रविवारीय गपशप:किस्से एक कप चाय के,कुछ ठंडे तो कुछ गर्म!

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रविवारीय गपशप:किस्से एक कप चाय के,कुछ ठंडे तो कुछ गर्म!

नई पीढ़ी के लोग भले ही कोला और पेप्सी के दीवाने हों पर हमें तो चाय में ही आनन्द आता है । दरअसल हमारे देश में चाय का एक अलग ही महत्व है । आपस में मिलना-जुलना हो , मेहमानों की आवभगत का सवाल हो या वैसे ही शाम को तफ़रीह में कहीं जाने का मन बने तो चाय की चुस्की के बिना बात पूरी नहीं होती है । हमारे संवर्ग से रिटायर हुए एक साथी , जो अब जबलपुर में रहते हैं , सामाजिक सरोकार के लिए सक्रिय हैं । इसके लिए वे विभिन्न संवर्ग के , विभिन्न आयु वर्ग के हज़ारों लोगों के साथ बैठकें करते हैं और इसे उन्होंने नाम दिया है “ चाय पर चर्चा “ ।

पढ़ाई लिखाई के दौरान तो ब्रेक में चाय पीने जाने की कई यादें जुड़ी हुई हैं पर नौकरी लगने के बाद तो लगा कि चाय तो कामकाज का अंग ही है । किसी काम से मिलने आने वाले को चाय के लिए पूछ लो तो उसके चेहरे की चमक कई गुना बढ़ जाती है । नरसिंहपुर में नौकरी के दौरान एक भूतपूर्व विधायक जब कभी किसी काम से मेरे पास आते तो मैं उनके काम सुनते सुनते उन्हें कट चाय पिलवाता । बहुत समय बाद में वे जब सरकार में मंत्री हो गए और उज्जैन में शासकीय दौर पर पधारे तो मुझे लगा इतने बरस हो गये हैं , क्या पता इन्हें याद भी है या नहीं , इसलिए मिलते ही मैंने अपना परिचय दिया तो वे कहने लगे “ अरे शर्मा जी कितनी कट चाय पी हैं , आपके साथ “ आपको परिचय की ज़रूरत थोड़े ही है ।

सीहोर में जब मैं एस.डी.एम. था तो एक विधायक महोदय किसी काम से मुझसे मिलने ऑफिस आए । मैंने उन्हें सम्मान से बिठाया , उनका बताया काम जाना और संबंधित को आवश्यक कार्यवाही करने के लिए बोला । इसके बाद विधायक जी को मैंने कहा कि जब तक कार्यवाही हो रही है , आप चाय पी लें । विधायक जी कहने लगे , मैं सरकारी अफ़सरों की चाय नहीं पीता हूँ , ना जाने कौन आप लोगों की चाय का पैसा देता है ? विधायक जी अपनी ईमानदारी और बेबाक़ बयानी के लिये मशहूर थे , पर जिस तरह से उन्होंने कहा मुझे बुरा लगा । मैंने अपने रीडर को बुलाया और उससे विधायक जी के सामने पूछा “ राय बाबू ये बताइए , मेरे ऑफिस में आयी हुई चाय का पैसा कौन देता है ?” राय बाबू बोले “सर आप “ । मैंने कहा अच्छा पिछले तीन महीने में कितना बिल दिया ले के आओ । राय बाबू मेरे द्वारा बुलाई चाय का हिसाब डायरी में रखते थे जिसका मासांत में मैं भुगतान किया करता था । राय बाबू तुरत डायरी ले आये , मैंने विधायक जी को दिखाया और कहा “ भले ही आप को चाय पीना हो या ना पीना हो पर ये जो आपने बात कही वो सही नहीं थी “ । विधायक जी कुछ शर्मिंदा से हुए और बोले “यार भाई माफ़ करो और चलो चाय पिलाओ “ । इसके बाद हमारी खूब जमी , ख़ैर अब तो वे प्रदेश सरकार में मंत्री हैं , पर चाय की दोस्ती ऐसी रही कि वे न केवल मेरे घर पधारते थे , बल्कि मेरे बेटी के जन्मदिन पर तोहफ़े भी देते थे ।

सो चाय के महिमा है तो ग़ज़ब पर उसका इस्तेमाल झूठ के लिये नहीं होना चाहिये । इससे जुड़ा भी एक क़िस्सा है । हुआ कुछ यूँ कि उज्जैन ज़िले के खचरोद अनुविभाग में मैं जब एस.डी.एम. था , तो नागदा शहर बंद के एक आंदोलन के दौरान , शुजालपुर के विधायक महोदय के साथ पुलिस के कुछ नये रंगरूटों ने गफ़लत में हाथापाई कर ली । विधायक जी नागदा ही रहते थे , वे नाराज़ हुए तो उन्होंने विधानसभा में विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव पेश कर दिया । इस प्रस्ताव में पुलिस के साथ साथ मेरे ऊपर भी आरोप थे । मैं नौकरी में आने के पहले ही लॉ ग्रेजुएट था सो विशेषाधिकार हनन की गंभीरता जानता था । यद्यपि पुलिस के नवआरक्षकों द्वारा की गई घटना से मेरा सीधा संबंध नहीं था , पर नाम सबके थे सो हम सभी की ओर से ज़िले के लोक अभियोजक ने जवाब बनवाया । सबके साथ मैंने भी हस्ताक्षर किए । विशेषाधिकार हनन के इस प्रस्ताव पर हमारी पेशी विधानसभा में होनी थी । समिति के सामने , हम सब को एक-एक कर बुलाया गया । जब मेरा नंबर आया , तो मैंने समिति के समक्ष अपना पक्ष रखा और निवेदन किया कि घटना का मुझसे संबंध नहीं है । अध्यक्ष जी ने मुझसे कहा वो तो हम देखेंगे पर आपने अपने जवाब में लिखा है “ कि विधायक जी को आपने चाय पिलाई , आपको पता है कि वे तो चाय पीते ही नहीं हैं ? मुझे भरी सर्दी में पसीना छूट गया , मन ही मन मैंने लोक अभियोजक को कोसा जिसके बनाये जवाब पर हमने हस्ताक्षर किए थे “ और हाथ जोड़ कर कहा “ माफ़ करें मैंने चाय ऑफर तो की थी , उन्होंने पी कि नहीं ये मुझे याद नहीं “ । अध्यक्ष जी हल्के से मुस्कुराए और मुझे बाहर जाने का इशारा कर दिया । इस पेशी के बाद मैंने प्रण किया कि अपने जवाब मैं ख़ुद बनाया करूँगा ।