आज पांच दिन का महायज्ञ बिना विघ्न के संपन्न हो रहा है। विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम यानि पर्वतराज हिमालय की तरह विशाल ह्रदय वाले श्रेष्ठजन अध्यक्षता में जिस तरह पक्ष-विपक्ष के माननीय सदस्यों यानि देवों ने इस विधानसभा सदन यानि यज्ञ भूमि स्थल में अपनी विशेष उपस्थिति दर्ज कराई है।
आज उनकी विदाई का अवसर आ गया है। इस बार पूरे पांच दिन के सत्रावधि में आपकी उपस्थिति से यज्ञ भूमि यानि सदन धन्य-धन्य हुआ है। अपने-अपने क्षेत्र की प्रजा को छोड़कर राजधानी में डेरा डालकर सदन में रहकर जनहित में विभिन्न महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा में सबने जो सहभागिता की है,उसका कोई मूल्य नहीं आंका जा सकता। प्रदेश में लोककल्याण के कार्यों के लिए आवश्यक धनराशि की व्यवस्था का महती कार्य बिना आप देवों के समर्थन के संभव नहीं था।
अगले तीन माह तक साम्राज्य में जो विकास की गंगा बहेगी और खुशियों का माहौल विद्यमान रहेगा, उसके लिए प्रदेश के सभी वर्ग के लोग, नर-नारी, बच्चे-बुजुर्ग सभी आपके प्रति कृतज्ञ रहेंगे। और इस अल्प समय में मध्यप्रदेश प्रांत की 51 फीसदी आबादी के कल्याण के लिए आप सभी देवों-देवियों ने पक्ष-विपक्ष का भेद भुलाकर भावविभोर होकर जिस एकता का परचम फहराया है, वह सर्वथा अविस्मरणीय है। अन्य प्रांतों में भी आपकी यशगाथा की भूरि-भूरि प्रशंसा हो रही है। यह यज्ञ भूमि भी आपके इस उपकार को कभी विस्मृत नहीं कर सकेगी और साम्राज्य की 51 फीसदी पिछड़ी आबादी तो जन्म-जन्मान्तर तक देव-देवाधिदेवों और देवियों की इस करुणा के आगे नतमस्तक होती रहेगी।
यह संकल्प कि बिना 27 फीसदी आरक्षण के पंचायत चुनाव कराने के सबसे बड़ी अदालत के फरमान ने प्रदेश की जनता के सबसे बड़े हितैषी 230 जनप्रतिनिधिगण देवों-देवियों को सर्वाधिक दुःखी किया है। और सभी की एकराय है कि पिछड़ा वर्ग को यह 27 फीसदी आरक्षण की अनुमति भी मिले और पंचायत चुनाव भी इनके साथ कराने का प्रावधान हो ताकि पहले की तरह इस पंचायत महायज्ञ को खुशी-खुशी संपन्न किया जा सके। दलों से ऊपर उठकर यह ह्रदय प्रदेश के जनप्रतिनिधियों के दिलों की आवाज है।
तो आज इस यज्ञ की पूर्णाहुति का समय है। दो माह बाद ही एक बार फिर दीर्घावधि के लिए आपकी उपस्थिति से यह धरा फिर धन्य होगी। इसी उम्मीद के साथ भारी मन से विदाई के क्षण आ पहुंचे हैं। तो कथा विसर्जन होत है सुनउ जनप्रतिनिधिगण महान… जो जन जंह से आए हैं सो तंह करहिं पयान…। अपनी-अपनी धरा को प्रस्थान करो आदरणीय जनप्रतिनिधिगण। वैसे कुछ देव तो अपने-अपने गंतव्य स्थल पर इस औपचारिक आह्वान से पहले ही प्रस्थान कर चुके होंगे। अपनी-अपनी अनुकूलता को देखते हुए फिर भी इन प्रतिकूल परिस्थितियों में जिसने जितना समय यहां समर्पित किया है, उसके लिए सभी वंदन योग्य हैं।
अभी एक दिन पहले का ही दृश्य है, जब यज्ञ भूमि में दोनों ही दिशाओं से कोलाहल का अद्भुत दृश्य अवतरित हुआ था। और आकाश में नारायण ने नारद से यकायक ही प्रश्न किया था कि मुनि श्रेष्ठ यह कोलाहल कहां हो रहा है? कहीं कोई विशेष अशांति का माहौल बन पड़ा है क्या? या कानून-व्यवस्था की स्थिति बन पड़ी है कहीं? तब मुनि श्रेष्ठ नारद ने नारायण को विस्तार से बताया था कि प्रभु यह कोलाहल भारतभूमि के ह्रदय प्रदेश की राजधानी के विधानसभा भवन में हो रहा है।
यहां ऐसे दृश्य अक्सर ही देखने को मिलते है, जब-जब पक्ष-विपक्ष के जनप्रतिनिधिगण यहां एक साथ उपस्थित होने का अवसर पाते हैं। तब-तब यही महसूस होता है जैसे कानून-व्यवस्था की स्थिति बन पड़ी हो। लेकिन चिंता की कोई बात नहीं है, क्योंकि यहां यह सब रंगमंच की तरह ही होता है। तब नारायण ने अनुपूरक प्रश्न किया था कि आखिर कोलाहल की वजह क्या है ऋषि श्रेष्ठ? तब नारद ने उन्हें संक्षेप में बताया था कि यहां के पंचायत चुनाव में पिछड़ा वर्ग को मिलने वाले 27 फीसदी आरक्षण को सबसे बड़ी अदालत ने समाप्त कर दिया है।
इससे पक्ष-विपक्ष के जनप्रतिनिधिगण एक जैसी पीड़ा से गुजरते हुए बहुत ज्यादा बेचैन हैं। यह ऐसी विशेष परिस्थिति मौजूद हो गई है कि मनभेद, मतभेद और दलभेद खत्म कर पक्ष-विपक्ष के सभी देव-देवियां एक ही सुर में इस आरक्षण की बहाली के बिना पंचायत चुनाव को कतई राजी नहीं हैं। हालांकि इस विषम अवसर पर भी पिछड़ा वर्ग के साथ अन्याय के लिए एक-दूसरे पर छींटाकशी से भी यह परहेज नहीं कर रहे हैं।
पर दुःख के बादल दोनों ही दलों के दिलों को भेदकर घायल कर चुके हैं। किसी को भी ऐसी आशा नहीं थी कि इन्हें यह दिन भी देखना पड़ेगा। अब नैतिक बल जुटाने के लिए संकल्प पारित किया गया है कि पिछड़ा वर्ग का आरक्षण भी बहाल हो, तभी चुनाव एक साथ कराने की प्रक्रिया हो। अदालत इस संकल्प की आंच से कितनी पसीजती हैं, यह बात और है, लेकिन कोशिश यही है कि मनौती पूरी हो तो पंचायत चुनाव का नारियल फोड़ दिया जाए।
नारायण मुस्कराकर और पीछे की तरफ गौर से देखकर फिर कुतूहलवश नारद से सवाल कर बैठे कि यह पुलिस कमिश्नर प्रणाली का रोना सुनाई दे रहा है। नारद बोले कि प्रभु आप भी पृथ्वीलोक की इन छुटपुट घटनाओं के लिए क्यों व्यथित होते हैं। विधानसभा में हर पक्ष अपनी-अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन पूरी निष्ठा के साथ करता है।
पुलिस कमिश्नर प्रणाली पर विपक्ष कह रहा है कि इससे अपराधियों के गैंग बढ़ जाते हैं तो पक्ष इसे विपक्ष के हास-परिहास से ज्यादा कुछ भी तवज्जो देने को राजी नहीं है। और प्रभु चिंता की कोई बात इसलिए भी नहीं है कि यहां हास-परिहास की परंपरा बहुत प्राचीन है। कभी एक-दूसरे के प्रति जो आक्रोश दिखाया जाता है, वह भी बहुत नाटकीय होता है। जो कभी संवाद अदायगी में कट्टर दुश्मन नजर आते हैं, वही दृश्य बदलने पर जिगरी दोस्त की तरह गलबहियां करते दिखाई देते हैं।
और प्रभु यही वह प्रांत है, जिसमें सरकार की अदला बदली पर आप भी दांतों तले उंगली दबाने को मजबूर हो गए थे…! आपने कहा भी था कि नारद …ऐसा भी होता है कहीं। नाथ जो अब विपक्ष में हैं, नेता प्रतिपक्ष बने बैठे हैं और जिन्हें बोलने का मौका न मिलने से गुरुवार को संकल्प पारित होने के बाद उनके दल ने सदन की कार्यवाही का बहिष्कार कर दिया था। यह नाथ ही पंद्रह महीने सरकार के मुखिया रह चुके हैं।
इनके दल के ही मंत्री-विधायक पाला बदलकर जब शिव के दल के पाले में पहुंचे, तब नाथ को मजबूरन नेता प्रतिपक्ष बनना पड़ा और शिव सरकार के मुखिया बन पाए। अब देखो प्रभु वही मंत्री नाथ को आइना दिखा रहे हैं और आपने खुद ही चार दिन पहले शिव के लिए सुमधुर गीत गाते-नृत्य करते नाथ के उन पुराने सखाओं को सुना ही था …। नारायण ने पूछा कि नारद थोड़ा गुनगुनाओ तो वह गीत। नारद ने सुर साधा और गीत गूंज उठा…ये दोस्ती हम नहीं तोडेंगे ,तोडेंगे दम मगर तेरा साथ न छोड़ेंगे…। जैसे ही गीत पूरा हुआ, नारायण ने मुस्कराकर नारद पर चुटकी ली कि … कथा विसर्जन होत है सुनउ नारद महान… तुम अब जंह से आए हो सो तंह करहुं पयान…।