नर्मदा की अनुयायी देवी अहिल्या और रानी रूपमती हैं

तो अप्रतिम सौंदर्य का बोध कराते हैं महेश्वर और मांडू ...

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मध्यप्रदेश में प्राकृतिक सौंदर्य जगह-जगह बिखरा पड़ा है। यह मन को सुंदरता से भर देता है। यहां पहुंचकर तन कहता है थोड़ा और ठहरो, जाने की जल्दी क्या है। यहां पहुंचकर यह बोध होता है कि धन की सार्थकता यही है कि आत्मा को अप्रतिम सौंदर्य का अहसास कराने वाले प्रकृति के जीवंत उदाहरण ऐसे स्थानों से रूबरू हुआ जाए। हमने हाल ही में मांडू और महेश्वर की यात्रा कर यह अनुभूति की।
तो यह जाना कि मध्यप्रदेश को देश का ह्रदय प्रदेश केवल भौगोलिक स्थिति की वजह से नहीं कहा जाता है बल्कि इसलिए कहा जाता है क्योंकि प्राकृतिक सौंदर्य, ऐतिहासिक धरोहरों और सांस्कृतिक-सामाजिक बोध का संचरण का केंद्र यदि कोई प्रदेश है, तो वह मध्यप्रदेश ही है। तो इन स्थानों को करीब से जीने के बाद यहां की दो मां नर्मदा भक्त देवियां दिल में स्थायी तौर पर बस जाती हैं, वह हैं विश्व विख्यात शिवभक्त देवी अहिल्या और रानी रूपमती।
हाल ही में काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के लोकार्पण के समय देवी अहिल्या को भी याद किया गया था कि उन्होंने यहां पुनर्निर्माण कराकर ज्योतिर्लिंग को सहेजने का वृहद कार्य किया था। देवी अहिल्या के विराट दर्शन की अनुभूति यदि करना है तो हर व्यक्ति को महेश्वर जाना ही होगा।
यहां पहुंचने पर ही देवी अहिल्या से एकाकार हो पाना सहजता के साथ स्वत: संभव होता है। महेश्वर नगरी देवी अहिल्या की सहजता, सरलता और विराटता का आभास कराती है। उनके द्वारा निर्मित नर्मदा किनारे बने महेश्वर घाट को देखकर लगता है कि देवी अहिल्या की सोच में मां नर्मदा की तरह ही भव्यता समाहित थी।
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शिव मंदिरों को देखकर इस महान शासिका का धार्मिक चेहरा सामने आता है तो इतिहास में उल्लिखित उनके द्वारा चार धाम, सात पुरियों, बारह ज्योतिर्लिंग और हजारों धार्मिक स्थानों पर कुएं, बावड़ी, तालाब, धर्मशालाओं, घाट, मंदिरों का निर्माण कराने की बात उनकी महादानी, महाधार्मिक छवि को उजागर कर देती है। महेश्वर को अपनी राजधानी बनाना और नर्मदा किनारे बना उनका दहन स्थल इस बात की गवाही देता है कि अहिल्या के जीवन में शिव और नर्मदा का ही सबसे अहम स्थान था।
महेश्वर प्राकृतिक सौंदर्य की खान है, जहां घाट पर बैठकर मां नर्मदा के विराट स्वरूप का दर्शन बहुत ही मनभावन है। तो सहस्त्रधारा पहुंचकर मां नर्मदा की असीम शक्ति का अहसास होता है। यहां पत्थरों के बीच सहस्त्र धाराओं में प्रवाहित मां नर्मदा का मनोरम स्वरूप असीम शांति व संतुष्टि से सरावोर कर देता है। महेश्वर घाट के करीब मां राजराजेश्वरी मंदिर में सदियों से अखंड ज्योति बने ग्यारह दिये हमें रोशनी से भर देते हैं।
तो महेश्वर के घाट पर काशी विश्वनाथ मंदिर हमें ज्योतिर्लिंग के दर्शन का ही भाव जगाता है। देवी अहिल्या की दूरदर्शिता, उद्यमिता और प्रजावत्सलता का प्रतीक है महेश्वर को रोजगार का केंद्र बनाना। महेश्वर हैंडलूम कारखाना बनाकर हजारों लोगों को रोजगार देने की उन्होंने जो शुरुआत की, तो आज भी महेश्वरी शिल्प लाखों परिवारों के जीविकोपार्जन का जरिया बना है। तो यह थी मां नर्मदा की अनुयायी शिव भक्त देवी अहिल्या, जिन्हें जीना है तो महेश्वर जाना ही पड़ेगा।

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तो अब हम चलते हैं नर्मदा भक्ति की मूर्ति रानी रूपमती की नगरी मांडू। मांडू मुस्लिम शासकों का केंद्र बनकर स्थापत्य कला का गढ़ बना। पर यहां अगर याद किया जाता है तो रानी रूपमती को। पर्यटकों को मांडू में सबसे ज्यादा भाता है तो वह रानी रूपमती महल ही है। यहां खड़े होकर रानी रूपमती मीलों दूर बह रही मां नर्मदा का दर्शन करती थी। उसके बाद ही अन्न-जल ग्रहण करती थीं।
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मांडू में सर्वाधिक ऊंचाई पर स्थित रानी रूपमती महल से मालवा के अंतिम छोर पर जो प्राकृतिक सौंदर्य का नजारा दिखता है, वह पर्यटकों को यहां और कुछ देर ठहरने को बेबस करता है। रानी रूपमती महल के आगे मांडू में बने स्थापत्य के नमूने और विराट निर्माण कपूर सागर और मुंज सागर के बीच बने जहाज महल और हिंडोला महल भी मन में दूसरे क्रम पर ही दर्ज हो पाते हैं।
और रानी रूपमती की नर्मदा भक्ति का प्रतीक है रेवा कुंड, जो रानी रूपमती महल के नीचे स्थित है। कहा जाता है कि मां नर्मदा रूपमती की भक्ति से प्रसन्न होकर मांडू के रेवा कुंड में साक्षात प्रकट हुईं और यहां का जल कभी सूखता नहीं है। नर्मदा परिक्रमा यात्री यहां आकर ही अपनी नर्मदा परिक्रमा को पूर्ण मानते हैं। तो यह थी दूसरी नर्मदा भक्त रानी रूपमती। यहां पहुंचने के बाद प्रेम की जगह रानी का नर्मदा भक्त होना मन के हर कोने में अपना स्थान बना लेता है।
और फिर मांडू और रानी रूपमती पर्याय होकर यहां से विदा करते हैं। बाज बहादुर महल संगीत जगाता है तो दाई माई का महल ईकोप्वाइंट बनकर दिमाग में तैर जाता है। यहां का नीलकंठ मंदिर, चतुर्भुज मंदिर जहां पर्यटकों के मन को भक्ति से भर देते हैं तो जामी मस्जिद का शिल्प और बारह भव्य दरवाजे सहित कई अन्य निर्माण हर पर्यटक को मालवा के अंतिम छोर पर सुरक्षा और शिल्प की दृष्टि से निर्मित इमारतों को देखकर आश्चर्यचकित होने पर मजबूर कर देते हैं।
मध्यप्रदेश अजब गजब है और अद्भुत है। प्रकृति यहां सौंदर्य को ओढ़कर साकार हो उठती है। इमारतें सदियों में बदलकर सामने आकर खड़ी हो जाती हैं। धार्मिक स्थल यह बयां करते हैं कि यह अनंत की यात्रा है जो सनातन काल से सृष्टि के अंत तक साथ देने में सक्षम है। तो जब जितना अवसर मिले अनुभव लीजिए पर्यटक स्थलों से साकार होने का। मांडू-महेश्वर की तरह ही पूरे प्रदेश में बिखरा पड़ा है प्राकृतिक सौंदर्य जहां विराट व्यक्तित्व जीवंत हो उठते है आपकी स्मृतियों में जीवंत रहने को। मुझे हाल ही में इन दो स्थानों पर भ्रमण करने का अवसर मिला। तो आप भी जरूर जाइए यहां जब भी अवसर मिले। बहुत कुछ मिलेगा यहां पहुंचकर।