लोकतंत्र को खूब छकाया और तपाया, तब ही मानसून आया…
आखिर लोकतंत्र हर मोर्चे पर परीक्षा दे-देकर परेशान है। जब बैलट पेपर से मतदान होता था, तब बूथ कैप्चरिंग के आरोप लगते रहे। अब ईवीएम से मतदान हो रहा है तो हैकिंग के आरोपों से लोकतंत्र जूझ रहा है। अभी विधानसभा और लोकसभा के अलग-अलग चुनाव हो रहे हैं, तब वन नेशन वन इलेक्शन की बात हो रही है। जब यह प्रक्रिया शुरू होगी और फिर कुछ राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगा, तब फिर लोकतंत्र की परीक्षा शुरू हो जाएगी। अब या तो एक बार राष्ट्रपति शासन लगे, तब फिर बात टल जाए अगले चुनाव तक…तब भी परीक्षा लोकतंत्र की होगी। या फिर बीच में चुनाव की बात आए, तब भी परीक्षा लोकतंत्र की ही होगी। लोकतंत्र की परीक्षा लेने में राजनैतिक दलों के नेताओं ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी। मतदाताओं को प्रलोभन देने की बात हो या भय दिखाकर गले लगाने की, यहां भी परीक्षा तो लोकतंत्र की ही हो रही थी। यह सब बातें तो होती रहेंगी, पर लोकतंत्र की तकदीर देखो कि मौसम भी लोकतंत्र की परीक्षा नहीं, बल्कि इतनी कठिन परीक्षा लेगा…यह तो लोकतंत्र ने भी नहीं सोचा होगा। 2024 के आम चुनाव जैसा तो लोकतंत्र शायद ही पहले कभी तपा हो। कश्मीर से कन्याकुमारी और अटक से कटक तक जैसा भारत 2024 में तपा, वैसा इससे पहले कभी नहीं तपा। और मजाक देखो लोकतंत्र के साथ कि अंतिम यानि सातवें चरण का चुनाव प्रचार 30 मई को खत्म हुआ और वहां से खबर आ गई कि मानसून केरल में दस्तक दे रहा है। है न भद्दा मजाक लोकतंत्र के साथ मानसून का। पिछले चुनाव की तुलना में ज्यादा जागरूकता अभियान चलाया गया, ज्यादा फंड खर्च किया गया तब भी मतदाताओं ने पिछले आम चुनाव में मतदान की बराबरी नहीं करने दी। गर्मी ने जितना पसीना-पसीना मतदाताओं को किया, उतना ही निर्वाचन के अमले और निर्वाचन आयोग को। आखिर लाख कोशिश के बाद भी लोकतंत्र पिछले चुनाव से ज्यादा मतदान का रिकार्ड बनाने की परीक्षा में पास नहीं हो पाया। आखिर मौसम मेहरबानी दिखाता तो शायद स्थिति सुधर भी जाती। पर यह संभव नहीं हो पाया क्योंकि मौसम लोकतंत्र की परीक्षा लेने में जुटा था। बड़ी सुबह से ही भरी दोपहरी जैसा सूरज मतदाताओं के माथों पर ऐसा चटका कि घर से मतदान केंद्र तक पहुंच पाना मुश्किल हो गया। और राहुल गांधी की हालत तो इतनी चटकी कि मंच पर ही पीने की जगह पानी को सिर पर उड़ेल लिया, तब जाकर कूल हो पाए। हालांकि मोदी का नाम जुबान पर आते ही राहुल चटक गर्मी में जलते-जलते ही रहे। हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी मंच पर चिल्ला-चिल्लाकर राहुल और गांधी परिवार को तपाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। प्रियंका ने भी पानी पी-पीकर मोदी को कोसा। ममता के भीतर भी मोदी ज्वालामुखी धधकता रहा। पर इन सब बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता। असल में परीक्षा तो लोकतंत्र की ही हो रही थी।
और मुख्य खबर यह है कि 29 मई को ही यह बात सामने आई कि 24 घंटे में ही मानसून देश में दस्तक देगा। दक्षिण पश्चिम मानसून के केरल, अरुणाचल प्रदेश, त्रिपुरा, नगालैंड, मेघालय और मिजोरम सहित पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों में आज यानि 30 मई को ही दस्तक देने की खबर दी गई। दक्षिण पश्चिम मानसून पूर्वानुमान से एक दिन पहले यानी गुरुवार (30 मई, 2024) को केरल तट और पूर्वोत्तर के कुछ हिस्सों में दस्तक देने की बात कही गई। मानसून पहुंचने पर बारिश की संभावना जताई गई। मध्यप्रदेश में भिंड से बारिश की खबर आई और गर्मी से जल्द से जल्द छुटकारा मिलने का अहसास पूरे प्रदेश को हुआ। जबकि मध्यप्रदेश में हुए चार चरणों के आम चुनाव में तो मानो सूरज रात में सोने का मन भी मुश्किल से बना पाता था। और फिर दिन भर इतना गुस्सा करता था कि लोग मतदान का मन भी बहुत डर-सहमकर बना पाए।
भारत मौसम विज्ञान विभाग ने बुधवार (29 मई, 2024) को कहा था, “अगले 24 घंटों के दौरान केरल में दक्षिण-पश्चिम मानसून के आगमन के लिए परिस्थितियां अनुकूल बनी रहेंगी। ” मौसम कार्यालय ने 15 मई को केरल में 31 मई तक मानसून के दस्तक देने का अनुमान जताया था। पर मानसून ने जता दिया कि लोकतंत्र की असल परीक्षा वह ले चुका है। नेता पानी पी-पीकर अपना सर्वस्व झोंक चुके हैं। अब एक दिन और इंतजार करने का कोई मतलब नहीं है। चलो 30 को ही बता दें कि हमारी अदावत लोकतंत्र से थी, सो हो गई। मोदी ध्यान करने चले गए, राहुल भी अंतर्ध्यान हो गए और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णु दत्त भी लौटकर भोपाल आ गए। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी और नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार भी प्रदेश में ही हैं। मध्यप्रदेश विधानसभा के मानसून सत्र की भी तारीख आ गई। 1 जुलाई से 14 जुलाई तक विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर सदन को खुशनुमा माहौल और मौसम में आगे बढ़ाएंगे।
और 31 मई यानि आज हम सब मिलकर स्वस्थ और तंबाकू-मुक्त समाज का निर्माण करने का संकल्प लें। 31 मई विश्व तंबाकू निषेध दिवस के रूप में मनाया जाता है। तंबाकू का सेवन न केवल स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, बल्कि यह परिवार और समाज पर भी गंभीर प्रभाव डालता है। तंबाकू से कैंसर, हृदय रोग और फेफड़ों की जानलेवा बीमारियां होती हैं। तो यह दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य तंबाकू के सेवन से होने वाले स्वास्थ्य और सामाजिक खतरों के प्रति जागरूकता लाना और लोगों को तंबाकू का सेवन छोड़ने के लिए प्रेरित करना है। तो आओ हम सब अपने शरीर, अपने परिवार, अपने समाज, राज्य और राष्ट्र की और ज्यादा परीक्षा न लें और तंबाकू छोड़ने का आज ही संकल्प लें ताकि हम सब हर परीक्षा में सफल हो सके…। हम मजबूत होंगे तो लोकतंत्र मजबूत रहेगा फिर चाहे मानसून परीक्षा ले, मौसम परीक्षा ले, मतदाता परीक्षा ले, राजनैतिक दलों के नेता परीक्षा लें या फिर ईवीएम ही परीक्षा लेने पर उतारू रहे। अब तो बस 1 जून को आखिरी मतदान और फिर 4 जून को लोकतंत्र की जीत का दिन करीब है। मानसून छकाता रहे, तपाता रहे, चिढाता रहे …पर हर परीक्षा में पास होकर जीतेगा तो लोकतंत्र ही…।