Flour with Rust and Pest: कहानी एक छात्रावास की!
राजीव शर्मा
शासकीय छात्रावासों में कुप्रबंधन और भ्रष्टाचार रोकना एक सार्वकालिक चुनौती है .प्रशिक्षण काल से ही मुझे इसका अहसास हो गया था क्योंकि एक छात्र नेता के रूप में मैंने भिण्ड में अपने एम जे एस कॉलेज के अनुसूचित जाति छात्रावास की दुर्दशा भी देखी हुई थी .
दमोह ज़िले की तेंदूखेड़ा तहसील के एक बालक छात्रावास का आकस्मिक निरीक्षण करते हुए मैंने देखा कि आटे में इल्लियाँ हैं ,दाल चावल में भी कीड़े रेंग रहे हैं .मासूम बच्चों की कोई सुनवाई नहीं थी। उनके गद्दे फटे हुए ,पलंग टूटे हुए ,चादरें इतनी गंदी कि उनका मूल रंग खोजना मुश्किल .
बच्चे डरे हुए क्योंकि छात्रावास अधीक्षक स्थानीय जन प्रतिनिधियों से लेकर विभागीय अधिकारियों तक यथा योग्य तालमेल निपुणता से बनाये हुए था। स्मरण शक्ति सही है तो गाँव का नाम था धनवार.
छात्रावास अधीक्षक को बुलाया तो जो व्यक्ति प्रगट हुआ वह तो श्री लाल शुक्ल जी के राग दरबारी का जीवंत पात्र लगा .राग दरबारी के वैद्य जी और रुप्पन भैया की मक्कारी का मिश्रण .मुँह में पान भरे उस बंदे को ताज्जुब था कि उसकी सुदृढ़ सुरक्षा पंक्ति भेदकर यह कौन नौ सिखिया डिप्टी कलेक्टर दाल चावल आटा की टंकियाँ खोल खोल कर देख रहा है .लापरवाही और काईंयापन उसके हावभाव का आभूषण था .उसने सौ बहाने बनाये जिन्होंने आग में घी का काम किया .उसको तेज लताड़ पड़ी .मैंने क़ायदे की जाँच रिपोर्ट पंचनामा बयान आदि लेकर उनके तत्काल निलंबन को ज़िला मुख्यालय आकर सुनिश्चित किया .अपने पूरे सेवा काल में आटे में रेंगती वे इल्लियाँ सदा याद रखीं और हर भूमिका में छात्रावासों की बेहतरी के प्रयास किये.
कई वर्ष बाद मैं समझ पाया कि मासूम बच्चों के भोजन में इल्लियाँ परोसने वाले कहाँ कहाँ बैठे हुए हैं ?