Kissa-A-IAS: ये है 2003 बैच की हनुमान भक्त IAS अफसर !

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Kissa-A-IAS: ये है 2003 बैच की हनुमान भक्त IAS अफसर !

 

माना जाता है कि प्रशासनिक सेवा के अफसरों के पास व्यस्तता ज्यादा होती है। ये बात काफी हद तक सही भी है। उन्हें अपनी रुचियों तक के लिए पर्याप्त समय नहीं मिल पाता। लेकिन, फिर भी कुछ अफसर ऐसे हैं, जो दिनभर की व्यस्तता के बावजूद अपनी रुचियों का ध्यान रखते हैं। फिर ऐसे अफसर जो करते हैं, वो वास्तव में कमाल होता है।

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2003 बैच की IAS अधिकारी और वर्तमान में उत्तर प्रदेश राज्य कर आयुक्त मिनिस्ती एस की रुचि धार्मिक किताबों के अंग्रेजी अनुवाद में है। उन्होंने रामचरित मानस के सात सोपान में से चार सोपान का अंग्रेज़ी अनुवाद कर उसे प्रकाशित भी किया। ये हैं लंका कांड, सुंदरकांड, अरण्य कांड और किष्किंधा कांड शामिल हैं। बाल कांड पर अनुवाद का काम जारी है। रामचरित मानस को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाने की एक IAS अधिकारी ने यह पहल उल्लेखनीय है। मिनिस्ती एस वैसे तो हनुमान भक्त हैं, पर बाल कांड का अनुवाद वे चार कांड का अनुवाद करने के बाद कर रही हैं।

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उनका किया गया अनुवाद बहुत पसंद किया गया। इतना ज्यादा कि जिन दुकानों पर ये अनुदित रामचरित मानस उपलब्ध थी, वहां हाथों हाथ बिक गई। इस वजह से  किताबों के नए संस्करण प्रकाशित किए गए। रामचरित मानस का अंग्रेजी अनुवाद आसान नहीं है, इसलिए कि वो सिर्फ धार्मिक पुस्तक  है, लोगों की उससे भावना जुड़ी है।

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लेकिन, सवाल उठता है कि मिनिस्ती एस को यह प्रेरणा कहां से और कैसे मिली तो इसका कारण बेहद दिलचस्प है। वे मूलतः केरल की रहने वाली हैं और उनकी मातृभाषा मलयालम रही। उनकी पढ़ाई-लिखाई भी मलयालम भाषा में हुई। केरल में अध्यात्म रामायण का बहुत ज्यादा महत्व है। घरों में रामायण बचपन से ही पढ़ी जाती है। मिनिस्ती एस ने भी बचपन से इसे पढ़ा है और यह उनकी पढ़ाई का भी हिस्सा रही। इस वजह से उनका लगाव भी रहा।

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मिनिस्ती एस मुताबिक, जब उन्होंने देखा कि उनकी मां अवधी में रचित रामायण ठीक से समझ नहीं पा रही, तो सोचा कि जब उनकी मां को अवधी में दिक्कत आ रही है, तो इस तरह की समस्या देश की अलग-अलग भाषाओं को समझने वाले अन्य लोगों को भी होती होगी। उनको यहीं से यह प्रेरणा मिली और उन्होंने इसके अंग्रेजी इसका अनुवाद का विचार किया। माता से भी उनका अनन्य लगाव है, इसलिए उन्हें यह अनुवाद करना ही था, इससे अन्य लोगों को भी रामायण का मूल भाव समझने में आसानी हो गई।

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IAS मिनिस्ती एस आज जिस मुकाम पर हैं, इसका श्रेय वे अपनी माता सीजी तंकम्मा को देती हैं। उनका कहना है कि बचपन से अभी तक मां ने हर कदम पर और हर फैसले में उनका साथ दिया। वे जो पढ़ना चाहती थी, उसकी आजादी दी। पिता आरएस नायर से हर मुद्दे पर बात होती है, लेकिन मां सीजी तंकम्मा हर बात पर हम भाई-बहनों के पक्ष में रहती थीं। आईएएस बनने का ख्वाब देखा तो मां ने पूरा साथ दिया। वे हर मोर्चे पर दीवार बनकर खड़ी रहीं। मिनिस्ती एस कहती है कि मां ने हमें आत्मनिर्भर बनाया। महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की प्रेरणा अपनी मां से ही मिलती है।

मिनिस्ती एस कहती हैं कि हर जन्म में मुझे यही मां मिले, भगवान से यही प्रार्थना है। एक संस्मरण याद करते हुए वे बताती हैं, कि एक बार कुंभ मेले के दौरान मैं मां के साथ गंगा स्नान करने गई। मान्यता के अनुसार हम मां-बेटी ने हाथ पकड़कर गंगा में डुबकी लगाई, तो मैंने ईश्वर से यही प्रार्थना की, कि अगले जन्म में मुझे यही मां मिले। उधर, मेरी मां ने भी मुझ जैसी बेटी पाने की ईश्वर से कामना की। बाद में जब दोनों ने एक-दूसरे को अपने विचार बताए, तो आश्चर्य के साथ इसे ईश्वरीय इच्छा माना। वे साफ़ कहती हैं कि मां का दर्जा मेरे लिए सबसे ऊपर है।

केरल में पली-बढ़ी मिनिस्ती एस अनुवाद की संस्कृति से अभिभूत हैं। उन्हें आशापूर्णा देवी के बंगाली उपन्यास का पढ़ना याद है। खांडेकर की मराठी किताबें और रूसी क्लासिक्स भी उन्होंने मलयालम में पढ़ी है। इससे उनका साहित्य के प्रति अनुराग जागा। पहली बार 2014 में अमेरिकी कवि डेनियल लैडिंस्की के लेखन का मलयालम में अनुवाद करके उन्होंने अनुवाद के क्षेत्र में हाथ आजमाना शुरू किया। तब से उन्होंने केआर नारायणन की किताबों का अनुवाद किया। मीरा के उपन्यास ‘द अनसिंग आइडल ऑफ लाइट’ और ‘पॉइज़न ऑफ लव’ का मलयालम से अंग्रेजी में अनुवाद किया। उन्होंने वीजे जेम्स के मलयालम उपन्यास ‘निरेश्वरन’ का अंग्रेजी में अनुवाद किया।

अनुवाद के लिए सबसे मुश्किल काम होता है शब्दों का मिथक जिसका तात्पर्य है अनुवाद के लिए सही शब्द का चुनाव। इस बहाने वे स्कूली जीवन में लौटी और सही शब्दों को चुना। उनका कहना है कि जब मैं घर पर होती हूं, तो अपने ड्राइंग रूम में सिर्फ अनुवाद का काम करती हूं। मैं अपनी किताबें और लैपटॉप हमेशा सोफे पर रखती हूं और वहीं काम करती हूं। मुझे बच्चे भी काम करने से डिस्टर्ब नहीं करते। बच्चे जानते हैं कि अम्मा अनुवाद कर रही हैं, इसलिए उन्हें परेशान मत करो। उस समय मेरे पास सिर्फ एक कप कॉफी होती है और यही मेरा अपना छोटा सा स्वर्ग है।

वे बताती हैं कि जब मैंने अनुवाद की शुरुआत की, तो लिखने का काम कलम और कागज से किया। क्योंकि, उस समय मुझे मलयालम में टाइप करना नहीं आता था। जब भी मुझे खाली समय मिलता, मैं इसकी प्रैक्टिस करती रही। फिर मुझे इसकी आदत हो गई। जहां तक इसके लिए समय निकालने की बात है तो कभी मैं दोपहर के भोजन के लिए घर आती हूं। अगर मुझे आधा घंटा भी खाली मिलता है, तो मैं सिर्फ एक पैराग्राफ का अनुवाद कर लेती हूं। आशय यह कि मेरे अनुवाद के शौक को परिवार का पूरा सहयोग मिलता है।

मिनिस्ती एस अपने काम को लेकर भी बेहद सजग हैं। उत्तर प्रदेश के राज्य कर (जीएसटी) विभाग को राष्ट्रीय स्तर पर वित्तीय क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रदर्शन करने के लिए चौथा  टीआईओएल राष्ट्रीय कराधान पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। यह पुरस्कार दो श्रेणियों में दिया गया। पहला पुरस्कार वैट राज्यों की जीएसटी विभाग की श्रेणी में सिल्वर तथा दूसरा रिफॉर्मिस्ट राज्यों की श्रेणी में ज्यूरी पुरस्कार दिया गया। वाणिज्य कर से जीएसटी प्रणाली में परिवर्तित होने के बाद से विभाग की राजस्व संग्रह की प्रक्रिया में भी बदलाव आया तथा राष्ट्रीय स्तर पर जीएसटी संग्रह में उत्तर प्रदेश 5वां सर्वाधिक राजस्व देने वाला राज्य बन गया।