राज-काज:यह भार्गव-विश्नोई की नहीं, हर कार्यकर्ता की पीड़ा….
– भाजपा के गोपाल भार्गव और अजय विश्नोई वरिष्ठ विधायक हैं। भार्गव लगातार 9 बार से विधानसभा का चुनाव जीत रहे हैं और अब तक अजेय हैं। इस चुनाव से पहले तक भार्गव लगातार भाजपा सरकार में ताकतवर मंत्री रहे हैं। अजय विश्नोई पहले मंत्री थे लेकिन बाद में उन्हें मंत्री नहीं बनाया गया। विश्नोई की वरिष्ठता और योग्यता में कोई कमी नहीं है। ऐसे में यदि कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए विधायकों को मंत्री बनाया जाता है तो पीड़ा स्वाभाविक है। इसीलिए जब कांग्रेस से आए राम निवास रावत को मंत्री बनाया गया तो इनकी पीड़ा बाहर आ गई। भार्गव ने कहा कि वे 15 हजार दिन से लगातार विधायक हैं। प्रदेश में भाजपा के पास अच्छा बहुमत है फिर भी राम निवास को किस मजबूरी में मंत्री बनाया गया, समझ से परे है। उन्होंने यह भी कहा कि दिग्विजय सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के दौरान उन्हें कई तरह के प्रलोभन मिले लेकिन उन्होंने कभी पार्टी नहीं छोड़ी। साफ संकेत था कि मंत्री बनने के हकदार हम हैं। अजय विश्नोई की प्रतिक्रिया अलग ढंग से थी। उन्होंने कहा कि त्याग अपनों से कराया जाता है, दूसरा तो शर्तो के साथ आया है। रावत का मंत्री बनना समझौते की दोस्ती है। इसके साथ दोनों नेताओं का कहना था कि इस मसले पर भाजपा के नेता और कार्यकर्ता क्या सोचते हैं, इसका सर्वे करा कर देख लीजिए। सब पीड़ित नजर आएंगे।
*0 रघुजी की मांग पूरी कर पाएंगे मुख्यमंत्री डॉ यादव….!*
– रघुजी के नाम से चर्चित रघुनंदन शर्मा भाजपा के ऐसे वरिष्ठ नेता और आरएसएस के स्वयंसेवक हैं जो खरी-खरी कहने और सुनाने के लिए जाने जाते हैं। अपने लंबे राजनीतिक जीवन में वे कई बार इसका नुकसान उठा चुके हैं। जब शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री थे तो उन्होंनेे उन्हें घोषणावीर कह दिया था। नतीजे में उन्हें भाजपा का प्रदेश उपाध्यक्ष पद गंवाना पड़ा था और राज्यसभा का अधूरा कार्यकाल पूरा करने के बाद दूसरा अवसर नहीं मिला था। एक बार फिर उन्होंने मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव की मौजूदगी में सरकार, प्रशासन और राजनीति में व्याप्त गंदगी का मुद्दा उठाया है। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री डॉ यादव पर्यावरण के शुद्धिकरण का अभियान चला रहे हैं लेकिन उन्हें सरकार में हर स्तर पर व्याप्त गंदगी के शुद्धिकरण का अभियान भी चलाना चाहिए। रघुजी का कहना है कि पार्षद, विधायक और मंत्री बिना लिए कोई काम नहीं करते। कई अफसर निरंकुश हैं और बिना पैसा लिए कुछ नहीं करना चाहते। रघुजी ने कहा कि लोग आकर बताते हैं कि कोई भी काम बिना रिश्वत दिए नहीं होता। यह सुनने के बाद रात की नींद उड़ जाती है। रघुजी ने तो खरी-खरी सुना दी पर सबसे बड़ा सवाल है कि क्या मुख्यमंत्री डॉ यादव इस गंदगी के खिलाफ अभियान चलाने की हिम्मत दिखाएंगे। रघुजी ने कहा है कि यह करने की क्षमता डॉ यादव में ही है।
*0 प्रदेश की यह भाजपा सरकार मिली-जुली जैसी….*
– सुनने में यह बात अटपटी लगेगी लेकिन सच यह है कि प्रदेश की भाजपा सरकार मिली-जुली सरकार है। यह ऐसी सरकार है जिसमें कांग्रेस के किसी नेता और कार्यकर्ता का कोई काम नहीं रुकता। वजह हैं कांग्रेस से आए वे विधायक जो इस सरकार में मंत्री हैं। यह स्थिति शिवराज सिंह के नेतृत्व वाली पिछली सरकार में भी थी। तब ज्योतिरादित्य सिंधिया के नेतृत्व में कांग्रेस के 22 विधायक भाजपा में आए थे और इनमें से लगभग एक दर्जन मंत्री बन गए थे। डॉ मोहन यादव के नेतृत्व वाली सरकार में भी लगभग ऐसी ही हालात हैं। तुलसीराम सिलावट और गोविंद सिंह राजपूत सहित तीन मंत्री सिंधिया समर्थक हैं। इसके अलावा परिवहन एवं स्कूल शिक्षा मंत्री उदय प्रताप सिंह भी कांग्रेस से ही भाजपा में आए थे। अब कांग्रेस के 6 बार के विधायक राम निवास रावत मंत्री बन गए। ज्यादा समय हो गया लेकिन उप मुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ला को भी कांग्रेस की पृष्ठभूमि का माना जाता है। कांग्रेस से आए और अमरवाड़ा से जीते कमलेश शाह के भी मंत्री बनने की संभावना है। जब कांग्रेस से आए इतने नेता मंत्री हैं तो किसी कांग्रेसी का काम कैसे रुक सकता है? आखिर, ये सभी कांग्रेस में रहे हैं, इसलिए इनके संबंध कांग्रेस में ही ज्यादा हैं। ऐसे में यदि प्रदेश की भाजपा सरकार को मिली-जुली कहा जाए तो इसमें गलत क्या है?
*0 राम निवास को नहीं था भाजपा नेतृत्व पर भरोसा….!*
– कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक राम निवास रावत भाजपा में आने के बाद मंत्री बन गए, इसके साथ उन्होंने यह संकेत भी दे दिए कि उन्हें भाजपा नेतृत्व पर भरोसा नहीं था। उदाहरण है उनका विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा। भाजपा नेतृत्व की ओर से उन्हें राज्य मंत्रिमंडल में शामिल किए जाने का वादा कर दिया गया था। इसी शर्त पर उन्होंने कांग्रेस छोड़ कर भाजपा ज्वाइन भी की थी। पर उन्होंने विधानसभा की सदस्यता से तभी इस्तीफा दिया जब उन्हें मंत्री पद की शपथ दिला दी गई। इससे पहले उनसे जब भी सवाल किया गया, उन्होंने कहा कि जब समय आएगा वे इस्तीफा दे देंगे। यह विडंबना ही कही जाएगी कि जब उन्होंने मंत्री पद की शपथ ली, तब तक वे रिकार्ड में कांग्रेस विधायक ही थे। इसे लेकर शपथ से पहले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और वरिष्ठ अधिवक्ता विवेक तन्खा ने सवाल उठाए, इसके बाद प्रदेश कांग्रेस ने। राम निवास ने जवाब दिया कि वे 5 जुलाई को ही विधानसभा सचिवालय को अपना इस्तीफा सौंप दे चुके थे, जबकि इसकी पुष्टि नहीं हुई। विधानसभा सचिवालय की ओर से बताया गया कि रावत का इस्तीफा सोमवार 8 जुलाई को मिला। इससे साफ हो गया कि रावत ने इस्तीफा मंत्री बनने के बाद ही दिया। इससे यह भी स्पष्ट हो गया कि उन्हें भाजपा नेतृत्व पर भरोसा नहीं था, इसीलिए उन्होंने इस्तीफे के लिए मंत्री बनने का इंतजार किया।
*0 साख बचाने का अंतिम अवसर भी गंवा बैठे कमलनाथ….*
– कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कमलनाथ 2018 से पहले प्रदेश अध्यक्ष बन कर केंद्र से प्रदेश की राजनीति में आए थे और पहले चुनाव के बाद ही मुख्यमंत्री बन गए थे। 2023 के विधानसभा चुनाव के दौरान भी उन्हें भावी मुख्यमंत्री के तौर पर प्रोजेक्ट किया जा रहा था। छिंदवाड़ा उनकी ताकत थी। ऐसे कमलनाथ की इतनी जल्दी ऐसी हालत होगी कि राजनीति में सब गंवा बैठेंगे, इसकी उम्मीद किसी को नहीं थी। पर ऐसा हो गया। विधानसभा चुनाव बाद कमलनाथ मुख्यमंत्री बनने का सपना संजोए बैठे थे, लेकिन पार्टी को बुरी पराजय का सामना करना पड़ा। इसके बाद वे लोकसभा चुनाव तक प्रदेश अध्यक्ष बने रहना चाहते थे लेकिन उसे छीन लिया गया। कांग्रेस आला कमान ने प्रदेश अध्यक्ष पद पर जीतू पटवारी की नियुक्ति भी उनकी राय लिए बगैर कर दी। छिंदवाड़ा लोकसभा सीट उनकी अभेद्य गढ़ थी। इस बार कमलनाथ का यह गढ़ भी ध्वस्त हो गया। लोकसभा चुनाव के दौरान दीपक सक्सेना और विधायक कमलेश शाह जैसे उनके विश्वस्त साथ छोड़ गए। अमरवाड़ा विधानसभा सीट में जीत कर उनके सामने अपनी साख बचाने का अंतिम अवसर था। वह भी हाथ से निकल गया। भाजपा ने हारते-हारते यह सीट जीत ली। इसके साथ कमलनाथ अपनी बची साख भी गवां बैठे। अमरवाड़ा में भी कांग्रेस नहीं, कमलनाथ हारे हैं।