अकलमंदी बनाम बेवक़ूफ़ी ! किसमें है फायदा….

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अकलमंदी बनाम बेवक़ूफ़ी ! किसमें है फायदा….

 

सबसे बड़ा रोना अकल का है।सौ में से नब्बे यही सुनते सुनते बड़े होते हैं कि बेवकूफ हो,अकल नहीं है ? अब दिक़्क़त यही है कि यदि नहीं है तो कहाँ से लायें ? अकल कोई धनिया तो है नहीं कि दौड़े और नुक्कड़ पर लगी दुकान से ख़रीद लाये।अकल का कोटा ऊपर वाला रिलीज़ करता है।किसी को देता है तो छप्पर फाड़ देता है ,किसी को थोड़ी बहुत कंजूसी से दे देता है और किसी को नहीं देता तो छदाम भर भी नहीं देता।इससे ये नतीजा तो फौरन निकाला जा सकता है कि भगवान जो भी है वो कम्युनिस्ट तो हरगिज़ नहीं है।

 

पर जैसा ज़माना है आजकल ,उसके हिसाब से अकलमंद होना ख़तरनाक हो चुका।अकल होगी तो आप सोचेंगे विचारेंगे। लोगों से उलझेंगे ।अकेले पड़ेंगे और अपनी हंसी उडवा लेंगे।जबकि बेवकूफ होकर पैदा होना फ़ायदे का सौदा है और अकल तलाशना तो हरगिज़ अक़्लमंदी का काम नहीं है।

 

अब अकल ज़्यादा हो तो अजीर्ण हो जाता है उसका।नगदऊ खनखनाये बिना नहीं मानते।अक़्लमंदी अपच जैसी होती है।पेट फूलता है इससे।बंदा चाहता है कि सबको पता चल जाये कि वो अकलमंद है।फौरन पता चले और लोग उसकी अकल का लोहा माने।ऐसे में लोगों से पंगा लेते फिरता है।पर इसके अपने ख़तरे है ! अक्लमंद हमेशा अल्पमत में होता है इसलिये बहुत बार हाथ पाँव से मज़बूत बेअकल लोगों से पिट जाता है।

 

बेअक्ली हमेशा से बहुमत में होती आयी है इसलिये वो राज करती है और अकलमंद उसकी चाकरी करते है।बेवकूफी में सबसे बढ़िया बात ये है कि वो खुद को अकलमंद समझता है और सारे अकलमंद उसे बेवकूफ लगते है।

 

अक़्लमंदी के उलट बेवक़ूफ़ी जताने में मेहनत भी नहीं करना पड़ती।अकलमंदी सरकारी नल की तरह होती है जबकि बेबकूफी पहाड़ी झरने की तरह बहती है।वो खुद अपना परिचय है ।और सामने वाले का मन हो या ना हो उसे नहलाये बिना नहीं मानती।

 

अकलमंद को अपनी बुद्धि मे हमेशा धार लगाते रहना पड़ता है।पढ़ना लिखना पड़ता है।अपने जैसे लोगों की संगत करना पड़ती है जो कि मुश्किल से मिलते हैं।बेवकूफी में ऐसी फालतू की क़वायद की कोई झंझट ही नहीं होती।उसे अपने जैसे हज़ार मिल जाते हैं।अकलमंद बहस करता है ,हमेशा असहमत ,बेचैन और कुडकुडा बना रहता है।अपनी अपनी चलाना और अपनी ही मनवाना चाहता है।और ऐसी हरकतों से अपने गिने चुने दोस्तों से भी हाथ धो बैठता है।अकेला हो जाता है जबकि बेवकूफ एक दूसरे से बहुत जल्दी सहमत हो जाते है।आशावादी होते हैं वो।हमेशा ख़ुश रहते है।एक दूसरे के गले में हाथ डालते है।ज़बर्दस्त एका होता है उनमें और जब भी कोई अकलमंद उनसे टकरा जाये तो सारे मिलकर उसे कूट देते हैं।

 

अकल से हासिल भी क्या है ? ज़माने भर की बेगारी।किसी अनपढ़ सेठ की मुनीमी ,किसी डूबते बैंक की क्लर्की या किसी प्राईवेट स्कूल की मास्टरी।अकल वाले ज़िंदगी भर यही सोच सोच कर कलपते रहते हैं कि उन्हें वो पोज़ीशन हासिल नहीं हुई जिसके वो हक़दार थे।

 

अकल के साथ सबसे बड़ा रोना यही है कि यदि वो आपके हिस्से में आ गई है तो आप उससे पीछा नहीं छुड़ा सकते।वो आपसे नदी में बहते कंबल की तरह चिपट जाती है और मौक़े बेमौके पर आपको बेइज्जत करवाये बिना मानती नही।

ऐसे में यदि आपको कोई अकलमंद या बुद्धिजीवी कहे तो ज़्यादा फूलने की ज़रूरत है नहीं।हो सकता है वो आपका मज़ाक़ उड़ा रहा हो।आपको दया करने लायक़ समझ रहा हो।या आपको कूटने की फ़िराक़ में हो।