World Digestive Health Day: मानव सुस्वास्थ्य के शोध परक चिर स्वस्थ जीवन के रहस्य और रोमांच
शरीर के अंगों के समान दिखने वाले फल और सब्जियां लाभदायक होती हैं
डॉ तेज प्रकाश पूर्णानन्द व्यास
प्रभाग 1
आंतें याने आहार तंत्र मानव हृदय , मस्तिष्क और सारे आंतरिक अंगों से सीधे सीधे बात करता है। श्रेष्ठ पाचन सर्वांगों को सुस्वास्थ्य प्रदान करता है। वैज्ञानिक लेखक के एक दशक के शोध साथ ही अमेरिका में किए विशिष्ट अध्ययन के अमृत को सर्व जन हिताय सर्वजन सुखायमानव सुस्वास्थ्य पर शोधपरक समग्र आलेख प्रस्तुत किया जा रहा है।
आहरनाल याने पाचन संस्थान का सुस्वास्थ्य मानव शरीर के लिए सबसे महत्वपूर्ण है। गट ब्रेन एक्सिस (जीबीए) अर्थात मानव का आंत का सुस्वास्थ्य मस्तिष्क के सुस्वास्थ्य से सीधा संबद्ध है। इसी तरह गट हार्ट एक्सिस (जीएचए ) अर्थात मानव का पाचन सीधे सीधे हृदय के सुस्वास्थ्य से संबद्ध है। मानव शारीरिक ने यह सुस्पष्ट सिद्ध कर दिया है कि मानव मस्तिष्क हृदय और सभी अंतरांगों की शारीरिक कार्यकी का सुस्वास्थ्य पाचन तंत्र के सेस्वास्थ्य पर 100% निर्भर है।
आप सुंदर मानव जो फैटी लिवर ग्रस्त है। गैस्ट्रो ईसोफिजियल रिफ्लक्स डिजीज ( जेईआरडी), गैस, इरिटेबल बाउल सिंड्रोम समस्या ग्रस्त मानव का चेहरा सड़े आलू जैसा हो जाता है। अस्तु। ईश्वर ने अनमोल शरीर दिया है , तो इसके नैसर्गिक नियमों का पालन कर शरीर को स्वस्थ रखने का दायित्व मानव का ही है । जो भी हैं जैसे हैं, ईश्वर का दिया हुआ है स्वरूप। स्वस्थ मानव सुंदर ही होता है ।
पाचन एवम सम्पूर्ण स्वास्थ्य सुरक्षा:
किण्वित खाद्य पदार्थ और दही 250 ग्राम प्रति व्यक्ति बिना चीनी और नमक के हमारे जीआई ( गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रैक्ट / पाचन तंत्र) को 100% स्वस्थ रखते हैं। हमारी दीर्घायु का सबसे अच्छा डॉक्टर हमारा आहार तंत्र ही है।
मैं गत दस वर्षों से चिर जीवन स्वस्थता का अविरल अध्ययनशील शोधार्थी हूं ।
आहार तंत्र एवम मानव शरीर के स्वस्थता के मेरे अनुभूत 13 सूत्र प्रस्तुत हैं ।
1: दही , छाछ, साउथ इंडियन फर्मेंटेडेड डिशेज यथा इडली सांभर नारियल चटनी, अप्पम, बड़ा सांभर, उत्तपम, मसाला डोसा, रवा उपमा, इडली उपमा, तथा गुजराती डिशेज यथा खमण और ढोकला मानव पाचन को श्रेष्ठ रखते हैं।
2: इंद्र धनुषि रंगों की सब्जियां और फल: यथा लाल , काला, हरा, पीला, संतरी, गाजरी रंगों का सदुपयोग करते हैं ,तो साल भर के शिशु से 125 बरस के दादा दादी को स्वत: विटामिंस और मिनरल्स का श्रेष्ठ स्वास्थ्यवर्धक संयोजन नैसर्गिक रूप से मिल है । स्वयं ये शाकाहार के स्वरूप श्रेष्ठ डॉक्टर बन पूरे परिवार को श्रेष्ठ स्वस्थता देते हैं । खाने के पूर्व फलों सब्जियों को पानी में भिगोकर खाने के सोडे या नमक से अवश्य धो लेवें ।
3: शरीर में धाकड़ प्रतिरोधात्मक शक्ति के जादूगर खाद्य हैं , नींबू, आंवला, संतरा, मौसंबी, अंगूर : काले लाल हरे,और पाइनएप्पल । इम्यूनिटी पावर बूस्टर हैं ये खट्टे फल। कोई भी एक खट्टा फल प्रतिदिन आवश्यक है ।
4: गत वर्ष 26 जनवरी से 26 मई 2023 को 120 दिवस के प्लेनो टेक्सास अमेरिका में चिरंजीवी ऋचा सुदर्शन की मदद से अमेरिकन हार्ट एसोसियेशन, अमेरिका से मानव हृदय सुरक्षा और लाइफ सपोर्ट सिस्टम और हारवर्ड मेडिकल स्कूल इंग्लैंड के ऑनलाइन अध्ययन व अन्य श्रेष्ठ प्रशिक्षणों ने मेरी चिर जीविता की प्रज्ञा में अद्भुत उत्परिवर्तन कर दिया है। कोई भी बीमारी को प्राकृतिक संसाधनों में 100% ठीक करने की शाकाहार और श्रेष्ठ जीवन शैली में अदम्य क्षमता है । पता है हमारे पूर्वज 300 से 400 वर्ष के चिरंजीवी , बीमारी रहित , उत्कृष्ट जीवन शैली से ही तो जीते थे। हां तो हृदय की सुरक्षा के अमृत फलों शाकाहार को अपनाइएगा। शरीर का हृदय और एक लाख किलोमीटर परिपथ का रक्त संचार को स्वस्थ रखने वाले जादूगर फल शाकाहार हैं: अनार , सेवफल, स्ट्राबेरी, ब्लैक बेरी, लाल हरे काले अंगूर, लाल पीली शिमला मिर्च हैं। लाल टमाटर, और टमाटर का शकर रहित सूप और तरबूज में एक रहस्यमयी रसायन है लायकोपिन । लाल फलों में एवम रेड ग्रेप्स और ब्लैक करंट बेरी में विशेषकर आर्जिनिन अमीनो एसिड पाए जाता है , इनमें वैसिडायलेशन की अदम्य क्षमता होती है और हृदय मस्तिष्क एवम मानव शरीर के अंगों के लिए अपरिमित लाभकारी है। हां , उक्त सभी खाद्य और लायकोपिन में अपरिमित लाभप्रद नैसर्गिक रसायन रक्तवाहिनियों को लचीली बनाने में भी मदद करते हैं । जिससे मानव हृदय सुरक्षा पाता है । गेंहू के जवारे का रस और अंकुरित मूंग और छोटा चना भी स्वास्थ्य के लिए अमृत तुल्य है। उक्त खाद्य पदार्थों में समग्र रूप से हृदय, मस्तिष्क, आहार तंत्र, फेफड़ों, मस्क्यूलो स्केलेटल (शरीर के जोड़), प्रतिरोधात्मक शक्ति: एंड्यूरेंस , स्मरण शक्ति, यौवन शक्ति और चिर स्वस्थता को स्थापित करने की अदम्य क्षमता है ।
5: गाय का घी पोहे के एक चम्मच से अधिकतम 2 चम्मच का उपयोग हृदय और मधुमेह में लाभकारी है । गाय का घी लो ग्लिसिमिक इंडेक्स का है । इसीलिए गाय का घी है अमृत।
6: तिल सरसों मूंगफली का कच्ची घानी का तेल सीमित मात्रा में अमृत है।
7 भोजन की थाली में दाल ,सब्जी, हरी सब्जी , दही (शकर नमक रहित) और सलाद की भरी प्लेट और ज्वार , मक्का सबसे बढ़िया बाजरे की रोटी श्रेष्ठ है। पानी शुद्ध तांबे के पात्र का 3 से 4 लीटर पिएं।
संध्या का हल्का मूंग की दाल ,रोटी , खिचड़ी, बाजरे की खिचड़ी का उपयोग करें । संध्या 6 बजे से सुबह 8 बजे तक का 14 घंटे का फास्ट रखें । सोने के पहले पानी पीकर सोएं । नींद खुलने पर प्यास लगे तो भी पानी पिएं ।
8: शरीर के अंगों के समान के आकार के फल और सब्जियां होती हैं लाभदायक । यह है नैसर्गिक संयोजन ।
शरीर के अंगों की तरह दिखने वाले फल और सब्जियां मानव स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभदायक होते हैं. शरीर के अंगों के समान दिखने वाले खाद्य पदार्थ, उन्हीं अंगों के लिए अच्छे होते हैं, यह है नैसर्गिक विनियोजन : अंगों से मिलते-जुलते कई फलों और मेवों की पहचान की है. जिसका विवरण इस प्रकार है.
अखरोट
अखरोट मस्तिष्क के समान दिखता है. इसमें अल्फा लिनोलिक एसिड और ओमेगा -3 फैटी एसिड होता है. यह तनाव को कम करने के साथ मानसिक स्वास्थ्य को भी बढ़ावा देता है.
राजमा (बीन्स)
किडनी के आकार के राजमा में मोलिब्डेनम, फोलेट, स्टील, कॉपर, मैग्नीशियम, पोटेशियम और विटामिन ए 1 होते हैं. इसमें मौजूद फाइबर किडनी के लिए अच्छा होता है.
गाजर
गाजर की आंतरिक बनावट आंखों के समान होती है. यह एक एंटीऑक्सीडेंट है, जबकि इसमें ल्यूटिन और बीटा कैरोटीन होता है जो आंखों के लिए बहुत फायदेमंद होता है.
अदरक
अदरक, आंतों और पेट की संरचना के समान है. यह भोजन को तेजी से पचाने में मदद करता है. आंतों के ऊतकों की मरम्मत करता है, जबकि इसमें पाए जाने वाले तत्व आंतों की सेहत के लिए फायदेमंद होते हैं.
नारंगी या संतरा
संतरा एक ऐसा फल है जो स्तन कैंसर से लड़ता है. यह फोलेट, विटामिन सी और कैरोटीनॉयड जैसे बीटा-क्रिप्टो-जीटिन और बीटा-कैरोटीन और अन्य उपयोगी सामग्री से भरपूर होता है, जो स्तन कैंसर के रोगियों के लिए बहुत उपयोगी होते हैं.
शंकरकंद
शंकर कंद अग्न्याशय के समान है और अग्नाशय के कैंसर के विकास के जोखिम को कम करती है. यह कैंसर रोधी तत्वों से भरपूर होता है.
अंगूर
फेफड़े के आकार के अंगूर में रेस्वेराट्रोल होता है, जो सूजन को रोकने में मदद करता है. यह अस्थमा और फेफड़ों के अन्य रोगों में उपयोगी है.
9 यह अति महत्वपूर्ण सूत्र है। यह सूत्र मेरे अनन्यतम मित्र भारत के एक सर्वश्रेष्ठ हृदय विशेषज्ञ , मेदांता हॉस्पिटल , इन्दौर में कार्यरत डॉक्टर भारत रावत द्वारा प्रतिपादित है। भारत रावत जी की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति :
क्या मेरा आज का दिन सार्थक रहा। Have I Made My Day
M= Mental Relaxation मानसिक शांति ( मानव जीवन में हो।)
A= Avoid Addictions (तम्बाखू , सिगरेट, शराब और अन्य घातक एडिक्शंस से पूर्ण मुक्ति)
D= Diet Control ( होश पूर्वक खाइए)
E= Exercise Regularly (नियमित व्यायाम करें। )
10 डालडा, बैकरी के सारे प्रोडक्ट्स , सारे सॉफ्ट कोल्ड ड्रिंक्स कोकोकोला, स्प्राइट आदि घातक हैं, उपयोग न करें । बाजार के बार बार उबले तेलों में बने समोसा, कचोरी, आलू बड़े कार्सिनोजनिक याने कैंसर कारक हैं, नियंत्रण रखें।शकर के स्थान पर ऑर्गेनिक या कोकोनट गुड, , टाटा नमक के स्थान पर
काले नमक या सैंधे नमक का उपयोग करें । शकर मिठाइयों, आइसक्रीम पर नियंत्रण रखिए।
याद रखें , सारी बीमारियां पेट के रास्ते से ही गुजरती हैं । उन्हें मानव की चटोरी जीभ ही मार्ग प्रशस्त करती है।
11: गुनगुने पानी से नहाकर सोएं । नींद गहरी होगी। 7 से 8 घंटे की नींद लेवें। पता है आपकी धाकड़ नींद से हैप्पी हार्मोंस स्त्रावित होते ही हैं । हृदय मस्तिष्क सहित पूरे शरीर की रक्षाकारक है गहरी नींद ।
12: पैदल चलें: 100 कदम से 15000 कदम सुबह सूर्योदय के बाद और प्रदूषण रहित मार्ग पर अपनी क्षमतानुसार चलिए। दूब पर नंगे पैर चलना श्रेष्ठ एवम अमृत तुल्य है। सुबह के सूरज को उगने के 60 मिनिट के अंदर जितनी उम्र है , उतने सेकंड सूरज को आंख से सीधे देखिए । प्रतिदिन 10 सेकंड बढ़ाते हुए 300 सेकंड तक सूर्य को देखिए। शरीर में सुस्वस्थता का उत्परिवर्तन पाओगे। शरीर की अपनी क्षमता से अच्छे ऑयल से मालिश कीजिएगा । सुबह सूर्य प्रकाश का स्नान लीजिए। हड्डियां मजबूत होंगी । ओम उच्चारण , अनुलोम विलोम और दीर्घ श्वास लेना हृदय५ एवम सम्पूर्ण शरीर के लिए अमृत तुल्य है।
13 : ईश्वर ने हंसने के अमूल्य एवम अपरिमित गुण दिए हैं । तो हंसिए । दिल खोलकर हंसिए। हास्य की फिल्में और टीवी सीरियल अवश्य देखिए । यथा: चलती का नाम गाड़ी (1958) · पड़ोसन (1968) · चश्मे बद्दूर (1981) · अंगूर (1982) ·अंदाज अपना अपना (1994)
हास्य कविताएं पढ़िए:
हंसने से हैप्पी हार्मोंस का स्त्रावण होता है , जो शरीर को अपरिमित लाभ देते हैं।
हंसने के शारीरिक फायदे
1. एंडोर्फिन:- हंसने से शरीर में एंडोर्फिन नामक हार्मोन उत्पन्न होता है, जो सुख और खुशी की भावना को बढ़ावा देता है.यह हमें तनाव से राहत देता है और मानसिक स्थिति को सुधारता है.
2. सेरोटोनिन:- हंसने से शरीर में सेरोटोनिन भी उत्पन्न होता है, जो मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है.यह मूड को स्थिर रखने में मदद करता है और अवसाद को कम करता है.
3. डॉपामीन:- हंसने से शरीर में डॉपामीन भी उत्पन्न होता है, जो उत्साह, आत्मविश्वास और खुशी के अहसास को बढ़ावा देता है.यह हमें संजीवनी भावना प्रदान करता है और संतुलित मानसिक स्थिति को बनाए रखता है.
4. ऑक्सीटोसिन:- हंसने से शरीर में ऑक्सीटोसिन भी उत्पन्न होता है, जो सामाजिक रिश्तों को मजबूत करता है और प्रेम और सहयोग की भावना को बढ़ावा देता है.यह हमें संबंधों की मजबूती में मदद करता है.
5. कोर्टिसोल:- हंसने के दौरान, कोर्टिसोल भी उत्पन्न होता है, जो तनाव को कम करने में मदद करता है और संवेदनशीलता को कम करता है.
आइए पाचन तंत्र के विज्ञान के रहस्य रोमांच का अवगाहन करें:
अच्छा पाचन स्वास्थ्य शरीर को भोजन को ठीक से पचाने और पोषक तत्वों को अवशोषित करने में सक्षम बनाता है, जिससे शरीर स्वस्थ रहता है। स्वस्थ पाचन वाले लोगों में कब्ज, सीने में जलन, पेट फूलना, अपच या अधिक गंभीर पाचन संबंधी समस्याओं का सामना करने की संभावना कम होती है।
पाचन तंत्र का प्रत्येक भाग भोजन को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ने और शरीर में आगे बढ़ाने में अपनी भूमिका निभाता है। पाचन तंत्र के मुख्य गलियारे जठरांत्र संबंधी मार्ग (जीआई ट्रैक्ट), यकृत, पित्ताशय और अग्न्याशय हैं। जीआई ट्रैक्ट के गलियारे में मुंह, ग्रासनली, पेट, छोटी और बड़ी आंत और गुदा शामिल हैं।
विश्व पाचन स्वास्थ्य दिवस हर साल 29 मई को मनाया जाता है । इसे 2004 में विश्व गैस्ट्रोएंटरोलॉजी संगठन की स्थापना की 45 वीं वर्षगांठ के अवसर पर लॉन्च किया गया था।
विश्व पाचन स्वास्थ्य दिवस 2024 थीम
इस वर्ष, 2024, विश्व पाचन स्वास्थ्य दिवस की थीम है “आपका पाचन स्वास्थ्य: इसे प्राथमिकता बनाएं”। थीम का उद्देश्य इस बारे में जागरूकता बढ़ाना है कि समग्र स्वास्थ्य और जीवन की गुणवत्ता के लिए आंत का स्वास्थ्य कितना महत्वपूर्ण है।
पाचन तंत्र पोषण का प्रवेश द्वार है, जो बुनियादी कामकाज को बनाए रखने और अधिकतम स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक महत्वपूर्ण पोषक तत्वों को अवशोषित करता है। पाचन स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने वाले व्यक्ति अपने स्वास्थ्य को सक्रिय रूप से प्रबंधित करने के लिए खुद को सशक्त बनाते हैं, जिससे जठरांत्र संबंधी बीमारियों और संबंधित समस्याओं का जोखिम कम होता है। संतुलित और पौष्टिक आहार और जीवनशैली विकल्प पाचन स्वास्थ्य को बढ़ावा देते हैं और शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक संतुलन में सुधार करते हैं।
वर्ष दर वर्ष, विश्व पाचन स्वास्थ्य दिवस के लिए थीम:
विश्व पाचन स्वास्थ्य दिवस थीम 2023: आपका पाचन स्वास्थ्य: शुरुआत से ही स्वस्थ आंत
विश्व पाचन स्वास्थ्य दिवस 2022 का थीम: कोलोरेक्टल कैंसर की रोकथाम
विश्व पाचन स्वास्थ्य दिवस 2021 की थीम: मोटापा: एक जारी महामारी
विश्व पाचन स्वास्थ्य दिवस 2020 का थीम: आंत माइक्रोबायोम: एक वैश्विक परिप्रेक्ष्य
विश्व पाचन स्वास्थ्य दिवस 2019 का थीम: पाचन कैंसर का शीघ्र निदान और उपचार
विश्व पाचन स्वास्थ्य दिवस 2024 की थीम | विश्व आंत स्वास्थ्य दिवस WDHD 2024
विश्व पाचन स्वास्थ्य दिवस (WDHD) का इतिहास:
विश्व गैस्ट्रोएंटरोलॉजी संगठन की 45 वीं वर्षगांठ के अवसर पर, विश्व पाचन स्वास्थ्य दिवस की शुरुआत 2004 में की गई थी। विश्व गैस्ट्रोएंटरोलॉजी संगठन में दुनिया भर के 50,000 से अधिक प्रतिनिधि और 100 से अधिक सदस्य समाज शामिल हैं।
आंत माइक्रोबायोम
माइक्रोबायोम सूक्ष्मजीवों (बैक्टीरिया, कवक, परजीवी और वायरस) का एक संग्रह है जो जठरांत्र संबंधी मार्ग में, विशेष रूप से छोटी और बड़ी आंतों में सह-अस्तित्व में रहते हैं। माइक्रोबायोटा नेटवर्क अद्वितीय है, जो डीएनए द्वारा निर्धारित होता है और जन्म के दौरान और माँ के स्तन के दूध के माध्यम से सूक्ष्मजीवों के संपर्क में आता है। पर्यावरणीय जोखिम और आहार माइक्रोबायोम को बदल सकते हैं, जिससे स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है।
आंत के माइक्रोबायोम को सहारा देने वाले खाद्य पदार्थ
जो खाद्य पदार्थ गट (आहार नाल) माइक्रोबायोम के लिए फायदेमंद होते हैं उन्हें प्रोबायोटिक्स कहा जाता है। प्रोबायोटिक खाद्य पदार्थों के अधिक और अचानक सेवन से सूजन और पेट फूलना हो सकता है, अतः नियंत्रित मात्रा में उपयोग करें। विभिन्न प्रोबायोटिक फल और सब्जियाँ हैं:
लहसुन
प्याज
एस्परैगस
केले
फलियाँ
साबुत अनाज (गेहूं, जई, जौ आदि)
अपाच्य कार्बोहाइड्रेट और फाइबर (इनुलिन, पेक्टिन)
जबकि अधिकांश सूक्ष्मजीव लाभदायक होते हैं, कुछ हानिकारक भी हो सकते हैं, और जब माइक्रोबायोम के संतुलन में व्यवधान उत्पन्न होता है, तो डिस्बायोसिस हो सकता है, जिससे रोग का खतरा बढ़ जाता है।
प्रभाग 2
आयुर्वेद वृहस्पति , वेदाचार्य एवम श्रीमदभागवतविद उज्जैन के प्रकाण्ड विद्वान पण्डित पूर्णानन्द श्यामलाल व्यास ने आयुर्वेद एवम श्रीमद्भगवद्गीता सम्मत श्लोकों से मानव सुस्वास्थ्य का अभिनव सुग्राह्य एवम चिर स्वस्थ जीवन का वर्णन किया है। मानव अपने जीवन में इन अभिव्यक्तियों को अपने अवचेतन में अवस्थित कर चिर स्वस्थ जीवन को अपनाएं।
आयुर्वेद में स्वस्थ व्यक्ति की परिभाषा इस प्रकार बताई गई है-
सूत्रस्थान में चरक और वाघभट्ट ने स्वास्थ्य को इस प्रकार परिभाषित किया है:
“समदोष, समाग्निश्च समधातुमाला क्रियाः प्रसन्न आत्मनिन्द्रिय मनः स्वास्थ्य इत्यभिधीयते”
स्वास्थ्य की आयुर्वेदिक परिभाषा – सुश्रुत ने उपरोक्त उद्धरण में एक स्वस्थ व्यक्ति का वर्णन किया है। यह स्थिर है कि दोष संतुलन में होना चाहिए, पाचन अग्नि स्थिर स्थिति में होनी चाहिए और धातु और मल को सामान्य स्थिति में काम करना चाहिए। मानव शरीर कार्यिकी के अंग याने शरीर और मन, आत्मा भी सुखद स्थिति में होना चाहिए। ऐसे व्यक्ति को स्वस्थ व्यक्ति या स्वस्थ कहा जाता है।
समदोष: किसी व्यक्ति को स्वस्थ रखने के लिए शरीर और मन में मौजूद वात, पित्त और कफ दोष संतुलित अवस्था में होना चाहिए। जब दोषों का संतुलन बिगड़ जाता है, या तो बढ़ जाता है या कम हो जाता है (बिगड़ जाता है) तो यह दोष वैश्यमय की स्थिति उत्पन्न होती है, जिसे रोग कहा जाता है।
समाग्नि: किसी व्यक्ति को स्वस्थ रखने के लिए पाचन अग्नि (कोष्ठाग्नि) और धातु अग्नि (ऊतक एंजाइम) का उचित अवस्था में होना आवश्यक है। जब अग्नि की गुणवत्ता (मंदाग्नि) कम होती है तो यह कई परिस्थितियों का कारण बनती है (“रोगहा सर्वेपि मंडे अग्निओ”)। यह सर्वविदित है कि किसी भी व्यक्ति का स्वास्थ्य उसकी पाचन शक्ति की पूर्ति पर निर्भर करता है।
हो
सम धातु माला क्रिया: (धातुओं और मालाओं की संतुलित स्थिति): आयुर्वेद के अनुसार रस, रक्त, ममसा, मेदस, अस्थि, मज्जा और शुक्र नामक सात धातुएं हैं। और मल या मल – पुरिसा (मल), मूत्र (मूत्र), स्वेद (पसीना)। शरीर की गुणवत्ता को ठीक से काम करना चाहिए और शरीर की मालाओं को भी।
प्रसन्न आत्मेन्द्रिय मनः आयुर्वेद में ज्ञानेन्द्रियों और मोटर अंगों तथा मन के कार्यों को विशेष महत्व दिया गया है। जब ये संतुलन में नहीं होते और अपने कार्य का ठीक से निर्माण नहीं करते, तो यह रोग नामक स्थिति को जन्म देगा। भले ही उपरोक्त ठीक से काम कर रहा हो, शारीरिक मनोरंजन को उपरोक्त को घटाना नहीं चाहिए। किसी व्यक्ति के शारीरिक स्वास्थ्य की तुलना में मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति अधिक महत्वपूर्ण है।
जन्म से ही स्वास्थ्य या स्वस्थ अवस्था बनी रहती है और तीन दोष संतुलित अवस्थाओं में रहती हैं, इसलिए व्यक्ति एक संतुलित संविधान, आकर्षक रूप, अच्छी मांसपेशियों की शक्ति और मन की पूर्ण शांति प्राप्त करता है।
अच्छा स्वास्थ्य मृत्यु तक रखा जा सकता है। इसके लिए व्यक्ति को इस विज्ञान के अनुसार बताए गए सभी नियमों का समझदारी से पालन करना चाहिए। शायद ही कोई व्यक्ति किसी बीमारी के सौ साल की अधिकतम जीवन अवधि का आनंद ले सके। उसे समाज में पहचान, लोगों से मित्रता, सम्मान और धन भी मिलेगा क्योंकि उसमें जीवन के सभी लक्ष्यों को प्राप्त करने की ऊर्जा और क्षमता है।
आचार्य चरक के अनुसार स्वास्थ्य की परिभाषा-
सम्मन्सप्रमाणस्तु सम्संहन्नो नरः।
दृढेन्द्रियो विकाराणां न बलेनाभिभूयते॥18॥
क्षुत्पिपासात्पसहः शीतव्यायामसंसाहः।
सम्पक्ता समजरः सम्मांसचयो मतः॥19॥
अर्थात जिस व्यक्ति का मांस धातु सम्प्रमाण में हो, जो शारीरिक संरचना सम्प्रमाण में हो, जिसकी इन्द्रियाँ थकान से रहित हों, शरीर का बलहीन होना न कर सके, जिसका व्याधि समता बल बढ़ा हो, जिसका शरीर भूख, प्यास, धूप, शक्ति को सहन कर सके, जिसका शरीर व्यायाम को सहन कर सके, जिसकी पाचनशक्ति (जठराग्नि) समावस्था में कार्य करती हो, निश्चित कालानुसार ही जिसका बुढापा आये, जिसमें मांसादि की चय-उपचय क्रियाएँ समान होती हों – ऐसे दस लक्षणो वाले व्यक्ति को आचार्य चरक ने स्वस्थ माना है।
कश्यपसंहिता के अनुसार आरोग्य के लक्षण-
अन्नाभिलाषो भुक्तस्य परिपाकः सुखेन च ।
सृष्टविणमूत्रवातत्वं शरीरस्य च लाघवम् ॥
सुप्रसन्नेन्द्रियत्वं च सुखस्वप्न प्रबोधनम् ।
बलवर्णायुषां लाभः सौमनस्यं समाग्निता ॥
विद्ययात् आरोग्यलिंगङ्गानि विपरीते विपर्ययम् । – ( कश्यपसंहिता, खालस्थान, पञ्चमोध्यायः )
भोजन करने की इच्छा, अर्थात भूख के समय पर लगना, भोजन ठीक से पचना, मलमूत्र और वायु के उत्सर्जन उचित रूप से होते हों, शरीर में हलकापन एवं स्फूर्ति रहती हो, इन्द्रियाँ प्रसन्न रहती हों, मन की सदा प्रसन्न स्थिति हो, सुखपूर्वक रात्रि में शयन करता हो, सुखपूर्वक ब्रह्ममुहूर्त में जागता हो; बल, वर्ण एवं आयु का लाभ मिलता है, यदि पाचक-अग्नि अधिक न हो, तो अचानक लक्षण हो तो व्यक्ति निरोगी होता है अन्यथा रोगी होता है।
उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि आयुर्वेद किसी भी बाह्य रोग कारक को कमजोर करने के बजाय शरीर के संतुलित रहने पर जोर देता है। और शरीर का संतुलन तभी बना रहेगा जब प्रकृति के साथ चुनौतियां होंगी, यथा दिन, ऋतु व स्थान के अनुसार उठना सोना, भोजन आदि |
आयुर्वेद कहता है कि शरीर को संक्षेप में संतुलन की स्थिति बनाए रखने को ही आयु का विज्ञान माना जाता है।
भगवद गीता: अध्याय 6, श्लोक 17
युक्ताहारविहारस्य युक्तचेष्टस्य कर्मसु |
युक्तस्वप्नवबोधस्य योगो भवति दु:खहा ||
17||
जो मानव आहार और मनोरंजन में संयम रखते हैं, कार्य में संतुलित रहते हैं तथा नियमित नींद लेते हैं, वे योगाभ्यास करके समस्त दुःखों को कम कर सकते हैं।
विवेचन( स्वामी मुकुंदानंद अनुसार ):
योग आत्मा का परमात्मा से मिलन है। योग का विपरीत है भोग , जिसका अर्थ है कामुक सुखों में लिप्त होना। भोग में लिप्त होना शरीर के प्राकृतिक नियमों का उल्लंघन करता है, और इसका परिणाम रोग (बीमारी) होता है। यदि शरीर रोगग्रस्त हो जाता है, तो यह योग के अभ्यास में बाधा डालता है। इस प्रकार इस श्लोक में, श्रीकृष्ण कहते हैं कि शारीरिक गतिविधियों में संयम रखकर और योग का अभ्यास करके, हम शरीर और मन के दुखों से मुक्त हो सकते हैं।
यही उपदेश श्री कृष्ण के ढाई सहस्राब्दी बाद गौतम बुद्ध ने दोहराया, जब उन्होंने कठोर तप और कामुक भोग के बीच स्वर्णिम मध्य मार्ग की सलाह दी। इस बारे में एक सुंदर कहानी है। ऐसा कहा जाता है कि ज्ञान प्राप्त करने से पहले गौतम बुद्ध ने एक बार खाना-पीना छोड़ दिया और ध्यान में बैठ गए। हालाँकि, इस तरह से अभ्यास करने के कुछ दिनों बाद, पोषण की कमी ने उन्हें कमजोर और चक्करदार बना दिया और उन्हें ध्यान में अपना मन स्थिर करना असंभव लगा। उस समय, कुछ गाँव की महिलाएँ वहाँ से गुज़र रही थीं। वे अपने सिर पर पानी के बर्तन ले जा रही थीं, जो उन्होंने पास की नदी से भरे थे, और एक गीत गा रही थीं। गीत के बोल थे: “तानपुरे ( एक भारतीय संगीत वाद्ययंत्र, जो गिटार जैसा दिखता है) के तारों को कसो। लेकिन उन्हें इतना मत कसो कि तार टूट जाएँ।” उनके शब्द गौतम बुद्ध के कानों में पड़े और उन्होंने कहा, “ये अनपढ़ गाँव की महिलाएँ ज्ञान के ऐसे शब्द गा रही हैं। इनमें हम मनुष्यों के लिए एक संदेश है। हमें भी अपने शरीर को कड़ा करना चाहिए (तपस्या करनी चाहिए), लेकिन इतनी भी नहीं कि शरीर नष्ट हो जाए।”
संयुक्त राज्य अमेरिका के संस्थापक पिता बेंजामिन फ्रैंकलिन (1706 – 1790) को एक स्व-निर्मित व्यक्ति के रूप में अत्यधिक माना जाता है। अपने चरित्र को विकसित करने के प्रयास में, 20 वर्ष की आयु से ही उन्होंने एक डायरी बनाई जिसमें उन्होंने उन 13 गतिविधियों से संबंधित अपने प्रदर्शन को ट्रैक किया, जिनमें वे आगे बढ़ना चाहते थे। पहली गतिविधि थी “संयम: सुस्ती के लिए न खाएं; नशे में न डूबें।”