पद की गरिमा बढ़ाती विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर की कार्यशैली…

434

पद की गरिमा बढ़ाती विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर की कार्यशैली…

स्थगन नहीं तो ध्यानाकर्षण के माध्यम से ही दिनभर कथित नर्सिंग घोटाले पर चर्चा सही, विपक्ष की मांग पर विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर ने आखिरकार एक नई व्यवस्था देकर इतिहास बना दिया है। मध्यप्रदेश विधानसभा के इतिहास में इसका जिक्र हमेशा होता रहेगा। संसदीय कार्यमंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने भी विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर की इस व्यवस्था पर असंतुष्टि जताई। पर अपने स्वभाव के अनुरूप आसंदी से भी अध्यक्ष के रूप में नरेन्द्र सिंह तोमर मुस्कराकर सबकी बात पूरी गंभीरता और सहजता से सुनते रहे। और सदन में कथित नर्सिंग घोटाले पर विपक्ष द्वारा लगाई जा रही आरोपों की झड़ी का सिलसिला चलता रहा और प्रश्नों की बाढ़ आती रही। तो इसी बीच आसंदी पर आरोप लगाने की कोशिश करने वाले पहली बार के विधायक दिनेश जैन को सधे हुए शब्दों में तल्ख समझाइश देने से भी नहीं चूके। आसंदी पर बैठे अध्यक्ष के संरक्षण में जब कथित नर्सिंग घोटाले पर विपक्ष दिनभर ॉॉविश्वास को आहत करता रहा, तब भी अध्यक्ष सहज थे। नेता प्रतिपक्ष सिंघार जब उमंग से भरे तत्कालीन चिकित्सा शिक्षा मंत्री और वर्तमान खेल एवं युवा कल्याण और सहकारिता मंत्री विश्वास सारंग पर आरोप लगाने में नामों का उल्लेख कर नियमों की मर्यादा से पार जा रहे थे और संसदीय कार्य मंत्री ने दूसरी बार तीखा विरोध किया, तब आसंदी ने नामों को विलोपित करने की व्यवस्था देकर सत्ता पक्ष को भी संतुष्ट कर दिया। तो ठीक उसके बाद नेता प्रतिपक्ष को बोलने में भी उदारता के साथ पूरा संरक्षण दिया। हालांकि विपक्ष के हमलों से आहत विश्वास सारंग को बोलने की अनुमति देकर भी विधानसभा अध्यक्ष ने पहले ही राहत देकर संरक्षण दे दिया था। और विश्वास सारंग ने भी आरोपों का बेहिचक और खुले मन से जवाब देकर आरोप लगाने वाले एक-एक सदस्य से हिसाब-किताब चुकता कर चैन की सांस ले ली थी। हालांकि आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला चलता रहा और सदन की कार्यवाही आगे बढ़ती रही। आसंदी गंभीर भी दिखी, तटस्थ भी दिखी और पक्ष-विपक्ष को समान रूप से संरक्षण देने वाली भी नजर आती रही। और तब चर्चा के अंत में वर्तमान स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा मंत्री और सरकार में उपमुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ला ने चर्चा का समापन विपक्ष के आरोपों को पूरी तरह से निराधार और विश्वास सारंग को सौ फीसदी खरा बताकर कर दिया। इसके बाद विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर ने सदन की कार्यवाही आगे बढ़ा दी। लंबे समय बाद सदन में विपक्ष बिना बॉयकाट के अंत तक उपस्थित रहा और संतुष्ट भी नजर आया। तो चर्चा के विराम होने से पहले तक सत्ता पक्ष और संसदीय कार्यमंत्री के मन में भी विधानसभा अध्यक्ष की व्यवस्था को लेकर संशय रहा। पर जब मंत्री राजेंद्र शुक्ला ने चर्चा का निर्णायक समाधान किया, तब मंत्री विश्वास सारंग भी पहले से ज्यादा आत्मविश्वास से भरे नजर आए और विपक्ष भी चर्चा करने की उनकी मांग पूरी होने से आसंदी के प्रति आश्वस्त दिखा।

 

इस चर्चा के कई पहलू हैं। इससे साफ हो गया है कि उप नेता प्रतिपक्ष हेमंत कटारे को थोड़ी गंभीरता की जरूरत है, तब वह अपने पिता पूर्व नेता प्रतिपक्ष रहे स्वर्गीय सत्यदेव कटारे की तरह अपनी धाक जमाने में सफल हो पाएंगे। नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार की शैली अब मंझी हुई नजर आने लगी है। उन्होंने साबित किया है कि विषय को उठाकर उसे पूर्णता तक ले जाने की क्षमता अब उनमें भी है। संसदीय कार्य मंत्री कैलाश विजयवर्गीय सत्ता पक्ष के हित में आसंदी के ऊपर दबाव बनाने में सफल न भी हों, तब भी तथ्यों सहित हितों की पूर्ति में सफल हुए बिना नहीं रहेंगे। उप मुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ला ने साबित किया है कि धीमा बोलकर, लो प्रोफाइल नेता की छवि में भी वह सत्ता पक्ष के मंत्री के सभी हितों की पूर्ति करने और विपक्ष के आरोपों को तर्क और तथ्य सहित सिरे से खारिज करने का दम उनमें है। तो 2 जुलाई 2024 को मध्यप्रदेश विधानसभा में कथित नर्सिंग घोटाले में विपक्ष की मांग पर विधानसभा अध्यक्ष की व्यवस्था के तहत ध्यानाकर्षण के जरिए विपक्ष के आरोपों का सामना कर रहे मुख्य किरदार विश्वास सारंग ने जता दिया है कि अभिमन्यु बनाकर उन्हें किसी सुनियोजित चक्रव्यूह में फंसाया नहीं जा सकता। उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की शैली में विपक्ष के आरोपों का चुटकी ले-लेकर जवाब दिया। और अंतत: कार्यवाही पूरी होने पर वह विश्वास से भरे नजर आए। आसंदी के प्रति भी और खुद के प्रति भी। यानि विश्वास कायम था, है और रहेगा।

तो मध्यप्रदेश विधानसभा के इतिहास में इस कथित नर्सिंग घोटाले पर चर्चा का जिक्र हमेशा होगा। स्थगन की मांग कर रहे विपक्ष की बात को खारिज कर एक गंभीर विषय पर दिनभर ध्यानाकर्षण के माध्यम से चर्चा कराने का यह विषय अब एक नजीर बन गया है। विधानसभा अध्यक्ष की तटस्थ भूमिका और सत्ता पक्ष और विपक्ष को समान संरक्षण देने की यह व्यवस्था हमेशा आसंदी पर बैठने वाले अध्यक्षों को पाठ पढ़ाती रहेगी। और यह सिखाती रहेगी कि विधानसभा अध्यक्ष की तटस्थ भूमिका के साथ कोई अनुभवी राजनेता किस तरह न्याय कर सकता है। और यह बताती रहेगी कि सदन में आसंदी पर बैठने के बाद हर व्यक्ति को पद की गरिमा के अनुकूल किस तरह न्यायसंगत रवैया अपनाना चाहिए। हालांकि इस दौर में जब आसंदी पर बार-बार सत्तापक्ष के इशारे पर कठपुतली की तरह काम करने के गंभीर आरोप लगते हों, तब आसंदी के साथ न्याय करने में नरेंद्र सिंह तोमर जैसे राजनेता ही सफल हो सकते हैं। निश्चित तौर पर नरेंद्र सिंह तोमर की कार्यशैली विधानसभा अध्यक्ष पद की गरिमा बढ़ा रही है…।