Real Parties Won in Maharashtra : महाराष्ट्र की जनता ने उद्धव और पवार की असली पार्टी पर मुहर लगाई!

भाजपा ने दो पार्टियों को तोड़कर जिस तरह राज्य की सत्ता हथियाई, वो गले पड़ गया!

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Real Parties Won in Maharashtra :महाराष्ट्र की जनता ने उद्धव और पवार की असली पार्टी पर मुहर लगाई!

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मुंबई से नवीन कुमार का विश्लेषण

Mumbai : महाराष्ट्र में जनता की अदालत ने उद्धव ठाकरे की शिवसेना और शरद पवार की एनसीपी पर असली पार्टी की मुहर लगा दी। शिवसेना और एनसीपी में विभाजन के बाद उद्धव और शरद को जब मुख्य चुनाव आयोग और अदालत से न्याय नहीं मिला, तो उन्होंने जनता की अदालत में ही जाने का फैसला किया था और इस बार के लोकसभा चुनाव में जनता ने अपना फैसला दे दिया। उद्धव की शिवसेना ने एकनाथ शिंदे की शिवसेना से ज्यादा सीटें हासिल की, तो शरद की एनसीपी ने भी अजित पवार की एनसीपी को बुरी तरह से परास्त कर दिया। अजित की एनसीपी को एक ही सीट मिली है। शिंदे तो राज्य के मुख्यमंत्री भी हैं और उनके नेतृत्व में चुनाव भी लड़ा गया। लेकिन जनता ने असली पार्टी के पक्ष में अपना मत जाहिर किया। इस चुनाव में उद्धव एक बेहतरीन राजनीतिक खिलाड़ी के रूप में उभरकर सामने आए, जिन्होंने न सिर्फ शिवसैनिकों का मनोबल बढ़ाया बल्कि महा विकास आघाड़ी के घटक दलों कांग्रेस और एनसीपी को भी फायदा दिलाया। नरम हिंदुत्व के बल पर अल्पसंख्यकों का भी विश्वास जीता है।

बीजेपी ने पहले उद्धव की शिवसेना में विभाजन कराया और उद्धव के नेतृत्व वाली महा विकास आघाड़ी सरकार को गिरा दिया। इसके बाद बीजेपी ने शिवसेना के विभाजित गुट के नेता शिंदे के नेतृत्व में राज्य में सरकार बनाई। विपक्ष को और कमजोर करने के लिए बीजेपी ने शरद पवार की एनसीपी में भी विभाजन करा दिया। विभाजन के बाद बीजेपी ने अजित गुट को भी शिंदे सरकार में शामिल करा दिया। बीजेपी पर आरोप है कि उसने शरद की पार्टी में ही विभाजन नहीं कराया, बल्कि राजनीति के चक्र में फंसाकर अजित के माध्यम से पवार परिवार में भी विभाजन की रेखा खींच दी गई। यह राज्य के राजनीतिक इतिहास में अनोखा कारनामा था जिसकी आलोचना भी हुई। इस आलोचना के अलावा राज्य की जनता ने भी इसे अपनी तरह से देखा और परखा। उद्धव और शरद को भरोसा था कि राज्य की जनता अपने फैसले से गंदी राजनीति करने वालों को जवाब देगी और इस चुनाव में जवाब देखने को मिला।

उद्धव ठाकरे और शरद पवार की पार्टी में विभाजन की राजनीति विपक्ष को कमजोर वाली थी। लेकिन, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब उनकी पार्टी को नकली कहना शुरू किया तो राज्य की जनता इसे अलग तरह से देखने लगी। इसी बीच मोदी ने उद्धव को बाल ठाकरे का नकली पुत्र भी कहा तो इसे न सिर्फ शिवसैनिकों बल्कि राज्य की जनता ने इसे अपमानित करने वाली बात मान ली। जनता खामोश रही। जनता ने मोदी का शिंदे की शिवसेना और अजित की एनसीपी को असली पार्टी कहना भी चुपचाप सुन लिया। अब लोकसभा चुनाव के जो नतीजे आए हैं उसमें स्पष्ट है कि जनता को शिवसेना और एनसीपी में विभाजन के साथ मोदी की बात भी नागवार गुजरी और जनता ने जो अपना फैसला दिया उसमें मोदी और बीजेपी महागठबंधन महायुति को जोर का झटका दिख रहा है। चुनाव नतीजों के बाद शरद पवार ने राज्य की जनता और कार्यकर्ताओं का आभार मानते हुए कहा कि राज्य की जनता ने बीजेपी की तोड़फोड़ की राजनीति को करारा जवाब दिया है। उधर, मोदी पर तंज कसते हुए उद्धव गुट के शिवसेना नेता संजय राऊत ने कहा कि नकली भगवान (मोदी) हार गए, नकली संतान (उद्धव) ने आपको हराया है। ध्यान रहे कि मोदी ने उद्धव को बाल ठाकरे का नकली संतान कहा था।

उद्धव की शिवसेना और शरद की एनसीपी में विभाजन के बाद बीजेपी खुद को राज्य की सबसे ताकतवर पार्टी मानने लगी थी। उसके अंदर इतना तो अहंकार आ ही गया था कि इस बार लोकसभा चुनाव में उद्धव और शरद का नामोनिशान खत्म कर दिया जाएगा। लेकिन, यह सच है कि महाराष्ट्र में बाल ठाकरे और उनकी पार्टी शिवसेना को मिटाना आसान नहीं है। उद्धव ने भी कहा था कि राज्य की राजनीति ठाकरे ब्रांड से चलती है। बीजेपी ने पहले विभाजन कराकर शिवसेना और उसके निशान को चुराया और उसके बाद मनसे अध्यक्ष राज ठाकरे से हाथ मिलाकर ठाकरे ब्रांड को भी चुराने की कोशिश की गई। लेकिन, बाल ठाकरे के शिवसैनिकों को पता है कि असली शिवसेना कौन है। उधर 83 साल के शरद अपने भतीजे अजित को परास्त करने के लिए मैदान में उतर गए और उन्होंने जता दिया कि उनकी चाणक्य नीति कैसे भारी पड़ती है। उद्धव और शरद के साथ सहानुभूति की लहर चली और राज्य में बीजेपी की चुनावी रणनीति को ध्वस्त कर दिया।

महाराष्ट्र ऐसा राज्य है, जिसके सहारे बीजेपी 400 पार का सपना साकार करना चाहती थी। इसलिए मोदी ने राज्य में लगभग 18 रैलियां की। लेकिन, उद्धव और शरद मोदी के आगे चुनौती के रूप में खड़े हो गए और उनके साथ बीजेपी पर लगातार हमला करते रहे। मोदी ने जब शरद को भटकती आत्मा कहा तो शरद उससे विचलित नहीं हुए। बल्कि, जवाब में कहा कि हां, मैं किसानों की समस्या सुलझाने के लिए भटकता रहता हूं। शरद की इस भावना का किसानों पर सकारात्मक असर पड़ा। उधर, उद्धव ने भी एक नारा बुलंद किया ‘अब की बार बीजेपी तड़ीपार।’ इसका भी मतदान पर असर पड़ा। अब देखिए, महाराष्ट्र की राजनीति में सबसे ताकतवर पार्टी वही है जिसका मुंबई पर कब्जा रहता है। राज्य में महायुति (बीजेपी, शिंदे गुट शिवेसना, अजित गुट एनसीपी) और महा विकास आघाड़ी (कांग्रेस, उद्धव गुट शिवसेना, शरद गुट एनसीपी) में सीधा मुकाबला रहा है। आघाड़ी के घटक दलों ने एकता कायम रखी। मुंबई पर राज करने के लिए मोदी ने रोड शो किया और राज ठाकरे के साथ ऐतिहासिक शिवाजी पार्क में सभा की, ताकि उद्धव के मराठी वोटों को खींचा जा सके।

मुंबई में लोकसभा की 6 सीटें हैं। अब नतीजा भी देख लीजिए। एक तरह से उद्धव ने मुंबई से बीजेपी और शिंदे की शिवसेना को तड़ीपार करा ही दिया। शिंदे गुट को मुंबई की तीनों सीटों पर हार मिली और मोदी ने मुंबई उत्तर-पूर्व लोकसभा सीट पर अपने जिस गुजराती उम्मीदवार मिहिर कोटेचा के लिए रोड शो किया था उसे भी हार मिली है। मोदी का 400 पार का सपना चूर हुआ और मोदी को राज्य की जनता ने नकार दिया। बीजेपी मुंबई में सिर्फ पियुष गोयल वाली एक सीट बचाने में कामयाब हो पायी है। हालांकि, शिदे ने कांग्रेसी नेता मिलिंद देवरा को अपनी पार्टी में शामिल कर उन्हें राज्यसभा में भी भेजा। लेकिन, शिंदे के लिए मिलिंद दक्षिण मुंबई में मददगार साबित नहीं हो पाए। शिंदे के सभी उम्मीदवार वैसे थे जो ईडी से जान बचाने के लिए उद्धव का साथ छोड़ गए थे। लेकिन, शिंदे इस बात से खुश हैं कि उन्होंने अपने ठाणे गढ़ को बचा लिया है। इस गढ़ में कल्याण सीट से वह अपने बेटे डॉ श्रीकांत शिंदे को जिताने में कामयाब हुए हैं।

बीजेपी की हालत तो यह हो गई कि खुद तो डूबेंगे सनम तुमको भी ले डूबेंगे। राज्य में 48 लोकसभा की सीटें हैं। पिछले चुनाव में बीजेपी 22 सीटों पर जीत हासिल करके राज्य की बड़ी पार्टी बनी थी। इस बार चुनाव में वह आधी हो गई। जबकि, उसने 28 सीटों पर चुनाव लड़ा था। फिसड्डी रहने वाली कांग्रेस को नया जीवन मिल गया है और वह 17 सीटों पर चुनाव लड़कर बड़ी पार्टी हो गई। जबकि, पिछले चुनाव में उसने एक ही सीट पर जीत हासिल की थी। बीजेपी ने नांदेड़ से कांग्रेस के ताकतवर नेता अशोक चव्हाण से बगावत कराई और उन्हें राज्यसभा में भेजा। लेकिन, नांदेड़ में कांग्रेस ने अपनी सीट बरकरार रखी। अमरावती में नवनीत राणा का हारना बीजेपी के लिए सदमे से कम नहीं है। नवनीत ने ही उद्धव के खिलाफ हनुमान चालीसा का पाठ करके सुर्खियां बटोरी थी। लेकिन, उन्हें कांग्रेस के उम्मीदवार से हार मिली है। उद्धव ने 21 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे जिसमें से 13 सीटों पर शिंदे गुट के उम्मीदवारों से मुकाबला था।

उद्धव गुट ने शिंदे गुट को परास्त करके 7 सीटों पर बढ़त बनाई। इससे जाहिर है कि शिवसैनिक उद्धव के साथ हैं। इधर 10 सीटों पर चुनाव लड़ने वाले शरद ने 7 सीटों पर बढ़त हासिल की और अपनी बारामती की सीट भी बचा ली। बारामती को जीतने के लिए अजीत ने अपनी पत्नी सुनेत्रा पवार को सुप्रिया सुले के सामने खड़ा किया था। लेकिन, अजित अपनी पत्नी को जीत नहीं दिला पाए। इससे पहले पिछले चुनाव में उन्होंने अपने बेटे पार्थ पवार को भी मैदान में उतारा था। लेकिन, वह बेटे को जिताने में सफल नहीं हुए थे। इस चुनावी नतीजे पर शरद ने कहा है कि यह परिवर्तन की दिशा है। इस परिवर्तन की दिशा का इशारा पांच महीने के अंदर होने वाले राज्य विधानसभा के चुनाव की तरफ भी है।