तीसरे चरण में निगाहें हैं श्रीमंत, मामा और राजा पर…
मध्यप्रदेश में लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण के लिए नामांकन पत्र जमा हो रहे हैं। वैसे तो बैतूल में बसपा प्रत्याशी के निधन के बाद तीसरे चरण में नौ लोकसभा सीटों पर मतदान होना है। बैतूल में सिर्फ एक बसपा प्रत्याशी को नामांकन पत्र दाखिल करना है। बैतूल के अलावा मुरैना, भिंड, ग्वालियर, गुना, सागर, विदिशा, भोपाल और राजगढ़ लोकसभा सीटों पर तीसरे चरण में मतदान होना है। सभी सीटों पर राजनैतिक दलों ने अपने उम्मीदवार घोषित कर दिए हैं। नामांकन दाखिल करने का सिलसिला जारी है। तीसरे चरण में हाईप्रोफाइल तीन चेहरों पर सबकी निगाहें रहेंगी। इनमें गुना सीट से श्रीमंत यानि ज्योतिरादित्य सिंधिया, विदिशा सीट से मामा यानि शिवराज सिंह चौहान और राजगढ़ सीट से राजा यानि दिग्विजय सिंह का नाम शामिल है। श्रीमंत और राजा पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस से मैदान में थे। श्रीमंत अपनी परंपरागत सीट गुना से ही थे, तो राजा भोपाल लोकसभा सीट से किस्मत आजमा रहे थे। श्रीमंत को भाजपा के केपी यादव ने कम अंतर से चुनाव हराया था, तो राजा को भाजपा की प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने भारी अंतर से पटकनी दी थी। राजा अब सीट बदलकर राजगढ़ से ताल ठोक रहे हैं तो श्रीमंत अपनी परंपरागत सीट पर मैदान मारने को तैयार हैं। दोनों के बीच एक समानता और है कि वर्तमान में यह दोंनों चेहरे राज्यसभा सांसद हैं। तो शिवराज केंद्र से मध्यप्रदेश की तरफ मुड़े थे और 17 साल तक मुख्यमंत्री रहने के बाद एक बार फिर केंद्र की तरफ रुख कर रहे हैं। उनकी विदिशा सीट भी परंपरागत है। श्रीमंत और मामा के लिए मुकाबला जीता हुआ सा है, तो राजा के लिए लोकसभा की डगर बहुत कठिन मानी जा रही है।
19 अप्रैल की तारीख पहले और तीसरे चरण के लोकसभा चुनावों को कनेक्ट कर रही है। पहले चरण के चुनाव में शामिल प्रदेश की छह लोकसभा सीटों सीधी, शहडोल, जबलपुर, मंडला, बालाघाट और छिंदवाड़ा के लिए बुधवार 17 अप्रैल को शाम पांच बजे से प्रचार थम जाएगा। यहां 19 अप्रैल को मतदान सुबह सात से शाम छह बजे तक होगा। बालाघाट लोकसभा क्षेत्र के नक्सल प्रभावित विधानसभा क्षेत्र बैहर, लांजी और परसवाड़ा में मतदान चार बजे तक संपन्न कराया जाएगा। तो तीसरे चरण की लोकसभा सीटों के लिए 19 अप्रैल तक नामांकन पत्र स्वीकार किए जाएंगे।
53 वर्षीय ज्योतिरादित्य माधवराव सिंधिया (जन्म 1 जनवरी 1971) भारत सरकार की पंद्रहवीं लोकसभा के मंत्रिमंडल में वाणिज्य एवं उद्योग राज्यमंत्री रह चुके हैं। ये लोकसभा की मध्य प्रदेश स्थित गुना संसदीय सीट का प्रतिनिधित्व करते थे। ज्योतिरादित्य सिंधिया मनमोहन सिंह सरकार में केन्द्रीय मंत्री रहे हैं। यह गुना शहर से कांग्रेस के विजयी उम्मीदवार रहे हैं। इनके पिता स्व. माधवराव सिन्धिया भी गुना से कांग्रेस से सांसद रहे थे। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने पिता माधवराव सिंधिया के असामयिक निधन के बाद 2002 में हुए उपचुनाव में गुना से कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में बड़ी जीत दर्ज की थी। 2014 तक वह कांग्रेस से चार बार लोकसभा सदस्य और केंद्रीय मंत्री रहे। पांचवीं हार के बाद वह 11 मार्च 2020 को भाजपा में शामिल हुए और राज्यसभा सदस्य बने व केंद्र सरकार में मंत्री हैं। अब भाजपा से एक बार फिर गुना फतह करने की राह पर हैं।
शिवराज सिंह चौहान (जन्म – 5 मार्च 1959) 1990 में पहली बार बुधनी विधानसभा क्षेत्र से विधायक बने। इसके बाद 1991 में विदिशा संसदीय क्षेत्र से पहली बार सांसद बने। 11 वीं लोक सभा में वर्ष 1996 में विदिशा संसदीय क्षेत्र से पुन: सांसद चुने गये। चौहान वर्ष 1998 में विदिशा संसदीय क्षेत्र से ही तीसरी बार 12 वीं लोक सभा के लिए सांसद चुने गये। वर्ष 1999 में विदिशा से चौथी बार 13 वीं लोक सभा के लिये सांसद निर्वाचित हुए। शिवराज सिंह चौहान पॉचवी बार विदिशा से 14वीं लोक सभा के सदस्य निर्वाचित हुये। शिवराज सिंह जी मध्यप्रदेश मे सबसे लम्बे समय तक मुख्यमंत्री के रूप मे कार्यभार संभालने वाले पहले मुख्यमंत्री हैं। चौहान वर्ष 2005 में भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किये गये। चौहान को पहली बार 29 नवम्बर 2005 को मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई गई। चार बार मुख्यमंत्री रहे तो बाद वह पांच बार विधायक बनकर अब एक बार फिर लोकसभा चुनाव के मैदान में हैं। शिवराज को चौथी बार सीएम बनाने में ज्योतिरादित्य सिंधिया का महत्वपूर्ण योगदान रहा था। तो वह राघौगढ़ से विधानसभा का चुनाव दिग्विजय सिंह से हार चुके हैं।
तो दिग्विजय सिंह (जन्म: 28 फरवरी 1947) दस साल (1993-2003) तक मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हैं। वर्तमान में मध्य प्रदेश से राज्य सभा सांसद हैं। इसके पूर्व इस पार्टी में राष्ट्रीय महासचिव के पद पर थे। लोकसभा चुनाव 2019 में मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल लोकसभा सीट से कांग्रेस प्रत्याशी बनाये गये, पर बड़े अंतर से हार गए थे। दिग्विजय सक्रिय राजनीति में 1971 में आये, जब वह राघोगढ नगरपालिका अध्यक्ष बने। 1977 में कांग्रेस टिकट पर चुनाव जीत कर राघोगढ़ विधान सभा क्षेत्र से विधान सभा सदस्य बने। 1980 में वापस राघोगढ़ से चुनाव जीतने के बाद दिग्विजय को अर्जुन सिंह मंत्रिमंडल में राज्यमंत्री का पद दिया गया तथा बाद में कृषि विभाग दिया गया। 1984, 1992 में दिग्विजय को लोकसभा चुनाव में विजय मिली। 1993 और 1998 में इन्होंने मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। वे कांग्रेस के महासचिव पद पर (2004-2018) रहते हुए अनेक प्रदेशों का प्रभार संभाल चुके हैं। दिग्विजय सिंह अब 31 साल बाद 77 साल की उम्र में एक बार फिर राजगढ़ लोकसभा सीट की गलियों में जीत की आस लिए घूम रहे हैं।
तो मध्यप्रदेश में तीसरे चरण के लोकसभा चुनाव में यह तीन हाईप्रोफाइल नेता अपनी जिंदगी में एक-एक चुनाव हारे हैं। अब दिग्विजय की दूसरी हार उनका इंतजार कर रही है या फिर राजगढ़ के मतदाता मोदी लहर में भी उन्हें निराश नहीं करेंगे, यह 4 जून 2024 को पता लग जाएगा। वहीं ज्योतिरादित्य सिंधिया और शिवराज सिंह चौहान की जीत तय मानी जा रही है।