Triumph Card in the Morning: जब त्वरित कार्रवाई से शासन प्रशासन शर्मसार होने से बचा!

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Triumph Card in the Morning: जब त्वरित कार्रवाई से शासन प्रशासन शर्मसार होने से बचा!

आलस्य और विश्राम बादशाहत डुबा देते हैं यदि चापलूस चूक भी जायें -यह प्राचीन सूक्ति आज भी बड़े काम की है .इतिहास का एक विनम्र विद्यार्थी होने से मैंने यह मंत्र विद्यार्थी जीवन से ही सीख लिया था कि सुबह सूर्योदय से पहले उठो .कलेक्टर रहते हुए भी सुबह जल्दी उठ कर टहलने का क्रम टूटा नहीं .

शाजापुर में उस सुहानी सुबह अख़बार के मुखपृष्ठ पर अपने ज़िले का नाम और समाचार पढ़कर मेरी चाय का स्वाद ख़राब हो गया .प्रदेश के नंबर एक अख़बार में हमारे ज़िले के एक किसान की व्यथा छपी थी जिसके पास बैल नहीं होने से किशोर बेटों को हल में जोत देने की हृदय विदारक तस्वीर थी .शासन प्रशासन दोनों की आज लानत मलानत होना तय था .मैंने घड़ी देखी सुबह का 5:30 हुआ था .मैंने एसडीएम,तहसीलदार ,जनपद सीईओ ,ज़िला सीईओ ,उपसंचालक कृषि ,लीड बैंक मैनेजर सबको फ़ोन कर तत्काल उस गाँव उस किसान के घर पंहुचने के निर्देश दिये और आठ बजे तक वापस आकर रिपोर्ट देने कहा .छह बजे स्थानीय ब्यूरो को फ़ोन किया तो उन्होंने बताया -सीधा भोपाल से ही छपा है ,उनका डिस्पैच नहीं है .

सुबह 6:30 बजे मेरे दूत किसान के द्वार पर दस्तक दे चुके थे .उस परिवार की पूरी तकलीफ़ सुनकर राहत और ऋण देने की प्रक्रिया प्रारंभ हो चुकी थी .स्थानीय और राजधानी का मीडिया जब उस परिवार तक पंहुचा तो पटकथा बदल चुकी थी .शासन प्रशासन की संवेदन हीनता और लाल फ़ीताशाही में पिसते आम आदमी की कहानी तत्काल राहत और चुस्त दुरुस्त शासन प्रशासन के लाभार्थी की सुखांत कथा बन गई .अगले दिन उसी सबसे बड़े अख़बार में उसी जगह प्रसन्न किसान परिवार की सुंदर तस्वीरें छपीं थीं.

भोपाल जब नींद से उठा और मुझसे पूछा तो मैंने ख़ुशी ख़ुशी सुबह नौ बजे ही प्रदान की गई सहायता का विवरण भेज दिया था .आकाश से फूल तो नहीं बरसे पर मैं संतुष्ट था मेरी त्वरित कार्यवाही ने शासन प्रशासन को शर्मसार होने से बचा लिया था .