Netflix Movie ‘Amar Singh Chamkila”: अश्लील गीतों के बावजूद ,देखी जाने लायक मर्म जगाती कहानी !
समीक्षा -डॉ स्वाति तिवारी
Movie Review–अमर सिंह चमकीला
कलाकार-दिलजीत दोसांझ , परिणीति चोपड़ा , अंजुम बत्रा और अपिंदरदीप सिंह
लेखक-इम्तियाज अली और साजिद अली
निर्देशक-इम्तियाज अली
निर्माता-मोहित चौधरी
रिलीज:12 अप्रैल 2024
कल नेटफ्लिक्स पर यूँही खोजते खोजते नयी फिल्म जिसे नाम से देखना कोई ख़ास आकर्षण नहीं था ,लेकिन इम्तियाज अली नाम देखा तो अश्लील गानों की भरमार के बावजूद फिल्म पूरी देखी ,और देखकर सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों की शादियों में राजस्थान ,पंजाब ,हरियाणा जैसे क्षेत्रों में लोग में दबे छुपे या आयोजनों में गाये जानेवाले गाली गीत याद आगये जो या तो समाज की दमित कुंठाएं होती है ,या समाज की भड़ास .
मनोरंजन की आड़ में अक्सर ये गीत मजाक के रूप में भी गाये जाते हैं . लेकिन वे गीत इतने खूले और इतने अश्लील नहीं होते क्योंकि उनमें द्विअर्थी भाव होते है जिन्हें समझना हो उन्हें ही समझ आते हैं ,साधारण रूप से उन्हें मंच पर ना गाकर पारिवारिक समारोह में गाये जाते है .इसमें कहीं हास-परिहास तो कहीं गाली-गीतों की सदियों पुरानी परंपरा दिखती है। इस उत्सवी परिपाटी के अनेक रंग और कई आयाम है।
विवाह आदि अवसर पर जब दूर-दूर के नाते रिश्तेदार एक साथ एक जगह इकठ्ठा होते है तब हर्षोल्लास का ऐसा वातावरण बनता है कि औपचारिक बाध्यताए टूट कर स्वत:स्फूर्त हास्य परिहास में परिणत हो जाती है. मनोविज्ञान कहता हैं कि इसके ज़रिये स्त्रियां अपने भीतर की दबी ऐन्द्रिकता यानि यौनिकता को बाहर निकालती है। क्योकि उन्हे बाहर निकलने या लोगों, खास तौर से पुरुषों से बात करने की इजाजत नहीं होती। ऐसे में वे अपनी दबी हुई ऐन्द्रिकता को ‘गाली गीत’ के ज़रिये बाहर निकालती है ।ये भड़ास गालियाँ एक बड़ी मनोवैज्ञानिक भूमिका निभाती है ।
खैर बात करते है फिल्म अमर सिंह चमकीला की, यह म्यूजिकल बायोपिक पंजाब के बेहद लोकप्रिय, लेकिन बदनाम सिंगर अमर सिंह चमकीला की जिंदगी पर आधारित है। चमकीला और उनकी पत्नी की हत्या कर दी गई थी। बात 80 के दशक की है, जब उनकी और उनकी पत्नी अमरजोत को नकाबपोश बंदूकधारियों ने गोलियों से छलनी कर दिया। हत्या से पहले चमकीला को अश्लील गीत लिखने और गाने के लिए अज्ञात धमकियां मिली थीं।
फिल्म में दिलजीत दोसांझ और परिणीति चोपड़ा लीड रोल में हैं। फिल्म के कलाकारों ने फिल्म में जान डाल दी है ,इसीलिए इम्तियाज की यह म्यूजिकल बायोपिक एक सच्ची त्रासदी पर बनी एक बेहतरीन फिल्म हो गई है .और अश्लील गीतों के बावजूद फिल्म गायक के प्रति संवेदना और मर्म को जगाती मार्मिक कहानी कहने लगती है .
कहानी पंजाबी सिंगर अमर सिंह चमकीला की है. पंजाब के ओरिजनल रॉकस्टार कहे जाने वाले अमर सिंह चमकीला ने 20 साल की उम्र में अपने गानों से धूम मचा दी थी. महज 27 साल की उम्र में उनका कत्ल कर दिया गया था. फिल्म में चमकीला की जिंदगी के महत्वपूर्ण पड़ावों को दिखाया गया है. इम्तियाज अली ने कहानी को चित्रों और एनिमेशन के जरिये भी दिखाया है. इस तरह से उन्होंने अच्छे से चमकीला की लाइफ को परदे पर उतारा है.
‘अमर सिंह चमकीला’ अंत से शुरू होती है। जब से सब कुछ खत्म दिखाई देता है.यही इस फिल्म की बड़ी विशेषता है फिल्म शुरू ही अंत से होती है ,और दर्शक यही से फिल्म के अन्दर प्रवेश कर जाता है जब उसकी हत्या की जांच कर रहे पुलिस अधिकारी और उस व्यक्ति के बीच बातचीत में शामिल होते हैं जिसने अपना ‘उस्ताद’ खो दिया है ,सहानुभूति और मर्म की पकड दर्शक पर यहीं से मजबूत होने लगती है .और इस किस्सागोई के माध्यम से फ्लेश बैक में दिखाई जाती है फिल्म में दर्शक एक कलाकार स्टारडम में ऊँचे चढाते पायदान और उनके आसन्न पतन को एक ही समय में घटित होते हुए देख लेते हैं .और सोचने लगते हैं कि समाज गीत वही गीत नाच -नाच कर सुनता है और उन्ही गीतों की आड़ लेकर एक नौजवान गायक दुनिया से हटा दिया जाता है .यह बायोपिक उस समाज और उस समय पर एक व्यंग भरी टिपण्णी है, जिसमें चमकीला रहता है .जिसके गीतों में गीतों को खासकर महिलाओं के लिए आपत्तिजनक शब्द और भद्दे अर्थ होते है .
फिल्म हमें नैतिक मूल्यों पर सोचने समझने ,सही और गलत को तय करने के लिए उकसाती है .जाने कितने ज्वलंत प्रश्न खड़े करती है . समाज में एक तबका जो स्लम में रहता है वह जो देखता है ,सुनता है ,वही वह उसे पता है और यह तबका बहुत बड़ा है .लेकिन अमिताभ बच्चन से ज्यादा भीड़ चमकीला के आयोजन में एकत्र होती है जो उनकी लोकप्रियता का प्रमाण बनती है .बावजूद इसके अमर सिंह चमकीला एक ऐसे व्यक्ति थे, जिसकी लोकप्रियता ही जान लेवा साबित हुई. उन्हें अलगाववादी भी मारना चाहते थे. पुलिस भी खत्म करना चाहती थी. समाज और धर्म के ठेकेदार भी उनके खिलाफ थे. साथी सिंगर्स को भी वो चुभने लगे थे.फिल्म में 15 गीत है ,जो भरमार लगते है , जो कम किये जा सकते थे और कुछ वे गीत जो धार्मिक एल्बम में आये और सबसे ज्यादा बीके थे उन्ही का रिकार्ड तोड़ते हुए उन्हें भी हाई लाईट किया जाना चाहिए था .
फिल्म पूरी तरह से दिलजीत दोसांझ की है। वह एक बेहतरीन सिंगर तो हैं ही, फिल्म में उन्होंने अपने एक्टिंग करियर का अब तक का बेस्ट दिया है। वह पर्दे पर विनम्रता, हताशा और गुस्से जैसे भाव को शानदार ढंग से उकेरते हैं। परिणिति के लिए फिल्म में अलग से कोई स्पेस नहीं थी अभिव्यक्ति की ,लेकिन दिए गए रोल के साथ वे उसमें फिट हो जाती हैं .और इस तरह एक लोक कलाकार को जिसका असली नाम धनीराम था जिसे लोग धनिया बुलाते थे । अमर सिंह के नाम से उसने जुराबें बनाने वाली फैक्ट्री में नौकरी करते करते अमर सिंह चमकीला स्टार हो जाने की कहानी को मार्मिक होकर देखते है .
समीक्षा -डॉ .स्वाति तिवारी