महाराष्ट्र चुनाव: जीत के लिए बीजेपी नीत महायुति को नए मंत्र की तलाश!

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महाराष्ट्र चुनाव: जीत के लिए बीजेपी नीत महायुति को नए मंत्र की तलाश!

नवीन कुमार

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लोकसभा चुनाव में बेहद खराब प्रदर्शन के बाद बीजेपी नीत महायुति निराशा में ही गोते लगा रही है। पिछले दिनों हुए विधान परिषद के चुनाव में 11 में से 9 सीटों पर जीत मिलने से महायुति को थोड़ा अपना आत्मबल मजबूत करने का मौका तो मिला है। बावजूद इसके यह जीत उसके लिए काफी नहीं है। तीन महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में जीत के लिए उसे नए मंत्र की जरूरत है। क्योंकि, परिषद के चुनाव में विधायकों ने वोट डाले हैं न कि आम जनता ने। इसलिए इस चुनाव में जनता की भावनाओं और भागीदारी को नहीं आंका जा सकता है। इसके अलावा परिषद का चुनाव क्रॉस वोटिंग की वजह से भी चर्चा में है। कहा जाता है कि कांग्रेस के 7 विधायकों ने क्रॉस वोटिंग की जिससे महायुति को फायदा हुआ और महा विकास आघाडी को एक सीट का नुकसान हो गया। आघाडी के नेताओं का आरोप है कि क्रॉस वोटिंग के लिए धन बल का प्रयोग किया गया। इस तरह के आरोप से विधानसभा चुनाव में महायुति को जनता के गुस्से का सामना करना पड़ सकता है। लोकसभा चुनाव में भी राज्य की जनता ने शिवसेना और एनसीपी में तोड़फोड़ की बीजेपी की राजनीति को नकारा है। जनता मोदी की गारंटी को भी भूल गई।

महायुति के लिए विधानसभा चुनाव जीतना बहुत आसान नहीं है। इसलिए महायुति में शामिल बीजेपी, शिवसेना शिंदे गुट और एनसीपी अजित पवार गुट ने अपने-अपने मोर्चे संभाल लिए हैं। बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व राज्य में सक्रिय हो गया है और युद्ध स्तर पर काम कर रहा है। अमित शाह से लेकर भूपेंद्र यादव और अश्विनी वैष्णव तक जीत के एजेंडे को लेकर काम कर रहे हैं। चूंकि, जनता ने मोदी की गारंटी पर ज्यादा भरोसा नहीं किया है तो बीजेपी के सामने यह यक्ष प्रश्न है कि जनता में कैसे बीजेपी के पक्ष में विश्वास का माहौल पैदा किया जाए। बीजेपी की छवि पार्टियों में तोड़फोड़ करने वाली राजनीति की बन गई है। यह महाराष्ट्र की राजनीति की संस्कृति नहीं है। बीजेपी की इस गंदी राजनीति का फायदा आघाडी को मिला। राज्य की जनता ने आघाडी को अपना समर्थन दिया है जिससे आघाडी का हौसला बढ़ा हुआ है।

आघाडी को विश्वास है कि तीन महीने में महायुति का कोई जादू राज्य की जनता पर नहीं चल सकता। इसलिए विपक्ष को राज्य में सत्ता परिवर्तन की संभावना दिख रही है। जनता के समर्थन को देखते हुए शरद पवार ने विश्वास जताया है कि विधानसभा चुनाव में 288 सीटों में से 255 सीटों पर आघाडी को जीत मिल सकती है। शरद का यह आकलन सही भी हो सकता है। क्योंकि, लोकसभा चुनाव में शरद ने दावा किया था कि आघाड़ी को कम से कम 30 सीटों पर जीत मिलेगी और यह सच भी हुआ। लेकिन, परिषद के चुनाव ने आघाडी को भी सचेत कर दिया है कि अगर कांग्रेस, शिवसेना उद्धव ठाकरे गुट और एनसीपी शरद पवार गुट के बीच एकता नहीं रही तो बाजी पलट सकती है। परिषद के चुनाव में कांग्रेस के विधायकों ने एकता को कमजोर किया है।

महायुति में खासकर बीजेपी को अपनी रणनीति में काफी बदलाव करने की जरूरत है। बीजेपी से न सिर्फ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ नाराज है बल्कि समर्पित कार्यकर्ता उपेक्षित महसूस कर रहे हैं। लोकसभा चुनाव के दौरान बीजेपी ने तो यहां तक कह दिया था कि उसे संघ की जरूरत नहीं है। कहा जाता है कि इसके बाद संघ के कई स्वयंसेवक मतदान करने घर से बाहर भी नहीं आए थे। लेकिन अब देखा जा रहा है कि बीजेपी के नेता संघ के संपर्क में हैं और विधानसभा चुनाव को लेकर मंथन भी कर रहे हैं। संवाद के कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। यह भी सवाल उठ रहा है कि उपेक्षित कार्यकर्ता मन से काम करेंगे, इस पर संदेह बना हुआ है।

समर्पित कार्यकर्ताओं का मानना है कि पार्टी को जीवित रखने और उसे आगे बढ़ाने के लिए मेहनत वो कर रहे हैं। लेकिन, आयातित और दागी नेताओं को पार्टी में न सिर्फ ऊंचे ओहदे मिल रहे हैं बल्कि उन्हें मंत्री तक बनाया जा रहा है। शायद केंद्रीय नेतृत्व को कार्यकर्ताओं की भावना का एहसास हुआ है। इसलिए इस विधानसभा चुनाव में समर्पित कार्यकर्ताओं को तवज्जो देने पर विचार हो रहा है। बीजेपी ने पंकजा मुंडे को परिषद में जिताकर पार्टी कार्यकर्ताओं को संदेश देने की कोशिश की है। पंकजा का पांच साल के बाद पुनर्वसन हुआ है। विधानसभा के बाद लोकसभा में भी उन्हें हार मिली थी। कहा तो यही जा रहा है कि पंकजा पार्टी की अंदरूनी गुटबाजी की शिकार हुई थीं। लेकिन लोकसभा चुनाव से सबक लेने के बाद उन्हें परिषद में भेजकर बीजेपी ने पार्टी में समर्पित कार्यकर्ताओं के घाव पर मरहम लगाने का काम किया है।
बीजेपी पंकजा के जरिए ओबीसी वोट बटोरना चाहती है। इस समय राज्य में मराठा और ओबीसी आरक्षण को लेकर माहौल बिगड़ा हुआ है। बीजेपी का मानना है कि पंकजा की हार में मराठा आंदोलन वजह थी। मराठाओं की वजह से ही लोकसभा चुनाव में बीजेपी को भारी नुकसान हुआ था। बीजेपी मराठा आरक्षण पर सकारात्मक नहीं है। इसका फायदा आघाडी को मिला। लेकिन, विधानसभा चुनाव में बीजेपी ओबीसी वोट को बंटने नहीं देना चाहती है। मराठा के एक वर्ग पर शिवसेना शिंदे गुट का प्रभाव है। इसलिए कहा जाता है कि लोकसभा चुनाव में शिंदे गुट ने बीजेपी से अच्छा प्रदर्शन किया।
मराठाओं की वजह से विधानसभा चुनाव में भी शिंदे गुट को फायदा मिलने वाला है। अजित गुट का लोकसभा चुनाव में सबसे खराब प्रदर्शन था। मराठा तो उनसे बिदके हुए हैं ही। छगन भुजबल की वजह से ओबीसी वोट उनकी ओर कम दिख रहा है। क्योंकि, भुजबल पार्टी में उपेक्षित हैं। इसलिए उनका झुकाव शरद की तरफ है। भुजबल का मानना है कि मुख्यमंत्री शिंदे मराठाओं की तरफदारी कर रहे हैं जिससे ओबीसी के आरक्षण को नुकसान होने वाला है। वह ओबीसी के आरक्षण को बचाने के लिए अपना मंत्री पद भी कुर्बान करने को तैयार हैं। इसलिए भुजबल ने जब शरद से मुलाकात की तो राज्य में राजनीतिक हलचल तेज हो गई।

महायुति के घटक दलों में समन्वय की कमी है। बीजेपी, शिंदे गुट और अजित गुट के बीच भरोसे का भी अभाव है। यह लोकसभा चुनाव के दौरान भी उजागर हुआ था। अभी विधानसभा चुनाव के लिए सीटों का बंटवारा नहीं हुआ है। उससे पहले बीजेपी, शिंदे गुट और अजित गुट तीनों 288 सीटों पर अपनी ताकत का सर्वे करा रहे हैं। यानि कि अभी से यह संभावना दिख रही है कि महायुति के तीनों दल अलग-अलग भी चुनाव लड़ सकते हैं। वैसे, अमित शाह से मुलाकात के बाद अजित ने कहा है कि उनकी पार्टी महायुति के साथ ही चुनाव लड़ेगी। उधर मुख्यमंत्री पद पर आसीन एकनाथ शिंदे ने जनता के बीच अपनी अलग लोकप्रियता बना ली है। राज्य में लोग मोदी की गारंटी से ज्यादा शिंदे की गारंटी को मानने लगे हैं।

मध्य प्रदेश की लाड़ली बहना योजना की तर्ज पर शिंदे ने भी ‘माझी लाडकी बहीण योजना’ शुरू की है। इसका अच्छा प्रतिसाद मिल रहा है। इस योजना के सहारे शिंदे को लगता है कि उनकी सरकार दोबारा सत्ता में लौटेगी। लेकिन, विपक्ष भी सत्ता परिवर्तन के लिए काम कर रहा है। इसमें आघाड़ी के योद्धा उद्धव और शरद डटे हुए हैं। कांग्रेस में टूट की संभावना है। इसलिए शरद ने कुछ ऐसी योजना बनाई है जो मोदी की गारंटी और शिंदे की गारंटी को भेदने का काम करेगी। इस पर बीजेपी की नजर है। लेकिन बीजेपी को ऐसे मुद्दे तलाशने होंगे जो उसे विजयी दिलाने की गारंटी दे सके। कुल मिलाकर इस बार विधानसभा का चुनाव काफी रोमांचक और चकित करने वाला होगा।