क्या राजस्थान में 10 वर्ष के सूखे के बाद इस बार लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का खाता खुलेगा?
गोपेन्द्र नाथ भट्ट की रिपोर्ट
राजस्थान में हर बार की तरह इस बार भी लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय मुद्दों पर जातिगत और क्षेत्रीय राजनीतिक मुद्दे हावी रहें जिसके कारण भाजपा और कांग्रेस के समीकरण बनते बिगड़ते दिखें। भाजपा में नरेंद्र मोदी के के रूप में नए नेतृत्व के उभरने के बाद और हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण के कारण पिछले दो आम चुनावों 2014 और 2019 में भाजपा को प्रदेश की सभी 25 में से 25 सीटें जीतने का मौका मिला। वर्ष 2014 के चुनाव में प्रदेश में वसुंधरा राजे की भाजपा की सरकार थी लेकिन 2019 के चुनाव में अशोक गहलोत की कांग्रेस सरकार होने के बावजूद भाजपा ने प्रदेश की 25 में से 25 सीटें जीत कर इतिहास बनाया। हालांकि इसमें नागौर की एक सीट रालौपा सुप्रीमो हनुमान बेनीवाल ने भाजपा के साथ समझौता के तहत जीती थी। हनुमान बेनीवाल देश में चले किसान आंदोलन के कारण भाजपा का साथ छोड़ अलग हो गए।
इस बार यह विडम्बना दिखी कि हनुमान बेनीवाल कांग्रेस के इंडी एलायंस के साथ है और कांग्रेस से भाजपा में शामिल होकर विधायक का चुनाव हार चुकी कांग्रेस के दिग्गज जाट नेता नाथूराम मिर्धा के परिवार से जुड़ी भाजपा प्रत्याक्षी ज्योति मिर्धा के खिलाफ चुनाव लड़ रहे है। पिछले चुनाव में भी उन्होंने कांग्रेस पार्टी से चुनाव लड़ी ज्योति मिर्धा को हराया था लेकिन इस बार दोनों के समीकरण उल्टे हो गए है।
भारतीय जनता पार्टी इस बार के लोकसभा चुनाव में भी राजस्थान की सभी 25 सीटें जीत विजय की हैट्रिक बनाने को लेकर आश्वस्त है और इसके लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह,भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा और प्रदेश के मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा एवं प्रदेश अध्यक्ष सी पी जोशी आदि की टीम ने सुनियोजित चुनाव लड़ कर उम्मीदों को जिंदा रखा हुआ है,लेकिन दूसरी ओर कांग्रेस ने भी इस बार प्रदेश की तीन लोकसभा सीटों नागौर, सीकर और बांसवाड़ा डूंगरपुर को सहयोगी दलों के लिए छोड़ कर नए राजनीतिक और जातिगत समीकरण बनाए है। साथ ही पूर्व विधानसभाध्यक्ष डॉ सी पी जोशी,सात वर्तमान विधायकों के साथ ही कुछ पूर्व मंत्रियों एवं पूर्व सांसदों के अलावा अधिकांश युवा चेहरों को टिकट देकर जीत की संभावनाओं को बनाने का प्रयास किया है। कांग्रेस को उम्मीद है कि दस वर्ष के सूखे के बाद राज्य में लोकसभा के लिए इस बार कांग्रेस की जीत का खाता खुलने के प्रबल आसार है।
प्रदेश में पहले और दूसरे चरण में क्रमशः 12 एवं 13 लोकसभा सीटों पर मतदान हुआ, उनमें हमेशा की तरह जाति की राजनीति हावी रही। साथ ही दूसरे चरण में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दो विवादास्पद भाषणों के अलावा गुजरात में जाति विशेष को लेकर केंद्रीय मंत्री पुरुषोत्तम रुपाला के बयान ने भी जाति की राजनीति को हवा दी। बाड़मेर और बांसवाड़ा लोकसभा सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबला होने से भी मुकाबला रोचक हो गया और राजनीतिक जानकारों का मानना है कि भाजपा के हाथ से इस बार एक आध सीट छिटकने की संभावना है।
राजनीतिक पर्यवेक्षकों ने यह भी माना है कि पहले चरण के मतदान में गिरावट ने भाजपा की चिंताओं को बढ़ा दिया है, हालांकि आखिरी चरण में,भाजपा का यह अभियान कि कांग्रेस का सामाजिक न्याय का मुद्दा “लोगों का पैसा लेने” का एक और साधन था, से विपक्ष परेशान हुआ है ।
जैसे ही राजस्थान में शुक्रवार को 13 सीटों के लिए मतदान संपन्न हुआ। उसके साथ ही कांग्रेस राज्य में अपने 10 साल के सूखे को खत्म करने के लिए आश्वस्त दिख रही है। 2014 और 2019 में, भाजपा और उसके नेतृत्व वाले एनडीए ने राजस्थान की सभी 25 सीटें जीतीं थी। राज्य में दो चरणों के मतदान में, इस बार भाजपा को पूरी तरह से नहीं तो कम से कम आधी सीटों पर चुनौती का सामना करना पड़ा है। पिछली दो बार के विपरीत, जब मतदान बड़े पैमाने पर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर था, साथ ही साथ भाजपा के मुख्य मुद्दे राष्ट्रवाद और राम मंदिर आदि थे, जिसका प्रभाव मतदाताओं और रहा है फिर भी इस बार कुछ सीटों पर जाति की राजनीति मतदाताओं पर भारी पड़ती दिख रही है। कुल मिलाकर, इस बार कांग्रेस आशावादी है क्योंकि उसके पास खोने के लिए कुछ नहीं है, जबकि भाजपा प्रधानमंत्री मोदी द्वारा देश भर में “400 पार” के लक्ष्य को देखते हुए आत्मविश्वास से भरी हुई हैं। भाजपा का मानना है कि इस बार भी कांग्रेस राजस्थान में अपना खाता नहीं खोल पाएगी ।
राजनीतिक हलकों में यह भी माना जा रहा है कि कांग्रेस संगठन के मोर्चे पर भाजपा की तुलना में पिछड़ सकती है, जबकि गठबंधन के साथ भी उसकी राह अधिक आसान नहीं दिखाई दे रही है। उदाहरण के लिए, आधिकारिक तौर पर कांग्रेस बांसवाड़ा में भारतीय आदिवासी पार्टी (बीएपी, बाप) का समर्थन कर रही थी, वही कांग्रेस का एक उम्मीदवार भी मैदान में था जिसने ऐन वक्त पर अपना नाम वापस नहीं लिया । कांग्रेस द्वारा बाप पार्टी के साथ समझौते के लिए अपना मन बनाने में कथित देरी के कारण, बीएपी ने चित्तौड़गढ़ और उदयपुर में भी अपने उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारे , जहां कांग्रेस चुनाव लड़ रही है। इन सीटों पर बीएपी के उम्मीदवारों द्वारा हासिल किए जाने वाले वोट भाजपा के लिए फायदेमंद ही साबित होंगे, ऐसा माना जा रहा है।
पीछे मुड़कर देखें तो कांग्रेस को अपने शीर्ष नेताओं जैसे अशोक गहलोत, सचिन पायलट,भंवर जितेंद्र सिंह और गोविंद सिंह डोटासरा आदि वरिष्ठ नेताओं पर चुनाव लड़ने के लिए जोर न देने का अफसोस हो सकता है। कथित तौर पर वे चुनाव लडने का जोखिम नहीं लेना चाहते थे जबकि उनकी मौजूदगी कार्यकर्ताओं में जोश भर सकती थी। राजस्थान को लेकर कांग्रेस की अनिश्चितता इस बात से भी झलकती है कि उसके किसी भी शीर्ष नेता मल्लिकार्जुन खड़गे, राहुल गांधी या प्रियंका गांधी आदि ने दूसरे चरण में राज्य में कोई रैली या सभा नहीं की। हालांकि, पहले चरण में सोनिया गांधी जयपुर की एक रैली में दिखाई दी थी।लोकसभा चुनाव में पूरे देश में अब तक की उनकी यह एकमात्र रैली थी। राजस्थान में दूसरे चरण की 13 लोकसभा सीटों के मुकाबलों में से भाजपा को बाड़मेर में सबसे ज्यादा परेशानी का सामना करना पड़ा है, जहां मौजूदा केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री कैलाश चौधरी का मुकाबला निर्दलीय रवींद्र सिंह भाटी और कांग्रेस के उम्मेद राम बेनीवाल से है। राजपूत और कुछ अन्य समूह भाटी का समर्थन कर रहे हैं, जबकि जाट बेनीवाल और चौधरी के पीछे खड़े दिख रहे हैं, जिसमें भी बेनीवाल का पलड़ा भारी दिखाई दिया है। जालौर में कांग्रेस के लिए बहुत कुछ दांव पर लगा है, जहां उसके पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत भाजपा के जमीन से जुड़े लुंबाराम चौधरी के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं। गहलोत ने अपने पुत्र वैभव गहलोत के लिए आक्रामक तरीके से प्रचार किया हैं, जो कि 2019 में जोधपुर से चुनाव हार गए थे, जबकि उनकी वैभव की पत्नी हिमांशी वैभव के “बाहरी” के टैग से लड़ने के लिए स्वयं मैदान में उतरी । जोधपुर में, केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, जो कि राजस्थान में भाजपा के सबसे मजबूत राजपूत चेहरे माने जाते हैं, कांग्रेस के करण सिंह उचियारदा के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं, जो कि इसी समुदाय से हैं। बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि जाट और बिश्नोई जैसी अन्य जातियां ने इस बार कैसे वोट किया हैं। शेखावत ने केंद्रीय जल शक्ति मंत्री होने के बावजूद निर्वाचन क्षेत्र के ग्रामीण इलाकों में पीने के पानी की समस्याओं को लेकर भी कई सवालों का सामना किया हैं।
कोटा में, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने सत्ता विरोधी लहर और “पहुंच से बाहर” होने के आरोपों का सामना किया हैं, जबकि भाजपा से बागी होकर कांग्रेस उम्मीदवार बने प्रहलाद गुंजल ने दबंग रूप में अपने ही पुराने मित्र को चुनौती पेश की है। बिड़ला को क्षेत्र पर अपनी मजबूत पकड़, पार्टी के अच्छे प्रबंधन के साथ-साथ क्षेत्र में अपनी मजबूत पकड़ के साथ ही प्रधानमंत्री मोदी के करीबी होने की धारणा का भी फायदा मिला है।
इधर राजस्थान में लोकसभा की 25 सीटों पर चुनाव संपन्न होने के बाद भी राजनीतिक संग्राम कम होने का नाम नहीं ले रहा है।
दोनों दलों भाजपा और कांग्रेस में दल बदल कर उम्मीदवार बने , पार्टी विचार धारा से अलग दलों के साथ गठबंधन करने और बाहर से आकर चुनाव लडने वाले प्रत्याशियों के खिलाफ आम कार्यकर्ताओं में असंतोष देखा गया है।हालांकि इन दलों के अधिकांश नेताओं ने हालात की नाजुकता और पार्टी के निर्णयों को सर माथे चढ़ाया लेकिन कतिपय नेताओं ने आखिरी वक्त तक इसे स्वीकार नहीं कर पार्टी के अधिकृत प्रत्याशियों के खिलाफ काम किया है।
इस मध्य कांग्रेस ने राजस्थान में अपने दो नेताओं एक पूर्व वरिष्ठ मंत्री अमीन खान और प्रदेश कांग्रेस कमेटी के पूर्व सचिव बालेंदु सिंह शेखावत को लोकसभा चुनाव के दौरान बाड़मेर और जालौर निर्वाचन क्षेत्रों में पार्टी के उम्मीदवारों के खिलाफ प्रचार करने के आरोप में छह साल के लिए निलंबित कर दिया है। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) ने बाड़मेर जैसलमेर में पार्टी उम्मीदवार राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (रालौपा) से कांग्रेस में शामिल हुए उम्मेदा राम बेनीवाल और जालौर सिरोही में पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पुत्र वैभव गहलोत द्वारा इन नेताओं पर कथित “पार्टी विरोधी गतिविधियों” की शिकायतों के बाद यह कार्रवाई की है।
एआईसीसी के प्रदेश प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा ने दो अलग-अलग आदेशों में कहा है कि अमीन खान और शेखावत को अनुशासनहीनता और पार्टी विरोधी गतिविधियों के कारण निलंबित किया गया है।
उल्लेखनीय है पांच बार के विधायक अमीन खान ने कथित तौर पर राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (रालौपा) से कांग्रेस में शामिल हुए उम्मेदाराम बेनीवाल की उम्मीदवारी का विरोध किया था और निर्दलीय उम्मीदवार और भारतीय जनता पार्टी के बागी रवींद्र सिंह भाटी के पक्ष में बयान जारी किया।
प्रदेश कांग्रेस कमेटी के पूर्व सचिव बालेंदु सिंह शेखावत पूर्व विधानसभा अध्यक्ष दीपेन्द्र सिंह शेखावत के पुत्र है। बताया जा रहा है कि उन्होंने भी वैभव गहलोत तथा उम्मेदाराम बेनीवाल को अपेक्षित सहयोग नहीं दिया। किसी समय अशोक गहलोत के विश्वास पात्र रहें पूर्व विधान सभा अध्यक्ष दीपेन्द्र सिंह शेखावत बाद में पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट गुट के साथ चले गए। इस कारण बालेंदु सिंह शेखावत भी पायलट गुट के साथ माने जाते है।
अब यह देखना रोचक होगा कि क्या भाजपा सभी 25 सीटें जीतेगी तथा राजस्थान में दस वर्ष के सूखे के बाद लोकसभा के लिए इस बार कांग्रेस का खाता खुल पाएगा अथवा नहीं?