मोदी की रूस यात्रा                          

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मोदी की रूस यात्रा 

 

नरेंद्र मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद अपनी प्रथम विदेश यात्रा पर छठवीं बार रूस पहुँचे हैं। इसे मिलाकर कुल 17 बार वे राष्ट्रपति पुतिन से मिल चुके हैं। राजनय के कार्य के अतिरिक्त चुनाव में पूर्ण बहुमत से पीछे रह जाने के बाद मोदी विश्व के नेताओं तथा देश की जनता के समक्ष अपनी लोकप्रियता और महत्व प्रदर्शित करने का प्रयास भी कर रहे हैं।

मोदी पुतिन शिखर वार्ता ऐसे समय में हो रही है जब समस्त पश्चिमी राष्ट्र वाशिंगटन में नाटो (NATO) की बैठक में भाग ले रहे हैं। मोदी और पुतिन का ऐसे समय में गले मिलने और मोदी को रूस का सर्वोच्च नागरिक सम्मान मिलने पर पश्चिमी देशों को निश्चित रूप से बहुत ख़राब लगा है। अमेरिका यूक्रेन युद्ध शुरू होते ही रूस को आर्थिक रूप से अलग थलग करने के प्रयास में लगा है। ऐसे में मोदी का रूस में खुलेआम व्यापार बढ़ाने पर चर्चा करना पश्चिमी देशों के लिए कष्टकारी हो रहा है।यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की ने इसे विश्व के सबसे बड़े प्रजातंत्र और विश्व के सबसे बड़े अपराधी का मिलन बताया है। मोदी ने भारत के अपने हितों का ध्यान रखते हुए पश्चिमी देशों की नाराज़गी को नज़रअंदाज़ कर रूस से 2030 तक वर्तमान 65 बिलियन डॉलर से व्यापार बढ़ा कर 100 बिलियन डॉलर करने पर सहमति जतायी है। भारत के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण पेट्रोलियम और फर्टिलाइज़र की सप्लाई निरंतर बनी रहेगी।पूर्व में रूस द्वारा दिए गए सामरिक हथियारों के पार्ट्स के भारत में उत्पादन पर सहमति हो गई है। भारत की सुरक्षा के लिए अत्यंत आवश्यक उच्च सामरिक टेक्नोलॉजी को भारत को मुहैया कराने में अमेरिका आनाकानी कर रहा है, इसलिए ऐसे सामरिक हथियारों को देने में इच्छुक रूस पर भारत की निर्भरता बढ़ी है।

अपनी यात्रा के दूसरे दिन मोदी ने पश्चिमी देशों की नाराज़गी को कुछ हद तक दूर करने के लिए पुतिन के सामने ही सार्वजनिक रूप से यूक्रेन युद्ध में अस्पताल में मारे गए निर्दोष बच्चों की मृत्यु की खुली भर्त्सना की। मोदी ने स्पष्ट कहा कि युद्ध से समस्या हल नहीं हो सकती है और इसके लिए वार्ता ही एक मात्र विकल्प है। पुतिन के मुँह पर ऐसा बोलने का साहस मोदी ही कर सकते हैं क्योंकि भारत बहुध्रुवीय विश्व में ऐसा करने में अब सक्षम है। फिर भी यह तथ्य है कि रूस के साथ रिश्तों के बावजूद भारत के पश्चिमी देशों से भी रिश्ते बहुत प्रगाढ़ है। अपने से बहुत अधिक शक्तिशाली चीन का सामना करने के लिए भारत की अमेरिका पर निर्भरता स्वाभाविक है। अमेरिका भी यह जानता है कि इक्कीसवीं शताब्दी में एशिया में चीन के विरुद्ध पश्चिम के लिए केवल भारत ही खड़ा हो सकता है। भारत अमेरिका कि यह मजबूरी समझता है। मोदी की रूस यात्रा से भारत और अमेरिका के बीच कोई विशेष दरार आना संभव नहीं है और इसीलिए मोदी ने अपने सीमित उद्देश्यों के लिए रूस की खुलेआम ऐसे समय में यात्रा की है।

हाल के वर्षों में रूस और चीन के संबंध बहुत मज़बूत हो गए हैं। चीन आज रूस का सबसे विश्वस्त मित्र है।रूस को चीन से लाभप्रद व्यापार और उसकी आर्थिक शक्ति की सहायता का पूरा भरोसा है। दूसरी तरफ़ चीन रूस के पेट्रोलियम और गैस सहित उसकी प्राकृतिक संपदा पर अपनी आँख लगाए हुए है। भारत और चीन के बीच युद्ध होने की स्थिति में रूस निश्चित रूप से तटस्थ रहेगा। परन्तु रूस चीन के इतना निकट होते हुए भी केवल चीन पर ही निर्भर नहीं रहना चाहता है। वह चीन को संतुलित करने के लिए भारत से भी मज़बूत संबंध बनाए रखना चाहता है। मोदी की रूस यात्रा में इसी लिए पुतिन वास्तविक गर्मजोशी के साथ मोदी से मिले हैं। विश्व की भू-राजनैतिक स्थिति बहुत तरल स्थिति में है।भारत ट्रंप के इस बार पुनः चुनाव जीतने से सशंकित है। ट्रंप ने घोषणा की है कि वह यूक्रेन वार में कोई सहायता नहीं करेगा। उसने इज़राइल को भी अपनी जीत के बाद सामरिक सहायता न देने की घोषणा की है। ऐसी स्थिति में ट्रंप चीन के विरुद्ध भारत की भी सामरिक सहायता से अपने हाथ खींच सकते हैं।चीन के विरुद्ध युद्ध की स्थिति अमेरिका और रूस दोनों ही तटस्थ रह सकते हैं। ऐसी स्थिति में भारत को अपने बूते पर ही चीन और पाकिस्तान दोनों से एक साथ समर के लिए तैयार रहना होगा। इसी तैयारी की पृष्ठभूमि में आवश्यक वस्तुओं की सप्लाई सुनिश्चित करने के लिए मोदी की इस रूस यात्रा को देखा जाना चाहिए।