PM मोदी का राजतिलक 9 जून को,कई अग्नि परीक्षा से भी गुजरना होगा!
गोपेन्द्र नाथ भट्ट का विशेष राजनीतिक विश्लेषण
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का राजतिलक एक दिन आगे के लिए टल गया है और अब वे प्रधान मंत्री के पद और गोपनीयता की शपथ 8 जून के स्थान पर 9 जून को सायं राष्ट्रपति भवन के खुले प्रांगण में अपनी पार्टी भाजपा और एनडीए गठबंधन साथियों के साथ लेंगे। इस ऐतिहासिक पल की साक्षी के लिए देश-विदेश के कई विशिष्ठ अतिथियों को भी आमंत्रित किया जा रहा है।
एनडीए गठबंधन के नेताओं ने नरेंद्र मोदी को अपना नेता चुन लिया है। मुख्य रूप से किंग मेकर की भूमिका में आए जनता दल यू के सुप्रीमो और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तथा तेलगु देशम पार्टी टीडीपी नेता चंद्रबाबू नायडू ने मोदी को अपने समर्थन पत्र सौप कर राजनीतिक हलकों में चल रहे कयासों को दूर कर दिया है।
प्रधानमंत्री के रूप में लगातार तीसरी बार शपथ लेने से पहले नरेन्द्र मोदी को कई अग्नि परीक्षा से भी गुजरना है। सर्व प्रथम नई दिल्ली में भाजपा संसदीय दल की शुक्रवार को पुराने संसद भवन के केंद्रीय कक्ष में सुबह 11 बजे आहूत की गई बैठक में उन्हे संसदीय दल का नेता चुना जाना है। कतिपय लोग अभी भी यह अंदेशा जता रहे है कि मोदी को इस कठिन परीक्षा के दौर से गुजरना पड़ेगा क्योंकि भाजपा इस बार अपने बलबूते पर बहुमत के जादुई आंकड़े 272 को छू नहीं पाई है और बहुमत से 32 सीटें कम 240 पर ही अटक गई हैं। राजनीतिक जानकार बता रहे है कि भाजपा और उसके मार्ग दर्शक आरएसएस का एक वर्ग भाजपा संसदीय दल के नेता पद के लिए किसी संघनिष्ठ नेता का नाम सुझा रहा है लेकिन वर्तमान हालातों में पार्टी के मनोबल को बनाए रखने तथा देश भर में एक और गलत संदेश नही जाए इसे ध्यान में रखते हुए फिलहाल इस पद पर नरेन्द्र मोदी को ही सर्व सम्मति से चुने जाने की प्रबल संभावनाएं है। पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के लिए गुरुवार और शुक्रवार की यह राते कत्ल की रात से कम नही मानी जा रही है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सामने दूसरी सबसे बड़ी अड़चन अपने मंत्रिपरिषद का गठन करना है। अब तक रक्षा, गृह, विदेश, वित्त, रेल, सड़क परिवहन, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण, कृषि, सूचना और प्रसारण,जल संसाधन आदि महत्वपूर्ण मंत्रालय भाजपा के पास रहते आते है लेकिन वर्तमान हालातों में इन सभी को भाजपा के पाले में रखना कठिन लग रहा है। मोदी के सामने अपने साथी दलों की अति महत्वाकांक्षी मांगों को पूरा करना भी एक चुनौती ही है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार टीडीपी लोकसभा स्पीकर और अन्य महत्वपूर्ण मंत्रालयों तथा अपने अपने प्रदेश के लिए विशेष पैकेज की मांग कर रही है। इसी प्रकार जेडीयू भी विशेष पैकेज के साथ ही अपनी अन्य मांगे मनवाना चाहता हैं। नरेंद्र मोदी के राजनीतिक जीवन में उन्हे पहली बार गठबंधन की सरकार को चलाने की चुनौती मिली है। इस कसौटी पर खरा उतरना आसान नहीं बल्कि काफी टेड़ा काम हैं। मोदी की कार्य शैली को नजदीक से जानने वाले बताते है कि वे किसी दवाब में काम करने के आदी नहीं है। ऐसे में गठबन्धन के साथियों के साथ सत्ता की गाड़ी को आगे ले जाना उनके लिए किसी टेडी खीर से कम नही है। फिर कोमन सिविल कोड तथा भाजपा और आरएसएस के अन्य एजेंडे को आगे बढ़ाना अब संभव हो पाएगा अथवा नहीं? यह भी एक कठिन एवं दुरूह राह पर चलने जैसा कार्य होगा क्योंकि टीडीपी और जेडीयू के अपने क्षेत्रीय एजेंडे है,जिन पर उनका अस्तित्व टिका हुआ है।
मोदी के सामने अपनी पार्टी भाजपा के वरिष्ठ नेताओं और संघ की महत्वाकांक्षी आकांक्षाओं को पूरा करने का भी हमेशा दवाब रहेगा। साथ ही उनके लिए अपने चहेते नेताओं को उनकी मर्जी के मुताबिक मंत्रालयों में बिठाना भी किसी परीक्षा से कम नही होगा। हालांकि राजस्थान और उत्तर प्रदेश जैसे बड़े प्रदेशों के पार्टी सांसदों को अब वे पूर्व की भांति अधिक संख्या में मंत्री पद दे पाएंगे अथवा नहीं ? यह यक्ष प्रश्न भी गौर करने वाला होगा।
नरेंद्र मोदी लगातार तीसरी बार भारत के प्रधानमंत्री बनकर इतिहास रचने जा रहे हैं।
उनसे पहले ऐसा सिर्फ एक बार हुआ है, जब ब्रिटिश शासन से आज़ादी हासिल करने के बाद पण्डित जवाहर लाल नेहरू 16 साल तक आज़ाद भारत के प्रधानमंत्री रहे थे लेकिन इस बार मोदी को एनडीए के सहयोगी दलों के साथ मिली जीत में उनकी अपनी पार्टी भाजपा की 63 सीटों पर हुई हार भी शामिल है। अपने बलबूते पर सरकार नहीं बना पाने की सूरत में वो अब अपने सहयोगी दलों पर पूरी तरह आश्रित हो गए हैं। अपने लंबे राजनीतिक करियर में नरेंद्र मोदी ने कभी भी गठबंधन सरकार का नेतृत्व नहीं किया है ,ना गुजरात में,बतौर मुख्यमंत्री और ना ही अपने पिछले दो कार्यकालों में केंद्र के शासन में। दूसरी तरफ़, कांग्रेस के नेतृत्व वाले इंडिया गठबंधन को उम्मीद से ज़्यादा सीटें मिली हैं। मज़बूत विपक्ष के सामने भाजपा की कमज़ोर स्थिति के मद्देनज़र मोदी के लिए पार्टी के अंदर और बाहर विशेष कर सरकार चलाने में स्थायित्व बनाए रखना एक बड़ी चुनौती होगा। विपक्षी नेता राहुल गांधी ने चुनावी नतीजों को प्रधानमंत्री की नैतिक हार बताया हैं और मीडिया से बातचीत में कहा हैं कि, “देश ने मोदी जी को कहा है कि हमें आप नहीं चाहिए।” राहुल गांधी ने गुरुवार को शेयर बाजार का मामला उठा कर भी अपना हमलावर स्वरूप दिखाना शुरू कर दिया है।
इस बार के आम चुनाव में देश के पूर्वांचल से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण तक मंहगाई, बेरोजगारी, सेना में भर्ती की नई योजना, किसानों, मजदूरों, जाटों, राजपूतों,अल्प संख्यकों, मिडिल और अपर मिडिल क्लास के लोगों ने मोदी सरकार को आज का दिन देखने को मजबूर किया है। सत्ता के साथ अपने अंदाज बदलने वाली नौकरशाही भी पलटा खाने में कम माहिर नही है। किसानों और जाटों में इतना रोष भरा है कि पूर्वांचल से पश्चिम तक और भाजपा की मजबूत हिंदी भाषी पट्टी ने ही इस बार उसे दक्षिण प्रदेशों की तुलना में अधिक ढेस पहुचाई है। चंडीगढ़ एयरपोर्ट पर हिमाचल प्रदेश से चुनी गई सिने तारिका कंगना रानौत के साथ हुई दुर्भाग्य पूर्ण घटना को भी इसी रोष से जोड़ कर देखा जा रहा है। ऐसे में मोदी-03 की सरकार की राह आसान नहीं है। साथ ही हरियाणा और अन्य प्रदेशों की विधान सभाओं के आसन्न चुनाव और कई उप चुनाव भी कठिन अग्नि परीक्षा जैसे ही है।
लगता है मोदी इस बार भाजपा शासित उन प्रदेशों को अपने मंत्रिपरिषद में कम प्रतिनिधित्व देंगे,जहां भाजपा की करारी हार हुई है। उनके स्थान पर अच्छा प्रदर्शन करने वाले राज्यों और भावी चुनाव वाले प्रदेशों और साथी दलों को मंत्रीपरिषद में अधिक प्रतिनिधित्व देखने मिल सकता है।
देखना है 09 जून को गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री के रूप में लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री की शपथ लेने वाले नरेन्द्र मोदी अपने मंत्रिपरिषद का गठन अपनी मर्जी मुताबिक करना मुमकिन कर पाते है अथवा नहीं?