SC Pulls up MP Government: सुप्रीम कोर्ट और जबलपुर हाई कोर्ट के ताजा फैसलों से MP सरकार कटघरे में!
श्रीप्रकाश दीक्षित की विशेष रिपोर्ट
भोपाल: मध्यप्रदेश की मोहन यादव सरकार सुप्रीम कोर्ट और जबलपुर हाई कोर्ट के ताजा फैसलों से कटघरे में आ गई है। इसे सुप्रीम कोर्ट और जबलपुर हाई कोर्ट के ताजा फैसलों से बखूबी समझा जा सकता है.
दरअसल स्मिता श्रीवास्तव ने 16 साल पहले संविदा शाला शिक्षक की परीक्षा पास की थी पर उन्हें नियुक्ति नहीं दी गई. सुप्रीम कोर्ट ने इसे भयावह मामला मानते हुए आदेश दिया है कि उन्हें साठ दिन के भीतर नियुक्ति के साथ 10 लाख रुपए मुआवजा भी दिया जाऐ. इसे बतौर जुर्माना उन अफसरों से वसूला जाएगा जो इसके जिम्मेदार हैं.
सुप्रीम कोर्ट/हाई कोर्ट ने जून/दिसंबर में रिटायर पेशनरों को इंक्रीमेंट देने का आदेश दिया है उसे लेकर भी भ्रम पैदा किया जा रहा है.
जबलपुर हाई कोर्ट ने शहडोल की सेवानिवृत्त सहायक शिक्षिका हमीदा बानू को भी ब्याज के साथ सेवानिवृत्ति के दावों का भुगतान करने के निर्देश दिए हैं. अदालत ने अपनी तल्ख टिप्पणी में कहा कि यह शिक्षा विभाग के अधिकारियों द्वारा शासकीय कर्मी के उत्पीड़न का स्पष्ट मामला है। हाई कोर्ट ने एक अन्य मामले में स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारी की बर्खास्तगी रद्द कर दी।
छह आठ महीने पहले सुप्रीम कोर्ट ने रिटायर्ड शासकीय सेवक की याचिका पर फैसला सुनाया कि 30 जून और 31 दिसम्बर को रिटायर कर्मचारी को साल भर की सेवा के बाद एक जुलाई और एक जनवरी को मिलने वाले इंक्रीमेंट के लाभ से वंचित नहीं किया जा सकता है. इस प्रकार केन्द्र और राज्य सरकारें साल भर काम के बाद मिलने वाली वेतन वृद्धि देने को बाध्य हो गई हैं. जब मध्यप्रदेश सरकार ने यह आदेश मानने मे आनाकानी की तब हाई कोर्ट ने अवमानना याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करने को कहा.
इसके बाद राज्य के वित्त विभाग ने टालमटोल करते हुए आदेश जारी किया जिसमें उदभूत जैसे भ्रमित करने वाले संस्कृतनिष्ठ शब्द का इस्तेमाल किया गया है. इसे लेकर वकीलों के मार्फ़त प्रचारित किया जा रहा है कि जो कोर्ट से आदेश लाएगा, उसे ही इंक्रीमेंट का लाभ मिलेगा?
यह बड़ी अदालतों के आदेशों का उल्लंघन है और मुकदमेबाजी को न्यौता देने वाला है. हर मुकदमे मे सरकार एक पक्ष होगी और वकीलों पर उसे करोड़ों खर्च करने होंगे और अदालतों पर अनावश्यक मुकदमों का बोझ पड़ेगा सो अलग. दूसरे इस फैसले का उस रिटायर लाभार्थी को फायदा नहीं मिलेगा जिसकी अदालत जाने की हैसियत नहीं है.
यदि सरकार ने इस मामले में समय रहते कोई ठोस कदम नहीं उठाया तो उसे अदालत में शर्मसार होना पड़ेगा।