Miracle of a Monk:नर्मदा जल पर कैसे जिंदा हैं संत दादा गुरु

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OMiracle of a Monk:नर्मदा जल पर कैसे जिंदा हैं संत दादा गुरु

जबलपुर क्षेत्र के एक संत साढ़े तीन बरस से नर्मदा के जल पर ही आश्रित हैं। वे आहार और पेय के नाम पर केवल पानी पीते हैं, वह भी पुण्य सलिला नर्मदा नदी का। इक्कीसवीं सदी में यह एक विलक्षण घटना तो है, चमत्कारी भले ना हो। चमत्कारी इसलिये नहीं कि सनातन परंपरा में एक विस्तृत और अद्भुत परंपरा रही है, जब तपस्वी अन्न-जल का त्याग कर साधना किया करते रहे हैं। आधुनिक युग में अवश्य यह असाधारण बात है। इसमें उल्लेखनीय पहलू यह है कि मध्यप्रदेश सरकार चिकित्सकों की निगरानी में दादा गुरु का सात दिन तक परीक्षण करने जा रही है, ताकि यह प्रामाणिक तौर पर सुनिश्चित किया जा सके कि केवल जलाहार भी जीवन का आधार हो सकता है। इस परीक्षण के बाद विश्व स्तर पर दादा गुरु की इस उपलब्धि का प्रचार-प्रसार किया जायेगा। बहरहाल।

भारत के शास्त्रों,ग्रंथों,पुराणों में ऐसी असंख्य घटनाओं का उल्लेख है,जिसमें संत,महात्मा से लेकर सांसारिक व्यक्ति,राजा-महाराजा तक ने अपने किसी संकल्प या सिद्धि के लिये जप-तप किये। ये साधना बरसों लंबी भी होती थी और अत्यंत कठिन भी। जिसमें बिना किसी भोजन-पानी के एक ही स्थान पर समाधिस्थ होकर मनवांछित फल के लिये साधना की जाती थी। अनेक ऐसे प्रसंग है, जब उस सर्वशक्तिमान का सिंहासन डोलने लगता और उन्हें पृथ्वी पर आकर अपने भक्त की मनोकामना पूरी करना होती थी। रावण,मां पार्वती,भस्मासुर,हिरण्य कश्यप समेत सैकड़ों ऐसे विकट तपस्वी हुए,जिन्होंने निराहार रहकर साधना की।

इसी तरह की साधना कलियुग में भी कुछ महामानव करते हैं। सांसारिक जीवन जीने वाले अनेक ऐसी क्रियायें करते हैं, जो सामान्य तौर पर नहीं की जा सकती। यदि हम सनातन परंपरा के व्रत-उपवास देखें तो कुछ दिनों तक बिना अन्न-जल के रहने का प्रयास मनुष्य करता है। दोनों नवरात्रि,श्रावण माह के अलावा अनेक ऐसे तीज-त्यौहार हैं, जिनमें श्रद्धालु उपवास रखते हैं। ये एक दिन से लेकर,एक सप्ताह और एक माह तक के होते हैं। इनमें कोई साधक एक समय भोजन करते हैं, कोई एक समय केवल फलाहार पर रहते हैं तो कोई दूध या फलों के रस पर निर्भर रहते हैं। नवरात्रि के नौ दिनों तक पूरी तरह निराहार रहने के उपवास तो हजारों हिंदू उपासक करते ही हैं।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी दोनों नवरात्रि कठिन उपवास करते हैं,जिसमें केवल फलाहार या फलों का रस ही ग्रहण करते हैं,फिर भी देश संबंधी तमाम जिम्मेदारियों को पूरी तत्परता से निभाते हैं। हाल ही में 22 जनवरी को राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के समय भी मोदीजी ने 11 दिन का उपवास किया था और मंदिर परिसर में ही उनके आध्यात्मिक गुरु गोविंद देव गिरि जी ने उनके मुख में शहद मिले जल का चरणामृत पिलाकर उपवास समाप्त कराया था ।

इसी के साथ कुछ हिंदू धर्मावलंबी 16 सोमवार के बेहद कठिन उपवास करते हैं। इस दिन शाम के नियत समय पर एक ही स्थान पर बैठकर केवल चाय,दूध,केला या अन्य कोई फल,मिश्री या ऐसी की किसी एक वस्तु का संकल्प लेकर 16 सोमवार तक उसका पालन करते हैं। सोचिये, दिन में केवल एक बार एक गिलास पानी या एक कप चाय पीकर दिन गुजारना कितना दुष्कर होता होगा। मेरे पारिवारिक चिकित्सक ने ही पिछले वर्ष 16 सोमवार का तप कर उसका उद्यापन किया था। एक चिकित्सक का यह उपक्रम कोई भ्रांति या धार्मिक क्रिया तो नहीं हो सकती। निश्चित ही समुचित वैज्ञानिक क्रिया के तहत ही इस सनातन परंपरा का निर्वाह किया होगा।जिसमें तन-मन की शुद्धि प्रमुख रही होगी।

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ऐसी ही श्वेतांबर जैन खतरगच्छ संघ की साध्वी सुश्री विमलायशाश्री जी गत 45 बरस से दिन में दो बार चाय पीकर साधना में लगी हैं। अनेक बार उनका चिकित्सकीय परीक्षण भी हो चुका है,जिन्होंने साध्वी जी को पूर्णत: स्वस्थ घोषित किया है। चिकित्सकों का मानना है कि साध्वी जी जैसे किसी भी व्यक्ति को दिन भर में 1800 कैलोरी की आवश्यकता होती है, जो कि साध्वी जी को दो कप चाय से 1200 से 1400 कैलोरी तक मिल जाती है। इन्हीं साध्वी जी की एक बार पैर की हड्‌डी टूट गई थी, जो बिना उपचार ठीक हुई और वे चिकनगुनिया से भी बिना दवा स्वस्थ हो चुकी हैं।

कुछ लोग इस तरह का संकल्प भी लेते हैं कि वे एक हफ्ते या एक माह तक दिन में केवल एक बार दलिया,चावल,फल,फलों का रस,दूध या ऐसा ही कोई खाद्य पदार्थ,पेय लेंगे। बरसोबरस तक हफ्ते में एक दिन पूरे समय निराहार रहकर उपवास करना तो भारत की पुरातन परंपरा है। अब आधुनिक चिकत्सा विज्ञान के विशेषज्ञ भी कहने लगे हैं कि व्यक्ति को हफ्ते में एक दिन उपवास करना चाहिये, ताकि उनके शरीर की मशीन का रखरखाव हो सके। इसे वे पेट और आंत को बुरे कीटाणु से बचाने का सर्वोत्तम उपाय मानते हैं।

कहने का अभिप्राय यह कि दादा गुरु जो कर रहे हैं, वह एक अत्यंत कठिन साधना अ‌वश्य है, लेकिन भारत में आदिकाल से ऐसे उपासक,साधक रहे हैं, जो आत्म शुद्धि,शरीर शुद्धि‌ के लिये अन्न,जल या किसी भी वस्तु विशेष का त्याग कर जीवन यापन कर लेते हैं। इसमें अच्छी बात यह है कि मध्यप्रदेश सरकार ने यह सराहनीय पहल की है कि वह दादा गुरु की साधना को वैज्ञानिक आधार देकर उसे विश्व समुदाय के सामने लाना चाह रही है। जबलपुर के मेडिकल कॉलेज के चार चिकित्सक विशेषज्ञ व एक अन्य की समिति सात दिन तक समुचित परीक्षण के बाद 3 हफ्ते में सरकार को अपनी अनुशंसा सौंप देगी।