Shahdol Loksabha Constituency: शहडोल में हिमाद्री से कुछ नाराजगी, मुकाबले में रहने की कोशिश में फुंदेलाल
दिनेश निगम ‘त्यागी’ की ग्राउंड रिपोर्ट
विंध्य अंचल की शहडोल लोकसभा क्षेत्र की सांसद और भाजपा प्रत्याशी हिमाद्री सिंह से क्षेत्र के लोगों में कुछ नाराजगी है, क्योंकि वह कोरोना कॉल में लोगों के साथ खड़ी नहीं दिखाई पड़ीं। दूसरी वजह पति और भाजपा नेता नरेंद्र सिंह मरावी के साथ चल रही उनकी अनबन भी है। खबर है कि पति और पत्नी साथ नहीं रह रहे हैं। बावजूद इसके भाजपा की स्थिति मजबूत है। कांग्रेस के फुंदेलाल मार्को विपरीत परिस्थिति में भी विधानसभा चुनाव जीतते रहे हैं। वे क्षेत्र का जाना माना चेहरा हैं लेकिन उनका असर उनके विधानसभा क्षेत्र पुष्पराजगढ़ में ही ज्यादा है। हालांकि आदवासियों के एक वर्ग में उनकी अच्छी पकड़ बताई जाती है। इसकी बदौलत वे मुकाबले में बने रहने की कोशिश कर रहे हैं।
माता-पिता के रास्ते टिकी नहीं रह सकीं हिमाद्री
– शहडोल की सांसद हिमाद्री सिंह चुनाव भले भाजपा की टिकट पर लड़ रही हैं लेकिन उनकी राजनीितक और पारिवारिक पृष्ठभूमि कांग्रेसी है। उनके पिता दलबीर सिंह क्षेत्र के सांसद के साथ कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे हैं। हिमाद्री की मां राजेश नंदिनी सिंह भी कांग्रेेस से सांसद रही हैं। दलबीर सिंह के निधन के बाद राजेश नंदिनी सिंह ने पति की राजनीतिक विरासत संभाली और राजेश नंदिनी सिंह के निधन के बाद हिमाद्री चुनाव मैदान में उतरीं। फर्क यह है कि उनके पिता और माता क्रमश: दलवीर सिंह एवं राजेश नंदिनी एक चुनाव जीते तो कई हारे भी लेकिन उन्होंने कभी कांग्रेस नहीं छोड़ी। इसके विपरीत हिमाद्री एक हार भी बर्दाश्त नहीं कर सकीं। हिमाद्री 2016 के उप चुनाव में कांग्रेस की ओर से पहली बार मैदान में उतरी और भाजपा के ज्ञान सिंह से 60 हजार से ज्यादा वोटों के अंतर से पराजित हो गईं। नतीजा, अगले लोकसभा चुनाव 2019 से पहले उन्होंने कांग्रेस छोड़ भाजपा का दामन थाम लिया। भाजपा ने उन्हें टिकट दिया और वे कांग्रेस की प्रमिला सिंह को रिकार्ड 4 लाख से ज्यादा वोटों के अंतर हरा कर जीत गईं। खास बात यह भी है कि हिमाद्री ने कांग्रेस में रहते भाजपा नेता नरेंद्र सिंह मरावी के साथ शादी की थी जबकि नरेंद्र सिंह 2009 में उनकी मां राजेश नंदिनी सिंह के खिलाफ ही लोकसभा चुनाव लड़े थे और 13 हजार से ज्यादा वोटों के अंतर से हार गए थे।
भाजपा-कांग्रेस की ताकत, कमजोरी
– हिमाद्री 4 लाख से ज्यादा वोटों के रिकार्ड अंतर से चुनाव जीती थीं, उन्हें इसका अहं था या वजह कुछ और, कोरोना कॉल में वे क्षेत्र के लोगों के साथ खड़ी दिखाई नहीं पड़ीं। इसकी वजह से लोगों में उनके प्रति नाराजगी है। बताया जाता है कि इस दौरान वे गर्भवती हो गई थीं। दूसरा, हिमाद्री के पति नरेंद्र सिंह मरावी भाजपा के बड़े नेता हैं। वे भाजपा अनुसूचित जनजाति मोर्चा के अध्यक्ष रहे हैं। लोकसभा चुनाव भी लड़ चुके हैं, उनके साथ उनकी अनबन चल रही है। हिमाद्री अपने पति से अलग रह रही है। इसकी वजह से भी कुछ लोग नाराज बताए जाते हैं। इसका तात्पर्य यह भी नहीं कि भाजपा की हालत ठीक नहीं है। शहडोल में देश की हवा का असर है और यहां एक बार फिर भाजपा की स्थिति मजबूत दिख रही है। कांग्रेस के फुंदेलाल भी क्षेत्र के मजबूत नेताओं में से एक हैं। शहडोल क्षेत्र की पुष्पराजगढ़ विधानसभा सीट से वे लगातार तीन चुनाव जीत चुके हैं। भाजपा की लहर में भी वे विधानसभा चुनाव नहीं हारे। ऐसे में उन्हें कमजोर आंकना ठीक नहीं होगा। वे क्षेत्र का चिर पिरचित चेहरा और कांग्रेस के कद्दावर नेता हैं। वे मुकाबले में रह सकते हैं।
सांसद की निष्क्रियता को कांग्रेस बना रही मुद्दा
लोकसभा के इस चुनाव में मुद्दों के लिहाज से भाजपा का पलड़ा भारी है। अयोध्या में राम मंदिर, धारा 370 और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता उसके ट्रंप कार्ड हैं। भाजपा केंद्र एवं राज्य सरकार की योजनाओं और कामों को भी गिना रही है। कांग्रेस में भगदड़ भी उसका एक मुद्दा है। इसके विपरीत कांग्रेस के फुंदेलाल क्षेत्र में सांसद हिमाद्री की निष्क्रियता को मुद्दा बना रहे हैं। इसके अलावा कांग्रेस ने घोषणा पत्र में अपने मुद्दे गिना दिए हैं। पांच न्याय के साथ कांग्रेस ने 24 गारंटियों की बात की है। वह किसान कर्जमाफी को भी मुद्दा बना रही है और एमएसपी को भी। भाजपा और कांग्रेस का प्रचार अभियान मुद्दों के आधार पर जोर पकड़त दिख रहा है।
विधानसभा में भाजपा ने जीती 8 में से 7 सीटें
विधानसभा की ताकत के लिहाज से भाजपा का पलड़ा भारी है। पार्टी ने 8 में से 7 सीटें जीत रखी हैं। इसके विपरीत कांग्रेस को सिर्फ एक सीट पर संतोष करना पड़ा है। यह सीट भी कांग्रेस प्रत्याशी फुंदेलाल की पुष्पराजगढ़ है। वे यहां से लगातार तीसरी बार चुनाव जीते हैं। हालांकि इस बार उनकी जीत का अंतर बहुत घट गया। फुंदेलाल 2013 में 35 हजार 643 और 2018 में 21 हजार 201 वोटों के अंतर से चुनाव जीते थे लेकिन चार माह पहले 2023 के चुनाव में वे 4 हजार 486 वोटों से ही जीत सके। 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस बरीबरी पर थे। दोनों ने 4-4 विधानसभा सीटों में जीत दर्ज की थी। लेकिन इस बार भाजपा ने 7 सीटें जीतीं और जीत का अंतर भी कुल मिलाकर 2 लाख 12 हजार 835 वोट का है। इस अंतर को पाटना कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती है।
हिमाद्री के माता-पिता रहे कांग्रेस से सांसद
– शहडोल की गिनती विंध्य अंचल में होती है लेकिन इसका भौगोलिक क्षेत्र महाकौशल तक जाता है। लोकसभा क्षेत्र चार जिलों शहडोल, अनूपपुर, उमरिया और कटनी तक फैला है। इसके तहत शहडोल जिले की दो विधानसभा सीटें जयसिंहनगर और जैतपुर, अनूपपुर जिले की तीन अनूपपुर, पुष्पराजगढ़ और काेतमा, उमरिया जिले की दो बांधवगढ़, मानपुर और कटनी जिले की एक विधानसभा सीट बड़वारा आती है। इनमें से एक पुष्पराजगढ़ को छोड़ शेष सभी 7 पर भाजपा का कब्जा है। जहां तक शहडोल लोकसभा सीट के राजनीतिक मिजाज का सवाल है तो 1991 और 2009 में यहां से हिमाद्री के माता-पिता कांग्रेस के दलवीर सिंह और उनकी पत्नी राजेश नंदिनी सिंह ही चुनाव जीते है। शेष 7 लोकसभा चुनाव में भाजपा ही अपनी विजय पताका फहराती रही है। अर्थात कांग्रेस के प्रभाव वाले समय में भी यहां भाजपा की जीत होती रही है। अब यह क्षेत्र भाजपा का गढ़ बन चुका है।
शहडोल में आधे से ज्यादा मतदाता आदिवासी
– शहडोल लोकसभा सीट आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित है। क्षेत्र में आदिवासियों के साथ अनुसूचित जाति वर्ग के मतदाताओं की तादाद भी आधे से ज्यादा है। 2011 की जनगणना के मुताबिक शहडोल क्षेत्र के तहत 44.76 फीसदी आबादी आदिवासी वर्ग की है। इसके साथ क्षेत्र में 9.35 फीसदी आबादी अनुसूचित जाति वर्ग की है। इन दोनों वर्गों के मतदाता भाजपा-कांग्रेस में बंटते हैं लेकिन ज्यादा भाजपा के पक्ष में ही जाते हैं। आदिवासी वर्ग का कुछ वोट गोंगपा भी ले जाती है। इसके बाद क्षेत्र में पिछड़े वर्ग के मतदाताओं की तादाद 30 फीसदी के आसपास है। यह वर्ग ज्यादा तादाद में भाजपा के पक्ष में ही जाता है। कांग्रेस को पिछड़ों के साथ कुछ सवर्णों का वोट मिलता है।