Silver Screen:भव्यता, तहजीब और आजादी के संघर्ष की मिसाल यानी ‘हीरामंडी’

794

Silver Screen:भव्यता, तहजीब और आजादी के संघर्ष की मिसाल यानी ‘हीरामंडी’

 

फिल्म इंडस्ट्री का पहला ‘शो मैन’ राज कपूर को माना जाता है, जिनके फिल्मांकन का कैनवस बहुत भव्य होता था। उनकी अधिकांश फिल्मों में ये दिखाई भी देता है कि जब किसी कथानक पर काम करते थे, तो उसमें डूब से जाते थे। उनके बाद यही नाम सुभाष घई को दिया गया। उनकी फिल्मों का कलेवर और कैनवस भी बहुत विशाल होता था। उनके बाद ‘शो मैन’ का ख़िताब मिला संजय लीला भंसाली को जिन्होंने अपनी फिल्मों को एक नया स्वरुप दिया। हम दिल दे चुके सनम, देवदास, बाजीराव मस्तानी और ‘पद्मावत’ जैसी उनकी फिल्मों में दर्शकों ने अलग ही भव्यता देखी। अब अपनी वही प्रतिभा वे अपनी पहली ओटीटी वेब सीरीज ‘हीरामंडी’ में ले आए। इस वेब सीरीज के रिलीज होने के साथ ही संजय लीला भंसाली अच्छी खासी चर्चा में हैं। खास बात यह कि उनको लेकर हो रही सारी चर्चा उनके काम के स्तर और सकारात्मक पक्ष को लेकर है। ‘हीरामंडी’ जैसे तवायफों के विषय को उन्होंने जिस भव्यता से फिल्माया और बारीकियों का ध्यान रखा, वो उनके काम के प्रति समर्पण को दर्शाता है।

IMG 20240524 WA0075

संजय लीला भंसाली अपने काम से कोई समझौता नहीं करते, यही कारण है कि उन्हें राज कपूर और सुभाष घई की तरह या यूं कहें कि उनसे कहीं ज्यादा बड़ा ‘शो मैन’ कहा जाता है। ‘हीरामंडी’ एक पीरियड कथानक है, जो 1940 और उसके आसपास के दौर की कहानी कहता है। ख़ास बात यह भी है कि भारत के किसी शहर की नहीं, बल्कि ये बंटवारे से पहले पाकिस्तान के शहर लौहार की कहानी है। ‘हीरामंडी’ तवायफों का इलाका हुआ करता था, जिसे लेकर यह कहानी गढ़ी गई। वो दौर आजादी के आंदोलन का भी रहा, तो उसमें आजादी के लिए संघर्ष करने वाले क्रांतिकारियों को भी जोड़ा गया। शुरूआत के कुछ एपिसोड देखकर नहीं लगता कि ‘हीरामंडी’ की दो प्रतिद्वंदी तवायफों का किस्सा अंत तक आते-आते क्रांतिकारियों से जुड़ जाएगा और क्लाइमेक्स भी उसी पर केंद्रित होगा, पर हुआ यही!

IMG 20240524 WA0070

संजय लीला भंसाली का कहानी को फिल्माने का अपना अलग ही तरीका है, जो ‘हीरामंडी’ में भी दिखाई दिया। ‘हीरामंडी’ सिर्फ आठ घंटे के आठ एपिसोड तक फैली लंबी कहानी ही नहीं है, इसमें बहुत कुछ ऐसा है, जो अपने आप में अनोखा कहा जाएगा। सेट की भव्यता तवायफों की पोशाक बताती है, कि संजय लीला भंसाली ने उस समय के दौर को कितनी गंभीरता से समझा और उसका फिल्मांकन किया। लेकिन, इस भव्यता से वेब सीरीज के बजट का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। नवाबों और महाराजाओं के उस समय काल में तवायफों की समाज में क्या जगह थी और तहजीब को लेकर उन्हें किस तरह इज्जत बख्शी जाती थी, ये ‘हीरामंडी’ देखकर ही पता चलता है। गौर करने वाली बात यह भी है कि फिल्म का काफी कुछ हिस्सा कम रोशनी में फिल्माया गया, जो थोड़ा खलता है। फिर भी ये निर्देशक की अपनी पकड़ है, कि वे दर्शकों को इसका अहसास नहीं होने देते।

IMG 20240524 WA0072

संजय लीला भंसाली के लिए तवायफों की दुनिया शुरू से ही रुचि का विषय रहा है। पहले उन्होंने ‘देवदास’ की चिर-परिचित कहानी को अपने अंदाज में फिल्माया। इसके बाद ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ के जरिए तवायफों की जिंदगी के दुख-दर्द के अंदर झांका। जबकि, ‘हीरामंडी’ भी इन्हीं तवायफों की जिंदगी का सच बखान करती है, पर कुछ अलग अंदाज में। ‘हीरामंडी’ की ये तवायफें अभाव में नहीं जीतीं और न किसी से डरती हैं। अंग्रेजी शासनकाल में भी उनकी दबंगता का अपना अलग ही अंदाज दिखाया गया। ‘हीरामंडी’ में मनीषा कोइराला और उनसे जुड़ी तवायफों के जरिए इस बाजार की शानो-शौकत को दिखाया गया है। जिसमें मनीषा कोइराला और सोनाक्षी सिन्हा की आपसी प्रतिद्वन्द्विता में बाजार पर कब्जे का संघर्ष है। इनके बीच शर्मीन सहगल को अड्डे की ऐसी लड़की बताया गया, जो तवायफों की दुनिया से निकलना चाहती है। उसे शायरी करना पसंद है, पर वो बाहर निकल नहीं पाती। वो जिसके सहारे इस दलदल से निकलने की कोशिश करती है, उसी की वजह से अंग्रेज सरकार के निशाने पर भी आ जाती है।

IMG 20240524 WA0071

पहली बार परदे पर दिखाया गया कि आजादी के संघर्ष में तवायफों की भी अपनी भूमिका रही। ये वास्तव में हुआ भी या नहीं, यह तो पता नहीं! पर, संजय लीला भंसाली ने अपनी इस वेब सीरीज में जिस तरह घटनाओं के मनकों को पिरोया है, वो देखते समय तो सच जैसा लगता है। क्योंकि, कैनवास की भव्यता और कहानी की कसावट दर्शक को कुछ और सोचने का मौका ही नहीं देती। इससे यह भी प्रतीत होता है कि यदि निर्देशक की कल्पनाशीलता विशाल हो और बजट कोई मुद्दा नहीं हो, तो सामान्य से कथानक को भी भव्यता दी जा सकती है। ‘गोलियों की रासलीला: रामलीला’ के बाद संजय लीला भंसाली ने पीरियड और कॉस्टयूम ड्रामा को लेकर लगातार प्रयोग किए। इसके बाद बाजीराव मस्तानी, पद्मावत और ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ में भी कॉस्ट्यूम ड्रामा ही था। पर, ‘हीरामंडी’ में उसका भव्य रूप नजर आता है। यह इसलिए भव्य कहा जाएगा कि भंसाली ने यह सब डिजिटल प्लेटफॉर्म के लिए रचा। वे यथार्थ की दुनिया से लाहौर की तवायफों का स्वप्नलोक गढ़ने में सफल रहे।

IMG 20240524 WA0073

संजय लीला भंसाली ने ‘हीरामंडी’ के जरिए उस दौर के नवाबों की दुनिया का नजारा तो दिखाया ही साथ ही तवायफों की समाज में इज्जत और उनका दबदबा भी दिखाया। ‘हीरामंडी’ तवायफों की वो दुनिया थी, जहां नवाबों की अय्याशी पलती थी और ये उनकी बेगमों को स्वीकार भी था। तवायफ़ों को लाहौर के इस बाजार से महफिल सजाने के लिए बुलाया जाता था। लेकिन, वैश्याओं की तरह नहीं, बल्कि नाचने-गाने वाली फ़नकारा की तरह। उन्हें मेहमान की तरह आमंत्रित किया जाता और बकायदा इज्जत बख्शी जाती। नवाबों के यहां इन्हीं तवायफों को तहजीब की पाठशाला कहा जाता था। एक दृश्य में कुदसिया बेगम (फरीदा जलाल) लंदन से पढ़कर लौटे अपने पोते ताजदार से कहती हैं ‘हिंदी जुबां और रिवायतें हम नहीं सिखा सकते, इसके लिए आपको ‘हीरामंडी’ जाना होगा।’ इस पर ताजदार कहता है कि वहां तो अय्याशी सिखाते हें। इस पर दादी कहती हैं, व्हाट नानसेंस। वहां तो सारे नवाब जाते हैं। वहां अदब सिखाते हैं, नफासत सिखाते हैं … और इश्क भी।

IMG 20240524 WA0076

फिल्म कलाकारों में जिस तरह आमिर खान को मिस्टर परफेक्शनिस्ट कहा जाता है, तो निश्चित रूप से संजय लीला भंसाली भी उनसे कम नहीं हैं। सोनाक्षी सिन्हा, ऋचा चड्ढा, शर्मिन सेगल, संजीदा शेख और मनीषा कोइराला जैसे कलाकारों के पास ‘हीरामंडी’ को लेकर कई अनुभव है जो उन्होंने वेब सीरीज रिलीज होने के बाद कई इंटरव्यू में बताए। संजय लीला भंसाली अपने काम को लेकर कितने गंभीर हैं, इस बारे में ऋचा चड्ढा ने एक इंटरव्यू में बताया कि आपने वो पोस्टर्स तो देखें होंगे, जिनमें मेरे सिर पर फूल हैं। वो फूल कई बार बदले गए। भंसाली जी हर थोड़ी देर बाद बोलते थे कि इन गुलाब को बदल दो! संजीदा शेख ने भी ऐसा ही एक अनुभव बताया कि सेट पर सिर्फ कलाकार ही एक्टिंग नहीं करते, सेट पर रखी कुर्सियां और पदों की भी अहम भूमिका होती है। पदों की क्रीज का भी ध्यान रखा जाता है। सोनाक्षी सिन्हा ने भी संजय लीला भंसाली की तारीफ की और कहा कि उनके जैसा विजन किसी के पास नहीं है। कभी डेकोरेटिव लैंप बुझ जाता था, कभी परदे हवा से नहीं हिलते या कभी ड्रेस की ड्रेप ठीक नहीं होती तो एक ही टेक कई बार शूट किया जाता। संजय लीला भंसाली की भांजी शर्मिन सेगल ने तो अनोखी बात बताई कि शूटिंग के बाद भंसाली जी ने कैमरे में एक धागा देख लिया। दरअसल, एक क्लोजअप शॉट में ड्रेस से धागा निकलता दिख रहा था, तो उन्होंने सीन को कट किया और वो सीन फिर से शूट हुआ।

IMG 20240524 WA0074

संजय लीला भंसाली ने आजादी से पहले के दौर की लाहौर की हीरामंडी की जो कहानी रची है, वो भले काल्पनिक हो, पर ‘हीरामंडी’ इलाका सही है। यह पाकिस्तान के लाहौर शहर का रेडलाइट एरिया है। जिसमें एक वक़्त पर हीरे, जेवरात बिका करते थे, इसलिए इसे हीरामंडी कहा जाने लगा। ‘हीरामंडी’ की कहानी पूरे आठ भागों में अद्भुत भव्यता से फिल्माई गई ऐसी कहानी है, जिसकी किसी और वेब सीरीज या तवायफों वाली फ़िल्मी कहानी से तुलना नहीं की जा सकती। इस वेब सीरीज ने ऐसे विषयों पर बनी और बनने वाली सभी फिल्मों के सामने एक ऊंची लाइन जरूर खींच दी कि तवायफों की फ़िल्में सिर्फ तवायफों के अड्डों और मुजरों तक सीमित नहीं होती। और भी बहुत कुछ होता है, जिसे खोजा जाना चाहिए, जैसा कि संजय लीला भंसाली ने किया।