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यह किस्सा होल्कर राज्यों की राजधानी महेश्वर से 8 किलोमीटर  दूर स्थित एक कस्बे का है.यह क़स्बा सबसे पवित्र नदी के तट पर बसा है .इस नदी को हिंदुओं द्वारा एक पवित्र नदी माना जाता है यहाँ  में तालाब, मंदिर और घाट हैं। इसके आसपास चारों तरफ। धवल-कुंड और हथानी (द्वीप), सहस्त्रधारा, और राम कुंड ऐतिहासिक महत्व के अन्य स्थान भी इसी के आसपास हैं.यहाँ मेरे पिता आठ साल रहे .ये साल वे थे जब मैं साइकल चलाना ,उल्टा घड़ा पकड़ नदी में तैरना सिख रही थी .इस नदी में ही मैंने तैरना और बालू रेत में हथेली से खोद – खोद कर झिरी बनाना भी सिखा था .यहाँ हम नहाने ,तैरने ,कपडे धोने और तट से थोड़ी  दूर नदी की रेत में से झिरी खोदकर पीने का साफ़ पानी भर लेते थे .पानी भर लेने का अर्थ होता था उस  झिरी से जो पानी रेत के कुंड में एकत्र होता है उसे उलीच लेना .यह अंजुरी से भी किया जाता था या किसी भगोने जैसे बर्तन से .बच्चे थे ,गर्मियों में यह एक शगल ज्यादा था घर की जरूरत नहीं ,लेकिन माँ ने हमेशा घर आये जल को सर माथे लगाया फिर यह तो उनके बच्चे लेकर आते थे ,सरल मन और शुद्ध भाव से  क्योंकि पानी तो कावड़िया भर जाता था पर हम तैरने के लिए छोटे छोरे ताम्बे के जो घड़े या कलसे ले जाते थे उन्हें आते वक्त भर कर ले आते थे .माँ उस जल को शुद्ध जल [कन्या लेकर आती थी  ] मानती थी जो पूजा के लिए काम आता था .  

यह वो जमाना भी था, जब बोतलों का चलन दुनिया में नहीं आया था .पानी नदी, कुए, बावड़ी से ही या तो खूद लाया जाता था ,या पानी के कावड़िया लगा कर भरवा लिया जाता था .कावड़िया उस समय कहार हुआ करते थे . जो एक बांस के डंडे में दोनों किनारे पर टीन  के  तेल वाले १५ लीटर वाले डिब्बे बाँध कर उन्हें पेयजल स्त्रोतों से भरकर प्रति डिब्बा पैसे लेते थे ,या वे बंदी भी बाँध लेते थे. यह पानी  पहले लठ्ठे के कपडे के गलने से छाना जाता फिर फिटकरी घूमा कर पानी में व्याप्त अशुद्धि को बर्तन की तलछटी में बैठाने के बाद निथार कर पीने के लिए काम में लिया जाता था .मैं बात कर रही थी नदी की रेत में खोदी गई झिरी की .

झिरी जिसे हम रोज खोद कर पानी एकत्र कर किसी  बर्तन से भर  कर एकत्र कर लेते है औरएक था इसी कसबे में झिरन्या. झिरन्या इसी का शायद बड़ा और पक्का किया बावड़ी ,और कुएं के बीच का कोई जल स्त्रोत कहा जा सकता है .कहते हैं कि झिरन्या में भूगर्भ से कोई जल धार आतीऔर झरती  रहती है,इसीलिए इसे झरना के बजाय झिरनया कहा जाता है .  उनका जल ठंडा और मीठा भी होता है .कई मिनरल्स और जड़ीबूटियों  उसमें अपना असर छोड़ देती हैं इसलिए स्वास्थ के लिए वह नीरा जैसा .

हमारे इस कसबे में भी बस्ती से दूर सरकारी स्कूल से समानांतर जानेवाली पगडंडी पर जो आगे जाकर मरघट तक जाती थी ,उसी की एक पगडण्डी से दूरस्थ सघन स्थल पर बना था झिरन्या . कुछ कच्चा कुछ पक्का सा पत्थर काट कर सीढियाँ भी  निर्माण की हुई थी .हरे भरे वनस्पतियों से पूर्णतया आच्छादित इस जल स्त्रोत को  छोटी- छोटी पर्वत श्रृंखला ने कुंड जैसा आकार दे दिया था .किसी तांत्रिक की एक कुटिया भी बनी हुई थी ,और किसी देवता का अनगढ़ स्थान भी था शायद .जहाँ तंत्र मन्त्र की जैसे लिपि बद्ध कोई शिलालेख भी बताये जाते .

मैं उस समय उम्र के लिहाज से बहुत छोटी ही रही होंगी .मुझे कभी झिरन्या पर जाने का कोई अवसर नहीं मिला ,लेकिन एक बार  स्कूल से पिकनिक जाते हुए झिरन्या रास्ते में आया था .उसकी उस अद्वितीय सुन्दरता की स्मृति आज भी ज्यों की त्यों है . आश्चर्य की बात यह है कि झिरन्या का देखा कम और सुना वर्णन ज्यादा याद रहा .एक एसा स्थान जो एकांत भी है ,और रहस्यमय भी .यहाँ के बारे में जो किस्से उस बाल उम्र में सुन रखे थे ,उस में यह भी ज्ञात था कि यहाँ दोपहर बारह बजे के बाद और शाम चार बजे के पहले स्नान करना प्रतिबंधित किया हुआ था .कहते हैं लोग जो नहाने तैरने या पानी लाने जाते हैं वे एक दो एकदो  समूह में ही जाते हैं .सूर्यास्त के बाद तो लोग उस दिशा में देखते भी नहीं थे .लोगों के पास की रोंगटे खड़े करनेवाले अनुभवों के कई किस्से थे.

मैं उन दिनों बड़ी हो रही थी ,और हमारे स्कूल में उस जमाने में लंच टाइम को डिब्बा खाने की छूट्टी कहते थे .स्कूल के पीछे पहाडी ढलान उतर कर हम उन इमली के पेड़ों के झुरमुट में कच्ची  इमली बीनने भाग जाते थे .

कसबे दूर ,जल स्त्रोत ,तांत्रिक गतिविधी की संभावानाएं क्योंकि मरघट और नदी से बह कर आनेवाली अकाल मृत्यु  प्राप्त देहों को वहां तट के कटाव में अटकने के कई  किस्से आये दिन चर्चा में रहते थे .ना तब घर में अखबार का चलन था ना कोई टीवी होते थे .बातें और चर्चाएँ ही ख़बरों का विस्तार ,और प्रसारण का एकमात्र आधार हुआ करती थी .हम बच्चे भी यहाँ वहां से सुनी सुनाई  ख़बरों को अगले को सुनाते जैसे -,आज हमारे बाबूजी को नाई काका ने बताया स्कूल के पीछे ,हाँ वही कटाव वाली धारा में एक ओउरत  का अध् जली हालत में पडी दिखी ,काका बोले मैं तो उलटे पैर भागा