कड़े इम्तिहान से गुजरते कांग्रेस के दो वरिष्ठतम नायक…
पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की एक बात गौर करने लायक है और जिसमें मध्यप्रदेश कांग्रेस के दो वरिष्ठतम नेताओं को भी जोड़कर देखा जा सकता है। शिवराज का कहना है कि कांग्रेस की हालत ये हो गई है कि, उनकी सर्वश्रेष्ठ नेत्री चुनाव नहीं लड़ रही हैं। सोनिया मैडम ने ही मैदान छोड़ दिया है। जहां इंदिरा जी लड़ी वहां से कांग्रेस के पास उम्मीदवार ही नहीं है। यह कांग्रेस के पतन की पराकाष्ठा है। अमेठी में जहां राहुल बाबा चुनाव लड़ते थे वहां भी कांग्रेस के पास उम्मीदवार नहीं है, राहुल गांधी छोड़ कर चले गए, अपने घर में ही कांग्रेस की जड़ें नहीं बचीं क्योंकि कांग्रेस देश की जड़ों से नहीं जुड़ी है। इसके संदर्भ में यह देखा समझा जा सकता है कि कांग्रेस के दो वरिष्ठतम नायक कमलनाथ और दिग्विजय सिंह भी इसी दौर से गुजर रहे हैं। राजगढ़ और छिंदवाड़ा में असल परीक्षा इन्हीं नायकों की है। राजगढ़ में चेहरा भी दिग्विजय सिंह का है और प्रतिष्ठा भी उनकी दाव पर लगी है। वहीं छिंदवाड़ा में चेहरा कमलनाथ का है, पर प्रतिष्ठा कमलनाथ की ही दाव पर लगी है। विशेष बात यह है कि कमलनाथ वर्तमान में छिंदवाड़ा से विधायक हैं और उन्होंने सांसद का उत्तराधिकारी नकुलनाथ को बनाया है। वहीं दिग्विजय सिंह राज्यसभा सदस्य हैं और लोकसभा में पिछला चुनाव भोपाल से हारने के बाद अब राजगढ़ में अपना कद आजमा रहे हैं। दोनों के बारे में यह बात समान है कि यह दोनों नेता शायद ही अगली बार मैदान में नजर आएं। जीतू पटवारी और उमंग सिंघार के आने के बाद यह तस्वीर साफ है कि अब कांग्रेस मध्यप्रदेश में पीढी परिवर्तन को प्राथमिकता दे चुकी है और अब शायद ही 70-75 पार को पार्टी तवज्जो देने का मन बनाए।
कमलनाथ ने तो शायद ही सोचा होगा कि उम्र के इस पड़ाव पर छिंदवाड़ा में उन्हें यह दृश्य देखना पड़ेगा कि उनके सभी अपने एक-एक कर निर्मोही बनकर उनका साथ छोड़ देंगे। कमलनाथ इस वक्त कभी अकेले में बैठते होंगे तो यह विचार उनके मन में कौंधता ही होगा कि “आखिर क्यों बिछड़ रहे सब बारी-बारी”। जिला पंचायत उपाध्यक्ष छिंदवाड़ा अमित सक्सेना ने 12 जनवरी 2024 को भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली। इससे पहले भी कमलनाथ के ज्यादातर करीबी और प्रभावी नेता भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर चुके हैं। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव, कैलाश विजयवर्गीय, प्रहलाद पटेल के साथ-साथ भाजपा के केंद्रीय नेता इस लोकसभा चुनाव में मानो छिंदवाड़ा में ही डेरा डाले हैं। देखा जाए तो एक बार सांसद बनकर नकुलनाथ ने पांच साल में ही कमलनाथ की जिंदगी भर की कमाई को दाव पर लगा दिया है। कमलनाथ की उम्र अभी 77 साल है और उनका पूरा जीवन केंद्रीय राजनीति को समर्पित रहा है। 2018 में मध्यप्रदेश में दस्तक देकर वह मुख्यमंत्री, नेता प्रतिपक्ष और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जैसे पदों पर रहकर राज्य की राजनीति के सर्वोच्च पदों को सुशोभित किया है। पर उनके समय में ही कांग्रेस पतन के दौर को भी पाने वाली पार्टी बनी, तो पटरी पर वापस लौटने का नाम ही नहीं ले पा रही है।
इसके उलट दिग्विजय सिंह दस साल तक मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हैं। 2003 में मध्यप्रदेश में बुरी तरह से कांग्रेस की हार के बाद उन्होंने वचन के मुताबिक दस साल सक्रिय चुनावी राजनीति से संयास लेकर अपनी भूमिका का निर्वहन भली भांति किया है। 2018 में कमलनाथ के नेतृत्व में परदे के पीछे और पंगत में संगत कर दिग्विजय ने अपनी संगठनात्मक क्षमता का लोहा मनवाया। पर 2018 में बनी कांग्रेस सरकार के गिरने का बड़ा दोष दिग्विजय के माथे मढ़ा जाता है। दिग्विजय सिंह भी 77 की आयु में ही हैं। और अगला मैदानी चुनाव वह भी शायद ही लड़ें।
खैर कांग्रेस के यह दोनों वरिष्ठतम नायक मध्यप्रदेश में असल परीक्षा के दौर से गुजर रहे हैं। दिग्विजय सिंह तो ईवीएम पर उंगली उठाकर अपना हाथ मजबूत कर रहे हैं। पर कठिनतम दौर कमलनाथ का है। आखिर पुत्र का हाथ थामकर वह नैया पार नहीं करा पाए तो मन में क्लेश हमेशा के लिए रहेगा। यह तय है कि 2024 का लोकसभा चुनाव मध्यप्रदेश में कांग्रेस का भविष्य लिखने वाला है…।