Today World Environment Day : दुनिया को आज पर्यावरणीय न्याय की वैश्विक स्तर पर पहल जरूरी!

Today World Environment Day : दुनिया को आज पर्यावरणीय न्याय की वैश्विक स्तर पर पहल जरूरी!

पर्यावरण के प्रति जागरूकता पैदा करने, पर्यावरण के महत्व, पर्यावरण में होने वाले बदलावों के बारे में जागरूक करने तथा पर्यावरण की गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए हर साल 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। यह दिवस पर्यावरण संबंधी मुद्दों को संबोधित करने की तत्काल आवश्यकता की याद दिलाता है। इस वर्ष विश्व पर्यवारण दिवस की थीम ‘भूमि पुनर्स्थापन, मरुस्थलीकरण और सूखे से बचाव’ है जिसके लिए ‘हमारी भूमि, हमारा भविष्य’ है जिसमें इस बात पर जोर है कि हम ही इस पुनर्स्थापना पर कार्य करने वाली महत्त्वपूर्ण पीढ़ी हैं। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) पर्यावरणीय मुद्दों पर अंतर्राष्ट्रीय संवाद और सहयोग के लिए नेतृत्व करता है, जिससे समन्वित प्रयास और वैश्विक स्तर पर अधिक प्रभावी पर्यावरणीय नियमन हो सके। सऊदी अरब इस वर्ष विश्व पर्यावरण दिवस की मेजबानी करेगा।

महासागर में फैले माइक्रोप्लास्टिक, प्रशांत महासागर में बढ़ता कचरा, मृत समुद्री जानवरों के पेट से निकलने वाले प्लास्टिक, सीसे से दूषित होता पेयजल, पक्षियों की विलुप्त होती प्रजातियाँ, बड़े पैमाने पर मछलियों की मौत, हीट वेव अलर्ट इत्यादि से संबंधित शोध आधारित खबरें भविष्य में पैदा होने वाले वैश्विक संकट से दुनिया को सोचने पर मजबूर कर रही हैं। पर्यावरणीय गिरावट, प्राकृतिक संसाधनों की कमी, पारिस्थितिकी तंत्र के विनाश और वन्यजीवों के विलुप्त होने के माध्यम से पर्यावरण की जैव विविधता, मानव स्वास्थ्य और जीवन की समग्र गुणवत्ता प्रभावित हो रही है। इस वर्ष के जनवरी, फरवरी महीने पूर्व वर्षों की तुलना में अब तक के सबसे गर्म महीने थे। पिछले कई वर्षों के तापमान रिकॉर्ड यह बताते हैं कि तापमान वृद्धि की दरों में तेजी आई है। 2023 और 2024 में ही तापमान वृद्धि के बीच का अंतर काफी बड़ा है जो दर्शाता है कि तापमान वृद्धि की दर काफी तेज है।

दुनिया के अलग-अलग हिस्सों से पर्यावरणीय क्षरण के आँकड़े इकट्ठे किए गए हैं जिनसे भविष्य के संकट की कल्पना की जा सकती है। ग्रेट पैसिफ़िक गार्बेज पैच समुद्री मलबे का एक विशाल संचय है जिसमें प्लास्टिक कचरा होता है जो उत्तरी प्रशांत महासागर में तैरता है। समुद्री जीवन को प्रभावित ही नहीं करता बल्कि समूचे समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को बाधित करता है। समुद्री भोजन के माध्यम से यह मानव खाद्य श्रृंखला में प्रवेश करता है। अमेजन वनक्षेत्र जिसे पृथ्वी के फेफड़े के रूप में जाना जाता है उसमें अंधाधुन कटाई से जैव विविधता का नुकसान हुआ है। वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में बढ़ोत्तरी का यह महत्वपूर्ण कारक है। लाखों लोगों की आस्था का प्रतीक गंगा नदी औद्योगिक अपशिष्ट, सीवेज और धार्मिक प्रसाद से अत्यधिक प्रदूषित है। नदी पर निर्भर लोगों के स्वास्थ्य के साथ-साथ जलीय जीवन और इसकी पारिस्थितिकी को लगातार नुकसान पहुँच रहा है। आस्ट्रेलिया के ग्रेट बैरियर रीफ ने जलवायु परिवर्तन से जुड़े समुद्री तापमान में हुई वृद्धि के कारण गंभीर कोरल ब्लीचिंग की घटनाओं का अनुभव किया है। समुद्री जैव विविधता, पर्यटन और मत्स्य पालन पर इससे काफी असर पड़ा है।

इसके अलावा चीन में बढ़ता वायु प्रदूषण, वनों की कटाई से अफ्रीकी देशों में बढ़ता मरुस्थलीकरण, नाइजर डेल्टा (नाइजीरिया) में कई दशकों से बड़े पैमाने पर होने वाले तेलों के रिसाव, अमेज़न बेसिन (दक्षिण अमेरिका) में खनन गतिविधियों से लगातार हो रहे भू-क्षरण, इंडोनेशिया के सिटारम नदी में औद्योगिक कचरों के कारण होने वाला प्रदूषण, बढ़ते ग्लोबल वार्मिंग के कारण आर्कटिक की लगातार पिघलती बर्फ जैसे उदाहरण पर्यावरण क्षरण से निपटने के लिए वैश्विक सहयोग और पर्यावरण संरक्षण की नई नीतियों और क्रियान्वयन की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करते हैं। जाहिर है कि इन मुद्दों को वैश्विक फलक तक ले जाने के लिए व्यापक रणनीतियों की आवश्यकता है, जिसमें सख्त नियम, नवीन तकनीकें और समाज के सभी क्षेत्रों की सक्रिय भागीदारी शामिल है। ठोस कार्रवाई करके हम पर्यावरण क्षरण के प्रभाव को कम कर सकते हैं और भविष्य की पीढ़ियों के लिए पृथ्वी की रक्षा कर सकते हैं।

विश्व में होने वाले हालिया पर्यावरणीय परिवर्तन चिंताजनक हैं और ये जलवायु संकट के जारी रहने के संकेत भी हैं। यूएन रिपोर्ट में पिछले वर्ष मौसम से संबंधित अनेकों चरम घटनाएँ दर्ज की गईं। पूर्वी अफ्रीका में सूखे के कारण लाखों लोगों को गंभीर खाद्य असुरक्षा का सामना करना पड़ा। पाकिस्तान में रिकॉर्ड तोड़ बारिश के कारण विनाशकारी बाढ़ आई, जिससे लाखों लोग विस्थापित हुए और भारी आर्थिक क्षति हुई। यूरोप में ग्लेशियरों के पिघलने की अप्रत्याशित दर थी और अंटार्कटिक समुद्री बर्फ़ का विस्तार रिकॉर्ड स्तर पर पहुँच गया।

वन्य जीवकोश मे दर्ज आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2023 सबसे गर्म वर्ष था जिसने पिछले रिकॉर्ड को पीछे छोड़ दिया और वैश्विक औसत तापमान पूर्व से 1.45 डिग्री सेल्सियस ऊपर पहुंच गया। महासागर लगातार गरम हो रहे हैं और समुद्री जलस्तर में रिकॉर्ड बढ़ोत्तरी हुई जिससे समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र और खाद्य प्रणालियाँ प्रभावित हुईं। कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड का स्तर अभूतपूर्व ऊंचाई पर पहुंच गया।

ये सारे रिकॉर्ड और आँकड़े पर्यावरणीय परिवर्तन और जलवायु प्रभाव बढ़ते जलवायु संकट को लेकर चेताती हैं। प्रश्न यह है कि वर्तमान परिस्थितियां यदि ऐसी ही बनी रहीं तो पर्यावरण का भविष्य क्या होगा। पर्यावरण का भविष्य कई कारकों पर निर्भर करता है, जिसमें मानवीय गतिविधियाँ, नीतिगत निर्णय, तकनीकी प्रगति और प्राकृतिक प्रक्रियाएँ शामिल हैं। यदि कोई महत्वपूर्ण हस्तक्षेप नहीं किया गया तो 2040 तक महासागरों में प्लास्टिक की मात्रा तीन गुनी हो जाने की उम्मीद है। ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन यदि इसी तरह जारी रहा तो सदी के अंत तक वैश्विक तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 2 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक बढ़ सकता है। प्राकृतिक वासों के निरंतर विनाश, प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन और अत्यधिक दोहन से प्रजातियों के विलुप्त होने की दर एक हजार गुना अधिक हो सकती है।

भारत भी वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, वनों की कटाई, भूमि क्षरण, जल की कमी, अपशिष्ट प्रबंधन, जलवायु परिवर्तन प्रभाव और जैव विविधता की हानि सहित विभिन्न मानवीय गतिविधियों के कारण पैदा हुए पर्यावरणीय संकट का सामना कर रहा है। पर्यावरण क्षरण एक गंभीर मुद्दा है जिसके लिए तत्काल और समन्वित कार्यवाकी की आवश्यकता है। इन चुनौतियों से निपटने के लिए सख्त पर्यावरण नियमों को लागू करना, संधारणीय प्रथाओं को बढ़ावा देना, जन जागरूकता बढ़ाना, तकनीकी नवाचारों को लागू करना और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना जैसे उपायों पर काम किया जाना चाहिए। भारत की पहल कई मायनों में यहां है जो दुनिया को इस गंभीर संकट से निपटने का रास्ता सुझा सकती है जो सुरक्षित भविष्य की ओर ले जा सकती है।

अपने प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा, प्रदूषण को कम करने और सतत विकास को बढ़ावा देने के लिए भारत में कई प्रमुख पर्यावरण संरक्षण अधिनियम हैं: वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972; जल (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1974; वायु (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1981; पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986; जैविक विविधता (संशोधन) विधेयक 2021 (जैविक विविधता अधिनियम, 2002); वन संरक्षण संशोधन विधेयक 2023 (वन संरक्षण अधिनियम 1980) जो अन्य पर्यावरणीय नियमों और नीतियों के साथ मिलकर भारत में पर्यावरण संरक्षण तथा संरक्षण के लिए कानूनी ढांचा तैयार करते हैं। वे वर्तमान और भविष्य की पीढ़ियों के लिए सतत विकास और अपनी प्राकृतिक विरासत के संरक्षण के प्रति देश की प्रतिबद्धता को दर्शाते हैं।

पर्यावरण कानून (स्वच्छ वायु अधिनियम, स्वच्छ जल अधिनियम और लुप्तप्राय प्रजाति अधिनियम), अंतर्राष्ट्रीय समझौते (जैसे पेरिस समझौता) और औद्योगिक गतिविधियों का विनियमन (औद्योगिक उत्सर्जन और अपशिष्ट प्रबंधन पर सख्त नियम) जैसी नीतियों का कड़ाई से पालन किया जाना चाहिए। जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करने और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिए सौर, पवन और जल विद्युत जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के उपयोग को बढ़ावा, रासायनिक उपयोग को कम करने जैसे उपायों को भी शामिल किया जाना चाहिए। राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभ्यारण्यों के लिए संरक्षण, क्षरित भूमि, वन, आर्द्रभूमि और जलमार्गों के पुनर्वास के लिए पुनरुद्धार परियोजनाएं, लुप्तप्राय प्रजातियों की रक्षा के लिए उपायों को लागू करके वन्यजीव संरक्षण, नवीन अपशिष्ट प्रबंधन समाधानों को लागू करके तकनीकी नवाचार अपनाने चाहिए।

पर्यावरण शिक्षा, जन जागरूकता अभियान और सामुदायिक भागीदारी को बढ़ावा देना, कार्बन मूल्य निर्धारण तंत्र को लागू करना, वित्तीय प्रोत्साहन और हरित उद्यमिता के लिए समर्थन के माध्यम से हरित परियोजनाओं और टिकाऊ उद्योगों में निवेश को बढ़ावा देना भी इस दिशा में ठोस कदम होगा। बढ़ते शहरीकरण में हरित भवन मानकों को अपनाते हुए स्मार्ट विकास सिद्धांतों के क्रियान्वयन की आवश्यकता है। पर्यावरण संरक्षण के लक्ष्यों को प्राप्त करने और भविष्य की पीढ़ियों की रक्षा करने के लिए स्थानीय, राष्ट्रीय और वैश्विक पर सहयोगात्मक रवैये के साथ कार्रवाई आवश्यक है। चुनौतियाँ बहुत बड़ी हैं यदि हम ऐसा करने में सक्षम हैं, तो हम पर्यावरण, समाज और मानवता के साथ न्याय कर रहे होंगे।