अरुणाचल बढ़ाता दमक, सिक्किम सिखाता सबक…
दो राज्यों के चुनाव परिणाम में सियासत अपने दो चेहरों को खुलकर बयां कर रही है। 2 जून 2024 को अरुणाचल और सिक्किम के चुनाव परिणाम घोषित हुए। अरुणाचल प्रदेश भाजपा को उत्साहित कर रहा है और उमंग से भर रहा है। तो सिक्किम सबक सिखा रहा है कि जब तक जनता नहीं चाहती, तब तक लोकतंत्र में सत्ता की कुर्सी किसी को नसीब नहीं हो पाती। भाजपा ने अरुणाचल प्रदेश में लगातार तीसरी बार सत्ता में वापसी करते हुए 60 सदस्यीय विधानसभा में 46 सीट जीतकर बहुमत हासिल कर लिया है। अरुणाचल की तर्ज पर ही भाजपा दिल्ली के ताज को तीसरी बार हासिल कर हैट्रिक मारने की तैयारी में है। दूसरी तरफ
सिक्किम में एसकेएम की आंधी में सबका सूपड़ा साफ हो गया। प्रेम सिंह तमांग के नेतृत्व में एसकेएम ने 32 में से 31 सीटों पर जीत हासिल की। सिक्किम में इस बार विपक्ष विहीन सरकार बनने जा रही है। लेकिन यह पहली बार नहीं है, जब सिक्किम में विपक्ष विहीन सरकार बन रही है। इससे पहले भी 2009 के विधानसभा चुनाव में एसडीएफ ने 32 की 32 सीटों पर जीत हासिल की थी और पवन चामलिंग राज्य के मुख्यमंत्री बने थे। इसी तरह से 2004 के विधानसभा चुनाव में भी एसडीएफ को 31 सीटें और कांग्रेस को केवल एक सीट मिली थी। तब भी विपक्ष में कोई पार्टी नहीं थी।
पर सिक्किम सबक सिखा रहा है कि सत्ता किसी की बपौती नहीं है। जब मतदाताओं की नजरों में गिरे, तब फिर लाख कोशिश करो नतीजा सिफर ही रहेगा। उदाहरण हैं सिक्किम के पूर्व और देश में सर्वाधिक समय सीएम रहने वाले पवन चामलिंग।सिक्किम में एसडीएफ प्रमुख और पूर्व सीएम पवन चामलिंग दो सीटों से लड़ रहे थे। वे दोनों ही सीटों से हार गए। नामची-सिंघीथांग सीट पर मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग की पत्नी कृष्णा कुमारी राय (एसकेएम) ने पूर्व सीएम को शिकस्त दी।अब शिकस्त देना वाला महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि महत्वपूर्ण बात यह है कि मतदाताओं के मन से उतरे तो दिग्गजों को भी जमीन हासिल नहीं हो पाती। दूसरी तरफ सिक्किम में ही सीएम प्रेम सिंह तमांग ने दो सीटों पर चुनाव लड़ा था, दोनों पर जीत हासिल की। वहीं राष्ट्रीय दलों भाजपा और कांग्रेस का खाता भी नहीं खुल पाया। यहां के लोग क्षेत्रीय अस्मिता को प्रमुखता देते हैं। यहां के लोगों को बाहर से ज्यादा अपने ही स्थानीय लोगों पर भरोसा है। कहते हैं, हमारे स्थानीय मुद्दों को राष्ट्रीय पार्टियां समझ नहीं सकतीं।1990 के दशक की शुरुआत से सक्रिय राजनीति करने वाले प्रेम सिंह तमांग ने 2019 में सिक्किम की 25 वर्षों की पुरानी पार्टी को पवन चामलिंग की सत्ता को उखाड़ फेंका।
सिक्किम ने सबक भाजपा को भी सिखाया है। राज्य में भाजपा ने 31 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ा। हालांकि, भाजपा राज्य में एक सीट नहीं जीत पाई। यहां केवल 5.18 प्रतिशत वोट भाजपा को मिल सके। सिक्किम भाजपा अध्यक्ष दिली राम थापा अपर बुर्तुक विधानसभा क्षेत्र में एसकेएम उम्मीदवार काला राय से हार गए। भाजपा ने मात्र लाचेन मंगन सीट पर चुनाव नहीं लड़ा। अधिकांश सीटों पर भाजपा उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई। महत्वपूर्ण बात यह है कि वर्तमान विधानसभा में भाजपा के 12 सदस्य थे। इसमें 10 तो एसडीएफ छोड़कर भाजपा में आए थे।
पर मतदाताओं ने नकारा तो दल बदलकर यह सभी दलदल में पहुंच गए।
वहीं अरुणाचल प्रदेश में भाजपा के मुख्यमंत्री पेमा खांडू सहित सभी बड़े नेता जीते। खेल और संगीत के शौकीन पेमा खांडू पिछले कुछ वर्षों में अरुणाचल प्रदेश में एक बड़े नेता के रूप में उभरे हैं, विशेषकर 2016 में पैदा हुए उस संवैधानिक संकट के बाद जिसके कारण राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा था। खांडू कुशल चुनावी रणनीतिकार के रूप में अपनी छवि बनाने में भी सफल रहे हैं। अपनी रणनीति की बदौलत ही उन्होंने इस पूर्वोत्तर राज्य में कमल को फिर से खिलाया है। भाजपा ने अरुणाचल प्रदेश में लगातार तीसरी बार सत्ता में वापसी करते हुए 60 सदस्यीय विधानसभा में 46 सीट जीतकर बहुमत हासिल कर लिया। खास बात यह है कि भारतीय जनता पार्टी ने 10 सीट पहले ही निर्विरोध जीत ली थीं, इनमें पेमा खांडू की एक सीट भी शामिल है। नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) को पांच सीट मिलीं, जबकि पीपुल्स पार्टी ऑफ अरुणाचल ने दो और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) ने तीन सीट पर जीत दर्ज की। कांग्रेस ने एक सीट जीती और तीन सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार विजयी हुए हैं। भाजपा ने अरुणाचल प्रदेश में 2019 के विधानसभा चुनाव में 41 सीट पर जीत हासिल की थी।
बात बस इतनी सी है कि सत्ता किसी की सगी नहीं है और जब तक भरोसा तब तक ही मतदाताओं का साथ किसी सियासी दल को हासिल हो पाता है। बाकी एक बार भरोसा खोया, तब फिर सत्ता की पटरी पर आ पाना बहुत ही कठिन और संघर्ष से भरा होता है। अब लोकसभा चुनाव को ही देख लो। एग्जिट पोल भाजपा की सरकार बना रहे हैं और राहुल गांधी इंडी गठबंधन की। 2 जून को अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम ने आइना दिखाया है और अब 4 जून को पूरा देश राजनैतिक दलों और चुनाव पूर्व बने गठबंधनों को आइना दिखाने जा रहा है। सियासत में सिक्किम जहां सबक सिखा रहा है, तो अरुणाचल प्रदेश दमक कायम रखते हुए साबित कर रहा है कि भरोसा कायम है…।