Donate Life to Three : अपने जीवन को यथार्थ ने सार्थक किया, मृत्यु के बाद 3 को जीवन दिया!

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Donate Life to Three : अपने जीवन को यथार्थ ने सार्थक किया, मृत्यु के बाद 3 को जीवन दिया!

 

Ratlam : जीवन के बाद मृत्यु यथार्थ सत्य है। लेकिन, मृत्यु के बाद भी जो किसी को जीवन दे, तो उसका जीवन वास्तव में सार्थक होता है। इसी सत्य को रतलाम के एक बेटे ने सही साबित किया। मौत के बाद उसके हृदय और दोनों आंखों को दान कर दूसरे का जीवन बचाया गया।

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शहर की अलकापुरी निवासी मांगीलाल पटवारी के पौत्र, प्रकाश परिहार के पुत्र, गगन वर्मा, राघव वर्मा, माधव परिहार के छोटे भाई एवं राधे परिहार के बड़े भाई यथार्थ परिहार (दाऊ) का दुखद निधन हो जाने पर परिजनों ने उसके हृदय और दोनों आंखें दान करने की सहमति दी। यथार्थ जाते-जाते तीन जिंदगियों के जीवन में उजियारा कर गए।

 

यथार्थ की शादी को अभी 14 जून को 2 महीने ही हुए थे। पत्नी के हाथों की मेहंदी भी नहीं छुटी थी कि पति उसका साथ छोड़ गए। यथार्थ डायलिसिस टेक्नीशियन था और इसी माध्यम से मानव सेवा के पथ पर अग्रसर था। ड्यूटी खत्म होने के बाद भी यदि उसको कॉल आता, तब भी वह सेवा के लिए तत्पर रहता था। सेवा के लिए तुरंत हॉस्पिटल पहुंचता।

 

छत से गिरने और सिर में गंभीर चोट लगने की वजह से उसे वड़ोदरा रेफर किया गया था। वड़ोदरा के पारुल सेवा आश्रम मेडिकल महाविद्यालय के अस्पताल में आईसीयू में वेंटिलेटर पर जीवन और मृत्यु के बीच करीब 15 दिनों तक संघर्ष करते हुए 16 जून को वे हमेशा के लिए सबको छोड़कर चले गए। निधन के बाद यथार्थ के पिताजी प्रकाश परिहार ने अपने बेटे की मौत जैसा वज्रपात होने के बाद भी उन्होंने अंगदान करने का साहसिक निर्णय लिया।

 

डॉक्टरों की टीम ने हृदय व दोनों नेत्र दान किए। आईसीयू में 15 दिन तक वेंटिलेटर पर रहने के कारण यथार्थ की दोनों किडनियां प्रत्यारोपण के योग्य नहीं होने के कारण उनका प्रत्यारोपण संभव नहीं था। पारुल अस्पताल के प्रशासन ने पुलिस प्रशासन के माध्यम से ग्रीन कॉरिडोर बनाकर हार्ट को प्रत्यारोपण के लिए तुरंत अहमदाबाद भेजा गया।

 

परिहार परिवार के घर का चिराग जीते जी डायलिसिस के माध्यम से कई जान बचाता रहा। मरने के बाद भी तीन घरों के चिराग अपने अंगदान के माध्यम से बचा गया। यथार्थ का कहना था कि दूसरों के लिए जीना भी जीना है अपने लिए तो हर कोई जीता है।