Law and Justice: अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ही सबसे महत्वपूर्ण

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Law and Justice: अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ही सबसे महत्वपूर्ण

इस मामले में बाॅम्बे उच्च न्यायालय ने पहले कहा था कि प्रथमदृष्टया आईटी नियम 2023 में नए संशोधन में व्यंग्य को बचाने के लिए आवष्यक सुरक्षा उपायों का अभाव है। हालांकि, सूचना और प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने दावा किया है कि सरकारी एजेंसी (एफसीयू) द्वारा तथ्यों की जांच के बाद सरकार के कामकाज से संबंधित ‘प्रामणिक जानकारी’ का पता लगाना और प्रसारित करना जनहित में होगा ताकि ‘बड़े पैमाने पर जनता को होने वाले संभावित नुकसान को रोका जा सके।’ कार्यवाही के दौरान, साॅलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने स्पष्ट किया कि एफसीयू द्वारा अपने प्लेटफार्म पर सामग्री को फर्जी, गलत या भ्रामक के रूप में चिन्हित करने के बाद फेसबुक, एक्स, इंस्टाग्राम आदि जैसे बिचैलियों को कुछ भी करने की स्वतंत्रता नहीं है।

यदि कोई सोशल मीडिया या समाचार वेबसाइट फ्लैग की गई जानकारी को होस्ट करना जारी रखती है, तो कार्रवाई किए जाने पर उसे अदालत में अपने रुख का बचाव करना होगा। मध्यस्थ आईटी अधिनियम की धारा 79 के तहत परिभाषित सुरक्षित बंदरगाह खो सकता था, जिसे अदालत तय करेगी। याचिकाकर्ताओं ने अपने जवाब में दावा किया कि बिचौलियों को केवल सरकार द्वारा कुछ चिन्हित किए जाने के बाद ही पसंद का भ्रम होता है। अधिवक्ता गौतम भाटिया ने तर्क दिया कि क्योंकि सामग्री को हटाने से कम कुछ भी नहीं किया जा सकता है। यहां तक कि एक अस्वीकरण डालने से, मध्यस्थता पर मुकदमा चलाया जा सकता है।

याचिकाकर्ता की ओर से उपयोगकर्ताओं के लिए उपलब्ध उपचारों की कमी की ओर इशारा किया। यदि उनकी सामग्री को एफसीयू द्वारा नकली, गलत या भ्रामक (एफएफएम) के रूप में चिन्हित किया जाता है तो उपयोगकर्ताओं के लिए एकमात्र उपाय एक रिट याचिका ही है। प्रकरण में कार्यवाही के दौरान आईटी अधिनियम के अनुसार सूचना की व्यापक परिभाषा के बारे में मुद्दा भी सामने आया। सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि नियमों में जानकारी केवल तथ्यों तक ही सीमित रहेगी। हालांकि, याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि यह अदालत को कानून को फिर से लिखने के बराबर हो सकता है, जो इसकी भूमिका नहीं है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि सरकार को नकली, तथ्य और भ्रामक जानकारी की पहचान करने की अनुमति देना बहुत अधिक है। इसके परिणामस्वरूप मनमानापन और भेदभाव होता है। यह जो संविधान के अनुच्छेद 14 और 19 का उल्लंघन करता है।

नियम के सरकार के कार्य तक सीमित होने के बारे में सिरवई ने तर्क दिया कि इसमें संविधान की समवर्ती सूची में सूचीबद्ध गतिविधियों सहित गतिविधियों की एक विस्तृत श्रृंखला शामिल है। इसमें एक अवशिष्ट प्रविष्टि 97 शामिल है, जो इसे असाधारण रूप से व्यापक बनाती है। यह तर्क दिया गया था कि यह सूची में केवल 66 वस्तुओं को बाहर करता है। वरिष्ठ अभिभाषक ने दृढ़ता से तर्क दिया कि श्रेया सिंघल के फैसले में उल्लेखित अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर कानून को क्यों नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। इसका एक उदाहरण देते हुए सिरवई ने कहा डब्ल्यूएचओ कह सकता है कि कोविड से पचास लाख लोगों की मौत हुई। भारत का कहना है कि केवल पांच लाख लोगों की मौत हुई है। एफसीयू का कहना है कि डब्ल्यूएचओ का दावा गलत है। देखें कि सरकारों को कैसे बचाया जाएगा?

न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एंड डिजिटल एसोसिएशन के वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद दातार ने सरकार के इस दावे का विरोध किया कि एफसीयू एक सलाहकार क्षमता में काम करता है। सॉलिसिटर जनरल ने यह तर्क देने की कोशिश की कि एफसीयू एक सलाहकार है। यह यात्रा संबंधी सलाह नहीं है। यह एक बाध्यकारी आदेश है। एक उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा एक राष्ट्रीय समाचार पत्र कुछ प्रकाशित करता है, क्या सरकार उनसे कह सकती है कि यह नकली है और इसे हटा सकती है? तो फिर एक मध्यस्थ को कैसे कहा जा सकता है कि यह नकली, झूठा और भ्रामक है! इसे हटा दें दातार ने पूछा। दातार ने तर्क दिया कि यदि टीवी समाचार और ऑनलाइन चैनलों को इस तरह से विनियमित नहीं किया जा सकता है, तो यही सिद्धांत सोशल मीडिया बिचौलियों पर लागू होना चाहिए।

उच्च न्यायालय ने आश्चर्य व्यक्त किया कि अदालत से आईटी अधिनियम के तहत परिभाषित सूचना शब्द के दायरे को सीमित करने की उम्मीद कैसे की जा सकती है। धारा 3 (1) (बी) (5) के तहत सूचना की सीमा क्या है और इसे तथ्यों तक कैसे सीमित किया जाए? याचिकाकर्ताओं की ओर से कहा गया कि इस नियम को पढ़ा नहीं जाना चाहिए, इसे निरस्त किया जाना चाहिए। ट्यूमर होने पर उसे छेदना और निकालना पड़ता है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सबसे अधिक पोषित अधिकार है। इसकी रक्षा करें। एडिटर्स गिल्ड की ओर से पेश अधिवक्ता शादान फरसत ने कहा सरकार के कामकाज के बारे में तथ्यों की बहुत सारी व्याख्याएं हैं। भले ही इसकी संरचना संकीर्ण रूप से की गई हो। कोविड से होने वाली मौतों की संख्या, ऑक्सीजन की पर्याप्तता, किसानों की मौतों पर सरकार और अन्य लोगों की अलग-अलग व्याख्याएं हैं।

गौरतलब है कि, उच्चतम न्यायालय पहले ही न्याय क्षेत्र में मील के पत्थर साबित हुए फैसलों के द्वारा यह कह चुका है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हर नागरिक का अधिकार है। यह अधिकार उस दशा में खास साबित होता है जब शासन द्वारा मीडिया की अभिव्यक्ति की आजादी का हनन किया जा रहा हो। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि किसी भी मीडिया आउटलेट द्वारा किसी भी प्रकार की आलोचक टिप्पणियां देना उनका अधिकार है। न्यायालय ने यह भी कहा कि मीडिया देश के लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है। इस कारण सरकार किसी भी नागरिक की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन नहीं कर सकती है।

यह भी जानने लायक है कि उच्चतम न्यायालय पहले ही आर्टिकल 19 में समाहित वाक स्वतंत्रता पर समाचार माध्यम के बारे में अपना आदेश दे चुका है। इसमें समाचार एवं माध्यम को अपनी राय व्यक्त करने की स्वतंत्रता है। अब मामला सर्वोच्च न्यायालय में है। यह देखना दिलचस्प होगा कि उच्चतम न्यायालय कैसे इस मामले को अंतिम रूप देना और उपरोक्त तर्कों के बीच एक संतुलन स्थापित करने में सफल होगा।