महा – फिल्म]। 8 अप्रैल 2024 के दिन इसे बड़े पैमाने पर आयोजित किया जावेगा। “नागरिक वैज्ञानिक” [Citizen scientist] का आव्हान किया जा रहा है कि एक तिपाई पर अच्छे DSLR कैमरे से सूर्य ग्रहण की फिल्म बनाइये और अपलोड करिये। लाखों नागरिक, हजारों स्थानों से, लाखों नजरों से, अलग अलग पलों में खींची गई मूवी को भेजेंगे। फिर वैज्ञानिकों का एक बड़ा दल, A.I. की मदद से विस्तृत अध्ययन करेगा।
धधकते हुए सूर्य से सिर्फ प्रकाश नहीं निकलता। उष्मा (गर्मी) भी निकलती है। इलेक्ट्रोमेगनेटिक स्पेक्ट्रम में दिखने वाले सात रंग और उनसे मिलकर बनने वाली सफेद रोशनी के अलावा और भी अनेक प्रकार की तरंगें और पार्टिकल [कण] निकलते हैं। सोलर-विन्ड (सूर्य-वायु) विस्तारित होती है। प्लाज्मा की लपटें करोड़ो मील तक हहराती है। अति शक्तिशाली चुम्बकीय प्रक्षेत्र गहराते है। सूरज के गोले के चारों ओर का प्रभामण्डल जटिल क्रियाओं की प्रयोगशाला होता है। इस कोरोना के अवयवों और क्रियाओं का अध्ययन हमें तमाम तारों की फिजिक्स और केमिस्ट्री के रहस्य बूझने में मदद करता है। सूर्य भी तो एक तारा ही है जो हमारे सबसे पास है।
सूर्यग्रहण के पूर्णत्व (Totality) के कुछ मिनिटों में Corona का अवलोकन और अध्ययन आसान हो जाता है। जो हुआ सो हुआ, उसके आकलन से आगे क्या होगा, इसके मॉडल बनाये जाते हैं। सत्यापन की कसौटी पर कसे जाते हैं।
जैसे धरती या अन्य ग्रहों के स्थानीय मौसम होते हैं वैसे ही सौर मण्डल या अंतरिक्ष के मौसम भी होते हैं। Space Weather । इसमें तापमान, हवा, बारिश, बर्फ आदि के स्थान पर नाना प्रकार के विकिरणों और चुम्बकीय शक्तियों में होने वाले परिवर्तनों को काल के लघुकालिक और दीर्घकालिक पैमानों पर मापा और अंकित किया जाता है। सौर मण्डल के मौसमी मिजाज का आमतौर पर हमारे दैनिक जीवन पर प्रत्यक्ष प्रभाव कम ही दिखता है। फिर भी कभी कभी असर आ सकते है। सूर्य में समय समय पर ऊर्जा के छोटे बड़े विस्फोट होते रहते हैं जिन्हें कोरोना की ज्वालाओ और आभाओं में चीन्हा जा सकता है — उनके पैटर्न को पहचाना जा सकता है, भविष्य के अनुमान लगाये जा सकते है। मनुष्य निर्मित उपग्रहों, संचार साधनों पर इनका असर कभी कभी पड़ सकता है।
*—————–*—————–*—————–*—————–*
वर्ष 1981-82 में इन्दौर में पड़े एक खग्रास (अपूर्ण) सूर्य ग्रहण की मुझे याद है। निपुण अपनी मां के गर्भ में था। नीरजा को मेडिकल कालेज की लाइब्रेरी से लेकर, वेस्पा (प्रिया) स्कूटर पर मैं चोइथराम अस्पताल के हमारे डाक्टर्स क्वार्टर्स तक लाया था। शहर में मानों कर्फ्यू लगा था। सारी सड़के सुनसान और शान्त थी। लोग डरे हुए थे। ग्रहण वाले सूर्य की किरणों को घातक मानते है। गर्भवती महिला को तो कतई घर से बाहर नहीं निकलना चाहिये। मंन्दिरों के पट बन्द कर देते है। खाना-पानी ढंक कर रखते हैं या बाद में ढोल देते हैं। पूजा-पाठ करते है। दान डेटेन हैं। अपशकुन मानते है। सूतक मानते हैं।
मुझे गुस्सा आता है, दुःख होता है। इतना बड़ा चमत्कार आकाश में हो रहा है। उसे देखो, निहारों, सराहो, कैमरे में सहेजों, उसके चित्र बनाओं, उसका विज्ञान पढ़ो, इतिहास भी पढ़ो, चर्चा करो, साझा करो। लेकिन नहीं, भारत की जनता दुबक कर छिप जाती है।
वैज्ञानिक चेतना की अलख जगाने की जरूरत है। दूसरे देशों के नागरिक कितने उत्साहित रहते है। देश के राजनेताओं, धर्म गुरुओं, प्रसिद्ध व्यक्तियों को जनशिक्षा की मुहिम चलानी चाहिये। ज्योतिष और राशिफल अंधविश्वाश है। मिध्याविज्ञान है। सूर्य या चन्द्रग्रहण से किसी व्यक्ति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
स्वाधीन भारत के इतिहास में दो पूर्ण सूर्यग्रहण कुछ ठीकठाक तरीके से रेकार्डेड है। भारतीय खगोलभौतिकी संस्थान की बेबसाइट पर पढ़ने को मिलता है कि 16 फरवरी 1980 के ग्रहण में पूर्णत्व का पथ कनार्टक, आंध प्रदेश और उड़ीसा से गुजरा था। 24 अक्टूबर 1995 को दीवाली के दिन राजस्थान, उत्तर-प्रदेश, बिहार और पश्चिमी बंगाल के ऊपर से चन्द्रमा की काली छाया की 200 मील चौड़ी पट्टी देखते ही देखते कुछ मिनिटों में गुजर गयी थी। Indian Institute of Astrophysics ने जगह जगह कैम्प लगाए थे, वैज्ञानिक अवलोकनों की व्यवस्था करी थी, आम जनता का आव्हान किया था। भारतीय वायुसेना के हवाई जहाज AN-32 में बैठ कर वैज्ञानिकों की एक टोली ने तेजगति से भागती हुई छाया का पीछा किया था। कलकत्ता के डायमण्ड हार्बर में हजारों लोगों की भीड़ जुटी थी।
भारतीय इतिहास में एक और खास तारीख है – 17 अक्टूबर 1762। फिर दीपावली की अमावस्या का दिन था। अफगानिस्तान से अहमदशाह अब्दाली ने अमृतसर पर धावा बोला था। सिख सेना भी तैयार थी। भीषण युद्ध जारी था। तथी अचानक आकाश में बिना बादलों के सूरज पूरा छिप गया। चारों ओर अंधकार छा गया। सेनाएं डर गई। अब्दाली ने सोचा कि अल्लाह किसी बात पर नाराज है। वह भाग खड़ा हुआ। जान बची। वरना शायद उस दिन मारा जाता।
सूर्य ग्रहण और चन्द्र ग्रहण की फिजिक्स स्कूली बच्चे पढ़ते है। जब धरती की छाया पूर्णिमा वाले चांद पर पड़ती है तो कुछ मिनिटों के लिये चन्द्रमा आंशिक या पूरा छिप जाता है। तब चन्द्र ग्रहण होता है। जब चन्द्रमा कुछ इस तरह से सूरज और पृथ्वी के बीच आ जाता है कि पूरा या अधूरा सूर्य छिप जावे तो Solar Eclipse कहलाता है। चन्द्रमा कितना छोटा है। फिर अपने से हजारों गुना बड़े सूरज को कैसे ढंक लेता है। इसलिये कि वह धरती के बहुत पास है जबकि सूरज उससे उतने हजार गुना दिन दूर है। एक तिनके की ओट से सीता माता भारीभरकम रावण को नजरों से छिपा लेती थी। सूर्यग्रहण सदैव अमावस्या को पड़ते है।
ये ग्रहण हर महिने क्यों नहीं होते? क्योंकि पृथ्वी, चन्द्रमा और सूर्य की गतियां [कक्षाए/orbit/axis] एक तल में नहीं होते । They are not in one plane. They are tilled in relation to one another. खगोलीय पिण्डों की घूमने की कक्षाओं का तल कभी कभी ‘सम’ की स्थिति में आता है, तब ये ग्रहण पड़ते है। ऐसा लगभग डेढ़ साल में एक बार होता है।
भारत की तो नहीं पता लेकिन यूरोप और अमेरिका में अनेक वैज्ञानिको, लेखकों और चित्रकारों ने सूरज के ग्रहण पर कलम या तूलिका चलाई है या कैमरे के साथ खेल खेले हैं। ये दृश्य और उसकी अनुभूतियां ऐसी हैं कि किसी भी संवेदनशील, साहित्यिक व्यक्ति को विचलित कर दें, प्रोत्साहित करदें, ध्यान मग्न कर दें। सृजनशीलता को बढ़ावा दें।
चन्द्रमा की छाया सूरज को एक कोने से ढंकना शुरु करती है। और धीरे धीरे बढ़ती जाती है। ऐसा लगता है मानों सूरज की पीली टिकिया का एक कोना किसी ने बड़ी सफाई से कुतर लिया है। फिर सूरज की रोटी छोटी होती जाती है। पूर्ण ग्रहण के कुछ मिनिट पहले सूरज की पतली सी चमकीली फांक, दूज के चांद जैसी दिखती है। 75% से अधिक सुरज ढँक चुकने पर आकाश का उजाला कम लगने लगता है। ठंडक बढ़ती है। हवा का बहाव थोड़ा बढ़ता है। वातावरण में कुछ नीरवता आने लगती है।
पूर्ण ग्रहण से थोड़ा सा कम एक और प्रकार होता है – “annular”-“चक्रीय” । इस दिन चंद्रमा कुछ छोटा पड़ जाता है , सुरज की परिधि झाँकती रहती है , मानो आग का गोला हो या विष्णु भगवान ने उंगली पर अग्निचक्र धरण किया हुआ हो
यह सब मैंने और नीरजा ने 1981 के ग्रहण के दौरान इन्दौर की खाली सकड़ों पर देखा था। लेकिन Total Solace Eclipse आज तक नहीं देखा। अनुभवी लोग कहते हैं कि जरूर देखना चाहिये। Once in a lifetime experience.
*—————–*—————–*—————–*—————–*
भारत ने कुछ माह पूर्व ‘आदित्य’ नामक अंतरिक्ष यान सूर्य की दिशा में भेजा था। दुनिया भर के खगोलविद अनेक दशकों से ऐसा कर रहे हैं। फिर भी सूर्यग्रहण एक ऐसा अवसर है जब धरती पर रह कर भी बहुत सारी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। हनुमान जी की तरह उसके पास जाने की जरूरत नहीं।
सूर्यग्रहण जिस दिन होगा, होगा, वैज्ञानिकों के अनेक दल, उन्नत दूरबीनों और सुपरकम्प्यूटर्स (A.I.) की मदद से ग्रहण वाले दिन कोरोना के चित्रों और उसकी विशिष्ताओं की भविष्यवाणी के अभी से मॉडल बना रहे हैं कि आठ अप्रेल को सूरज की परिधि वाला प्रभामंडल कैसा कैसा दिखेगा। नाना प्रकार के माड᳝ल्स और उनकी गणनाओं के फार्मूलों और समीकरण में से कौनसा कितना सटीक बैठा — इसका विश्लेषण कर के भविष्य के अनुमान की बेहतर प्रणालियां विकसित करी जायेगी। इन दिनों सूर्य की विद्युत चुम्बकीय गतिविधी एक अधिक सक्रिय दौर से गुजर रही है।
[Predictive Science Inc] कम्पनी के नाम से जाहिर होता है कि वह विज्ञान द्वारा Prediction [भविष्य का अनुमान लगाना ] के धन्धे में हैं। डेटा केप्चर करने का काम तीन सप्ताह पहले से शुरू हो चुका है। इतने से दिनों में प्रभामंडल के अनुमानित चित्रों में अनेक संशोधन हो चुके हैं। कोरोना का परिदश्य इस बात पर भी निर्भर करेगा कि धरती के किन किन कोनों से सूर्य ग्रहण देखा जा रहा है।
मेक्सिको के पश्चिम में प्रशांत महासागर के तट से शुरू हो कर Totality की पट्टी कनाडा के पूर्व में अटलांटिक महासागर तक पहुंचेगी। इस अवधि और इस दूरी को पाटते पाटते सूर्य की तुलना में धरती लगभग 90⁰ कोण से घूम जायेगी।
वर्ष 2017 के सूर्य ग्रहण के ठीक विपरीत इस बार सूर्य अपने 11 वर्षीय सूर्य-चक्र में सब से तीव्र चुम्बकीय गतिविधी से गुजर रहा है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि इस बार के कोरोना में नाटकीय रूप से श्वेत-विस्फोट और बीच-बीच में गहरे गेप दिखेंगे।
दूरबीनों के विज्ञान में और भी चाहे जितना विकास हो जाये, इन्सान चन्द्रमा जैसी कोई डिस्क या ढक्कन नहीं बना पायेगा जो, कुछ मिनिटों के लिये सही, सूरज को 100 प्रतिशत ढंक ले।
—————–*—————–*—————–
बहुत से लोग सोचते हैं और बहकावे में आ जाते हैं कि 100% न सही 90-95% सूरज ढँक जावे तो उसे देख पाना भी पर्याप्त होगा। यह एक भ्रम है। Total means Total. पूर्ण अर्थात पूर्ण। सिर्फ 100%. उससे एक परसेन्ट कम, 99% नहीं चलेगा। It is like all or none law. है तो है, नहीं तो कुछ भी नहीं।
सूरज को कभी भी नंगी ओखो से नहीं देखना चाहिये। एक सेकण्ड से कम अवधि के लिये भी नहीं। वरना आंख के पर्दे (Retina) के केन्द्रीय भाग में स्थित सबसे संवेदनशील रचना macula की कोशिकाएं जल जाती हैं, क्षतिग्रस्त हो जाती है। गम्भीर दीर्घकालिक या स्थायी दृष्टिदोष हो सकता है। ISO द्वारा प्रमाणित Sunglass से देख सकते है। साधारण गागल, या काला कांच या एक्सरे फिल्म आदि से देखना सुरक्षित नहीं है।
दुनिया के इतिहास में पहला सबसे लोकप्रिय सूर्य ग्रहण 7 अगस्त 1869 को अमेरिका में पड़ा था। लोकप्रिय इसलिये कि तब तक अखबार छपने और लाखों लोगो द्वारा उन्हें रोज पढ़ने की परम्परा विकसित हो हो चुकी थी। लोग दूर दूर से यात्रा करके पूर्णत्व (Totality) के पथ तक पहुंचे थे। इस आकाशीय चमत्कार का सबसे मौलिक, प्रामाणिक और विस्तृत वर्णन मारिया मिचेल ने लिखा था, जिन्हें उस युग की खगोल विज्ञान की अग्रणी महिला वैज्ञानिक माना जाता था। मारिया का लेख वैज्ञानिक और साहित्यिक के संयोग का उत्तम उदाहरण है।
मारिया के कवित्वमय गद्य में:
(अनुवाद में कुछ शब्द मैंने जोड़ दिए हैं, या बदल दिए हैं )
“ओ धड़कनों ठहर जाओ। वह घड़ी आ चुकी है। एक एक सेकण्ड कीमती है। उसमें डूब जाओ। सांसे थाम लो। एक स्याह अंधेरा आकाश को लील रहा है। कैसा सुरमई दृश्य है। दूरबीन में हम बदल बदल कर अलग अलग रंगों के लेंस के फिल्टर लगा रहे थे, सूरज और फिर उसके प्रभामण्डल की चमकीली जिगजेग परिधि को निहार रहे हैं।”
“जैसे ही पूर्णत्व का क्षण आया, चारो ओर से शोर उठा, लोग चीख रहे थे, ‘क्या नजारा है’, ‘ओह माय गाड’, खुशी से उछल रहे थे, सूरज को आंखे दिखा रहे थे,. जब तक पूरा सूरज ढंका है उसे सीधे सीधे देखने से आँख के पर्दे को हानि नहीं पहुंचती.
“चार दिन की चांदनी फिर अंधेरी रात? नहीं, चार मिनिट का अंधेरा फिर वहीं उजास”
“नदी का रंग श्रीविहीन लग रहा था। घास का हरा रंग बीमार लग रहा था। शुक्र और बुध ग्रह दिखने लगे है। कुछ तारे छिटक आये हैं। नगर की बत्तियां जगमगा रही है। पक्षी भ्रमित है। शोर मचाकर चुप हो गये हैं। वृक्षों पर जा बैठे हैं। कोरोना की आड़ी टेड़ी परिधि में कुछ फूलों जैसे आकार नजर आ रहे थे। रेगों का खेला है। मेरा केशरिया, मेरा हरा, मेरे मित्र के केशरिया और हरे से भिन्न है”.
“यह कैसा अंधेरा था? यह कैसा प्रकाश था? न तो ऊषा काल जैसा, न गोधूलि जैसा, न चांदनी जैसा। शब्दों में बयां करना मुश्किल है। इसे सिर्फ अनुभव किया जा सकता है.”
“पूरी तरह छिपने के कुछ सेकण्ड पहले और पुन: प्रकट होने के कुछ आरम्भिक क्षणों मे सूर्य की झलक, चन्द्रमा की काली टिकिया के एक किनारे पर देदीप्यमान हीरे की कनी जैसे दमकती है।
“इस Diamond Ring का सौदर्य अनिवर्चनीय है। चाहे धरती डगमगाने लगे, देखने वाले नहीं हिलेंगे.”