देश के सबसे बड़े भू भाग वाले प्रदेश राजस्थान के वाशिंदों को इस बार भी केंद्रीय बजट से हैं ढेरों उम्मीदें 

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देश के सबसे बड़े भू भाग वाले प्रदेश राजस्थान के वाशिंदों को इस बार भी केंद्रीय बजट से हैं ढेरों उम्मीदें 

गोपेन्द्र नाथ भट्ट की विशेष रिपोर्ट 

इसे एक संयोग ही कहा जा सकता है कि इस बार राजस्थान की भजनलाल सरकार का बजट एक महिला मंत्री राज्य की उप मुख्यमंत्री और वित्त मंत्री दिया कुमारी ने राज्य विधान सभा में रखा और आने वाले मंगलवार को नए संसद भवन में मोदी सरकार की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण लोकसभा में देश का आम बजट प्रस्तुत करेगी। राजस्थान में इस बार किसान बजट को मूल बजट के साथ प्रस्तुत किया गया। इसी प्रकार निर्मला सीतारमण केंद्रीय बजट के साथ रेल बजट को रखने की मोदी सरकार द्वारा शुरू की गई परंपरा का इस बार भी निर्वहन करेंगी।

देश के सबसे बड़े भू भाग वाले प्रदेश राजस्थान के वाशिंदों को इस बार भी केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से मदद की ढेरों उम्मीदें है । वैसे भी हर प्रदेश के लोगों को केन्द्रीय बजट से काफी आशाएं बंधी रहती है लेकिन राजस्थान को कुछ अधिक उम्मीदें इसलिए भी है कि मध्य प्रदेश से अलग होकर नए प्रदेश बने छत्तीसगढ़ के गठन के बाद से क्षेत्रफल के लिहाज से राजस्थान देश का सबसे बड़ा प्रदेश बन गया। वैसे भी शुरू से ही राजस्थान की अपनी विषम भौगोलिक परिस्थितियां रही है। देश ही नहीं एशिया के सबसे बड़े रेगिस्तान में शामिल थार मरुस्थल का सर्वाधिक भाग राजस्थान में ही है। जहां सड़क, पानी,बिजली और अन्य बुनियादी सेवाएं पहुंचाने की लागत बहुत महंगी है क्यों कि यहां सेवा लागत अन्य राज्यों की तुलना में बहुत अधिक आती है। प्रदेश के रेगिस्तानी इलाकों से लगी और पाकिस्तान से सटी देश की सबसे बड़ी अंतरराष्ट्रीय सीमाएं भी राजस्थान में से ही होकर गुजरती है और यहां सीमा सुरक्षा क्षेत्रों के विकास के लिए अधिक केंद्रीय सहायता की जरूरत है। राजस्थान में आए दिन की प्राकृतिक आपदाओं के साथ ही पानी की विकट समस्या भी है। देश के कुल क्षेत्रफल का दस प्रतिशत इलाका होने के बावजूद राजस्थान में भूमिगत और सतही पानी की मात्रा मात्र एक प्रतिशत ही है। राज्य के अधिकांश ब्लॉक डार्क जोन घोषित है। प्रदेश के कई भागों में गर्मियों में टैंकरों और विशेष ट्रेन के माध्यम से पेयजल पहुंचाना पड़ता है। कई इलाको में तो पीने लायक पानी भी नहीं है। पानी में फ्लोराइड की अधिक मात्रा के कारण पश्चिमी राजस्थान के कई इलाके बांका पट्टी के नाम से कुख्यात है और यह दूषित पानी लोगों को दांतों और हड्डियों से जुडी बीमारियों से जकड़ देता है। पशु भी इससे अछूते नहीं रहते। पानी की गुणवता सुधारने और इन क्षेत्रों में मीठा पानी लाने के लिए भारत सरकार की सहायता जरुरी हैं ।

पूर्वी राजस्थान को पानी की इस समस्या से निजात दिलाने के लिए भाजपा की वसुन्धरा राजे की सरकार के कार्यकाल में 40 हजार करोड़ रु की लागत से ईआरसीपी परियोजना बनाई गई थी जिसे अशोक गहलोत की कांग्रेस सरकार ने भी उसे आगे बढ़ाया था लेकिन इसे राष्ट्रीय परियोजना घोषित करने के प्रश्न पर और मध्यप्रदेश के साथ समझौते को लेकर राजनीति इतनी अधिक गर्मा गई कि यह परियोजना पूरी तरह से सिरे पर नहीं चढ़ पाई।

राजस्थान की मौजूदा भाजपा की भजन लाल सरकार ने सत्ता संभालते ही इस महत्वाकांशी परियोजना को पिछली सरकारों की तरह ही पूरी तवज्जो दी है और पहले इससे लाभान्विय होने वाले 13 जिलों की संख्या को भी बढ़ा कर अब प्रदेश के 23 जिलों की जनता को पेयजल एवं सिंचाई सुविधा से लाभान्वित करने के लिए मध्यप्रदेश के साथ पीकेसी- ईआरसीपी परियोजना के लिए एक नए एमओयू पर भी साइन किए है । मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा ने संकेत दिए है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी शीघ्र ही इस महत्वाकांशी परियोजना का शिलान्यास करेगे। ऐसा होने से उम्मीद है कि केंद्रीय बजट में इस परियोजना के लिए अधिक धन राशि का प्रावधान रखा जाएगा।

बताते चले कि रेगिस्तान प्रधान राजस्थान को आजादी के बाद विश्व की सबसे बड़ी राजस्थान नहर परियोजना की सौगात मिली थी। इसका नाम कालांतर में इंदिरा गांधी नहर परियोजना रखा गया। इस परियोजना ने रेगिस्तान की सूखी और बंजर भूमि के साथ ही पूरे इलाके का कायाकल्प कर दिया है। इसके बाद प्रदेश में केन्द्र सरकार के सहयोग से बाडमेर तेल रिफाइनरी और पेट्रो कॉम्प्लेक्स की एक और बहुत बड़ी परियोजना भी मिली जोकि पश्चिमी राजस्थान का नक्शा बदलेगी ऐसी उम्मीद हैं । इसके बाद अब पीकेसी-ईआरसीपी परियोजना से पूर्वी राजस्थान का नक्शा भी बदलने की उम्मीद है, बेशर्ते यदि भारत सरकार इसे राष्ट्रीय परियोजना का दर्जा देकर समुचित वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराएं।

राजस्थान के किसानों की खेती पूरी तरह मानसून की वर्षा पर ही निर्भर रहती है। किसानों के छोटे छोटे खेत अच्छी वर्षा नहीं होने पर अच्छी फसलें भी नहीं दे पाते है। प्रदेश में मानसून की वर्षा और

भूमिगत एवं सतही जल की कमी के कारण प्रायः सूखा और अकाल की परिस्थितियां बनती रही है।साथ ही प्रदेश की विषम भौगोलिक परिस्थितियां के कारण राज्य की पूर्ववर्ती सभी सरकारें राजस्थान को भी देश के पहाड़ी और सीमावर्ती प्रदेशों की तरह विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग करते आई हैं। कालांतर में ग्लोबल वार्मिंग के बदले हालातों में ये सरकारें राजस्थान को पेयजल की दृष्टि से भी पिछड़ा प्रदेश घोषित कर सौ फीसदी केंद्रीय मदद की गुहार भी लगाती आई है।

राजस्थान पर्यटन के लिए भी विश्व प्रसिद्ध डेस्टिनेशन है। प्रदेश के ऐतिहासिक स्थलों, भव्य महलों,किलों,दुर्गों और हवेलियों की विरासत के अलावा प्रदेश में छठी शताब्दी से ग्यारहवीं शताब्दी तक की मौजूद असंख्य हेरिटेज संपदा के साथ ही यहां की कला, संस्कृति, खान-पान आदि देशी-विदेशी सैलानियों को अपनी ओर आकर्षित करते है। संयोग से अभी देश के केंद्रीय पर्यटन और संस्कृति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत भी राजस्थान के है। इस लिहाज से राजस्थान को केंद्रीय बजट से काफी उम्मीदें है। कायदे से राजस्थान को हेरिटेज स्टेट का दर्जा देकर राज्य में चारों ओर बिखरी पड़ी ऐतिहासिक धरोहरों को संरक्षित करने के लिए शत प्रतिशत केंद्रीय सहायता दी जानी चाहिए।

राजस्थान अपने पत्थर उद्योग के साथ ही मार्बल और ग्रेनाइट उद्योग के अलावा खान और खनिजों और अपने हस्तशिल्प उद्योग के लिए भी काफी मशहूर है। प्रदेश के अन्य राज्यों के सीमावर्ती इलाकों में स्थित अफीम काश्तकारों की भी अपनी कई समस्याएं है, जिसका निराकरण केंद्र सरकार ही कर सकती है। डेयरी और कृषि से संबद्ध अन्य उद्योग भी केंद्रीय सहायता की उम्मीद लगाए हुए हैं।

प्रदेश में सड़क और रेल सुविधाओं का नेटवर्क अभी भी अपेक्षाएं के अनुरूप नहीं है। दक्षिणी राजस्थान के आदिवासी बहुल बांसवाड़ा जिले के किसी कोने से रेल लाइन नहीं गुजरती। यहां की कई पीढ़ियां रेल की सीटी सुने बिना ही चली गई। प्रदेश के सुदूर इलाकों को रेल एवं राष्ट्रीय राज मार्ग के नेट वर्क से जोड़ने के लिए केंद्रीय सहायता आवश्यक है।

देखना है मोदी सरकार की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण आने वाले मंगलवार को संसद में बजट प्रस्तुत करते हुए देश में क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे बड़े और गुजरात, मध्य प्रदेश,उत्तर प्रदेश एवं हरियाणा से सटे राजस्थान पर कितनी मेहरबान होंगी?