Loksabha Election 2024:भाजपा इस बार 350 पार
यदि कोई आसमानी,सुल्तानी कारण नहीं रहे तो भाजपा को लोकसभा चुनाव में इतनी सीटें मिलने के प्रबल आसार हैं। याने पिछली बार(303)से करीब 50 सीट ज्यादा। सात चरणों में होने वाले चुनाव के दो दौर के धीमे और कम मतदान के परिप्रेक्ष्य में यह आंकड़ा कुछ ज्यादा ही लगता है, लेकिन हकीकत के धरातल पर यह किसी भी तरह से जादुई आंकड़ा नहीं है। जादुई आंकड़ा तो 400 के पार वाला रहेगा, जिसके लिये भाजपा पूरा जोर लगा रही है और कार्यकर्ताओं से लेकर तो जनता के बीच तक इस संख्या को मोदी जी समेत पूरी भाजपा दोहरा भी रही है। आखिरकार,किस तरह से भाजपा 350 के पार निकलने को तैयार है,आइये समझते हैं।
भारतीय जनता पार्टी ने बेहद रणनीतिक चुराई से संसद से सड़क तक अपने आत्म विश्वास के बीज फैलाये हैं। इसका अंकुरण बस होने ही वाला है। लोकसभा के अंतिम सत्र को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सबसे पहले 400 पार की हुंकार भरी थी। यह विशुद्ध राजनीतिक बयान ही था, जो कोई भी दृढ़ निश्चयी नेता देता है। यह वैसा ही है कि युद्ध भूमि में 10 हजार की सेना वाला सेनापति अपनी सेना का मनोबल बरकरार रखने व बढ़ाने के लिये एक लाख की विपक्षी सेना को देखकर देता है। फिर यहां तो एक लाख वाला सेनापति कुछेक सैकड़ा विपक्षी सेना के सामने अपने दल में इस तरह की जोश भरी बात कह रहा है। पहला कारण तो यही है, जो भाजपा को अपने लक्ष्य के करीब पहुंचने के प्रति आश्वस्त बनाता है.
दूसरे क्रम पर वह बात आती है, जिसमें भाजपा नेतृत्व ने कार्यकर्ताओं को प्रत्येक बूध पर 370 नये मतदाता अपने पक्ष में करने का आव्हान करते हुए लक्ष्य साधने का कहा था। यहां 30 सीटों के फर्क को भी समझना होगा। संसद और सड़क पर 400 का नारा विपक्ष व जनता को प्रभावित करता है। यह आंकड़ा जहां विपक्ष को विचलित करता है तो जनता के बीच यह भाव जगाता है कि भाजपा इतनी शक्तिशाली पार्टी है कि विपक्ष अब कहीं ठहरने वाला नहीं तो कांग्रेस या गठबंधन के दलों को वोट देकर क्यों बिगाड़ा जाये? यह मनोविज्ञान भी काफी काम करता है।
कुछ तर्क शास्त्री कहते हैं कि प्रत्येक बूध पर 370 नये मतदाता बढ़ाना असंभव है, जो कि पूरी तरह सही है, लेकिन वे यह भूलते हैं कि यह शोशेबाजी तो कार्यकर्ता में जोश भरने के लिये होती है, जो युद्ध के मैदान में जीत की संभावना को बढ़ाने का प्रमुख प्रेरक तत्व है। हताशा तो आत्म हत्या के लिये ढकेलती है, जबकि भाजपा के खेमे में किसी तरह की निराशा की हाल-फिलहाल तो कोई गुंजाइश नहीं । यदि प्रत्येक बूथ पर कार्यकर्ता ने औसत 25 नये मतदाता भी बढ़ा लिये तो भाजपा अपने 350 के पार के लक्ष्य को हंसते-खेलते प्राप्त कर लेगी।
तीसरा प्रमुख और सर्वाधिक महत्वपूर्ण कारण यह है कि देश भर के कांग्रेस कार्यकर्ता में घोर निराशा,अनिश्चय का वातावरण है। वह इस असंमजस से उबर ही नही पा रहा कि वह कांग्रेस में ही रहे,इंतजार करे या देर किये बिना अपने और अपनी भावी पीढ़ी के भविष्य को सुरक्षित करने के लिये भाजपा या किसी भी दूसरे ऐसे दल में चला जाये, जहां वह सत्ता का शहद चख सके। कांग्रेस के भीतर की इस हलचल को जनता भी बेहद गंभीरता से महसूस कर चुकी है। ऐसे में उसका यह सोचना स्वाभाविक है कि वह डूबती नाव में क्यों सवार हो? कांग्रेस के प्रति उसकी नाराजी,असहमति के दूसरे कारण(राम मंदिर,तुष्टिकरण,जातिवाद,370 की समाप्ति का वादा आदि) तो उसके दिलो दिमाग पर छाये हुए हैं ही। जहां यह स्थिति भाजपा के लिये सोने पर सुहागा है, वहीं कांग्रेस के लिये आग में घी डालने जैसा है।
एक और उल्लेखनीय बात भाजपा के पक्ष में यह है कि 2019 के चुनाव में भाजपा करीब सौ सीटों पर दूसरे क्रम पर थी। संगठन आधारित भाजपा चुनाव में जीत-हार के बाद से अगली यात्रा पर चल पड़ती है। इस दिशा में भी उसने तब से कदम आगे बढ़ा लिये थे। ऐसा करते हुए उसने जीती हुई सीटों की उपेक्षा नहीं कर दी, बल्कि उन्हें अधिक मजबूती देने के प्रयास भी चलते ही रहे। इस तरह से यदि पिछली सफलता को थोड़ा कम-ज्यादा बरकरार रखते हुए हारी हुई सौ सीटों में से आधी भी साध ली तो सोचिये कि 350 पार निकलने में कितनी देर लगेगी।
यहां हलिया दो दौर के कम मतदान को भी प्रेक्षक भाजपा के लिये चिंताजनक बताते हैं। जबकि यह सोच पूरी तरह से एकतरफा है। पिछले दस साल के शासनकाल में भाजपा से सत्ता विरोधी मानस,गुस्सा,शिकायत जैसा तो कुछ नजर नहीं आ रहा। तब कम मतदान भाजपा की बजाय कांग्रेस का क्यों नहीं हो सकता? केवल इस सोच की वजह से कि उसका वोट कांग्रेस की कायापलट करने में कतई सक्षम नहीं है, कांग्रेस का निष्ठावान मतदाता घर से निकला ही न हो । ऐसे में भाजपा का अपने दम पर 350 के पार निकलना और सहयोगी दलों के साथ 400 की छलांग लगाना कोई असंभव लक्ष्य नहीं माना जा सकता। अगले दो चरणों के बाद कुछ स्पष्ट संकेत प्रकट होने लगेंगे। कांग्रेस नीत गठबंधन में परस्पर टकराव,वर्चस्व को लेकर मन में संदेह और कांग्रेस की बस्तियों का उजड़कर भाजपा के शहर का हिस्सा बनना समूचे विपक्ष को हतप्रभ और कमजोर कर रहा है। इसे मतदाता बखूबी समझ रहा है,जो अंतिम परिणाम के साथ स्पष्ट हो ही जायेगा।