भाव सकारात्मक तो दुनिया नतमस्तक, ‘विद्या’ का ‘प्रमाण’ सबके सामने है …

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भाव सकारात्मक तो दुनिया नतमस्तक, ‘विद्या’ का ‘प्रमाण’ सबके सामने है …

 

आज यानि 21 जून 2024 को हर साल की तरह पूरी दुनिया अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर योग कर आनंदित होगी, तो भोपाल के टीटी नगर स्टेडियम में नागरिक भावना योग के गुर सीखेंगे। और उन्हें सान्निध्य मिलेगा भावना योग के प्रवर्तक जैन संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर महाराज के शिष्य मुनि प्रमाण सागर महाराज का। वह ससंघ लोगों को भावना योग करवाएंगे। भावना योग तनाव से उबरने और सकारात्मक भावना से जुड़ने का एक प्रभावी जरिया है। और अगर किसी भी व्यक्ति के भाव सकारात्मक हो गए तो इसमें कहीं कोई संशय नहीं है कि पूरी दुनिया उसके सामने नतमस्तक हो जाएगी। दुनिया में यदि सबसे बड़ा योग है तो अपना नजरिया सकारात्मक करने का है। चाहे भावना योग हो या शारीरिक योग, दोनों का उद्देश्य एक ही है, अंतत: खुद को पूरी तरह से सकारात्मक करना। आज यानि 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाया जाएगा। जगह-जगह योग संबंधी आयोजन होंगे। लोगों को योग के जरिए निरोगी रहने के तौर-तरीके बताए जाएंगे। तो इसी सिलसिले में राजधानीवासी भोपाल के टीटी नगर स्टेडियम में योग कार्यक्रम का अनूठा आयोजन होने जा रहा है। इसका आयोजन श्री दिगंबर जैन पंचायत कमेटी ट्रस्ट द्वारा किया जा रहा है। भावना योग शिविर सुबह छह बजे से शुरू होगा।

भावना योग के प्रवर्तक मुनि प्रमाण सागर महाराज की मानें तो भावना योग तन को स्वस्थ, मन को मस्त व चेतना को प्रशस्त बनाने का अभिनव प्रयोग है। इसमें भावनाओं के परिवर्तन से तन-मन और चेतन में परिवर्तन की बात की गई है। आज व्यक्ति मानसिक तनाव और चिंताओं से ग्रस्त है। तनाव के कारण अनेक रोग जैसे डायबिटीज, हृदय रोग, रक्तचाप आदि को आमंत्रित कर व्यक्ति केवल मन से ही नहीं तन से भी खुद को अस्वस्थ बना लेते हैं। इस तनाव से उबरने, सकारात्मक भावना से जुड़ने के लिए भावना योग एक महा-औषधि है। भावना योग मन को सहज शांति देता है। जीवन में योग हमारे शरीर को स्वस्थ, मन को शांत और आनन्दित करता है। प्रकृति से सामंजस्य बनाने एवं हमारे आसपास परिवार एवं सम्मान के द्वारा किए गए कार्यों के लिए धन्यवाद देने का एक सरल, सहज साधन है साथ ही सकारात्मक सोच का संचार करने का माध्यम है। योग स्वस्थ जीवन का आधार है, अंतरात्मा से संवाद का मार्ग है| हमारे जीवन में सत्, चित् और आनंद का विशेष महत्व है और ये सब हमें प्रकृति के सानिध्य में ले जाकर कृतज्ञता का भाव जगाते है, जो कि हमें, हमारे वातावरण, परिवार, समाज, देश और संसार को खुशहाल बनाने में निश्चित ही सहायता करता है, और जीवन में बेहतर करने की निरंतर प्रेरणा देता है।

तो ‘भावना योग’ प्रक्रिया हमें अपनी मौलिक शक्ति का भान कराकर परमात्म तत्त्व से जोड़ने का एक आध्यात्मिक सूत्र सौंपती है। भावना योग’ पूर्णतः जैन दर्शन के कर्म सिद्धान्त पर आधारित है। यह हमारी धारणा, बुद्धि का विकास करता है और हमारी संकल्प शक्ति को दृढ़ बनाता है।भावना योग अभ्यास में इस्तेमाल की जाने वाली एक जानबूझकर की जाने वाली ध्यान तकनीक है। भावना में, अभ्यासकर्ता किसी विशेष विशेषता (जैसे प्रेम, करुणा या शांति) को प्राप्त करने या दिव्य बनने (जैसे शुद्ध प्रकाश, ऊर्जा या चेतना) की कल्पना करता है।तन को स्वस्थ, मन को मस्त और आत्मा को पवित्र बनाने का अभिनव प्रयोग है “भावना योग”। “यद्भाव्यते तद् भवति यानि हम जैसी भावना भाते हैं वैसा होता है, की प्राचीन उक्ति पर आधारित इस योग को वर्तमान में ‘लॉ ऑफ अट्रेक्शन’ के रूप में जाना जाता है। आधुनिक मनोविज्ञान के अनुसार हम जैसा सोचते हैं वैसे संस्कार हमारे अवचेतन मन पर पड़ जाते हैं, वे ही प्रकट होकर हमारे भावी जीवन को नियंत्रित और निर्धारित करते हैं। कहा जाता है कि विचार साकार होते हैं। भावना योग का यही आधार है। इसके माध्यम से हम अपनी आत्मा में छिपी असीमित शक्तियों को प्रकट कर सकते हैं।

तो सोहं इत्यात्त संस्कारात् तस्मिन् भावनया पुनः। तत्रैव दृढ़ संस्कारात् लभते हि आत्मनि स्थितिम्।।

अर्थात् मैं शुद्ध आत्मा हूँ इसकी बार-बार भावना भाने से अपनी शुद्ध आत्मा को प्राप्त किया जा सकता है। आधुनिक मनोविज्ञान के व्याख्याता इसी आधार पर ‘लॉ ऑफ अट्रेक्शन’ के सिद्धांत को प्रचारित कर रहे हैं। आधुनिक प्रयोगों के आधार पर यह बात सुस्पष्ट हो चुकी है कि भावनाओं के कारण हमारी अन्त: स्रावी ग्रन्थियों पर व्यापक प्रभाव पड़ता है। इसके आधार पर अनेक गंभीर बीमारियों की चिकित्सा भी की जा रही है। यदि हम नियमित भावना योग करे तो इसका लाभ उठाया जा सकता है। इसे न्यूरो साइकोइम्युनोलॉजी के रूप में भी जाना जाता है। इसी सिद्धान्त पर विचार करते हुए प्रमाण सागर जी ने भावना योग को तैयार किया है। यह वही प्राचीन वैज्ञानिक साधना है जिसे हजारों वर्षों से अपनाकर जैन मुनि अपना कल्याण करते रहे हैं। प्रमाण सागर जी महाराज ने उसकी ही आधुनिक व्याख्या करके इसे जनोपयोगी बनाने का प्रयास किया है।

तो भावना योग प्रतिदिन 30-45 मिनट करना चाहिए। हर वर्ग का व्यक्ति जो अपने जीवन में बदलाव एवं सकारात्मकता का अनुभव लाना चाहता है, वह भावना योग का अभ्यास कर सकता है। सुबह का समय आत्म ध्यान एवं आत्म साधना के लिए सबसे उपयुक्त होता है, सुबह ना हो तो शाम को अपनी जीवन शैली के अनुकूल जब समय मिले भावना योग कर सकते हैं। सार यही है कि भाव सकारात्मक हैं तो आप शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रहेंगे, शांत रहेंगे और चैतन्य रहेंगे। और आपके भीतर यह गुण दिखेंगे तो पूरी दुनिया आपके सामने नतमस्तक हुए बिना नहीं रहेगी। प्रमाण के रूप में भावना योग के प्रवर्तक मुनि प्रमाण सागर जी सामने हैं…।