CS Extension: हो सकता है CS वीरा राणा का एक्सटेंशन!

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CS Extension: हो सकता है CS वीरा राणा का एक्सटेंशन!

मध्य प्रदेश के प्रशासनिक गलियारों में चल रही चर्चाओं पर अगर भरोसा किया जाए तो मौजूदा मुख्य सचिव वीरा राणा का कार्यकाल कुछ महीने और बढ़ सकता है। चर्चाओं में इस बात का उल्लेख भी किया जा रहा है कि आखिर यह कार्यकाल फिर एक बार क्यों बढ़ाया जा सकता है?

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हालांकि सत्ता के शीर्ष स्थानों पर इन दिनों एक नई प्रशासनिक जमावट का बिगुल बजता दिखाई दे रहा है। ऐसे में यह माना जाना स्वाभाविक है कि मुख्यमंत्री के अपर मुख्य सचिव डॉ राजेश राजौरा की ताजपोशी हो जाएगी। लेकिन, इस महत्वपूर्ण कुर्सी के अन्य दावेदार पर्दे के पीछे रहकर पुरजोर कोशिश में लगे हैं। इसलिए हस्तिनापुर के निर्णायक लोगों ने एक नई रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है। बताते है कि वर्तमान मुख्य सचिव वीरा राणा के कार्यकाल को कुछ महीने और बढ़ाने पर विचार किया जा रहा है, ताकि जो दावेदार हैं, वे स्वतः या तो रिटायरमेंट के निकट आ जाएं और उनके हौसले कम हो जाएं। वैसे भी राजोरा का अभी 3 साल का सेवाकाल बचा है यानी उनके पास काफी समय है और वे अगर कुछ महीने बाद भी मुख्य सचिव बने तो कोई परेशानी नहीं होगी। मुख्यमंत्री के अपर मुख्य सचिव होने से वे वैसे भी पावर सेंटर में तो है ही।
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*भंवर में फंसते जितेंद्र सिंह*
कांग्रेस ने भले ही लोकसभा में 99 सीट जीत ली हो, पर मध्य प्रदेश में कांग्रेस के वहीं ठाक के तीन पात वाले हाल है। प्रदेश में पिछले 20 साल में जितने भी राष्ट्रीय प्रभारी आए वे पंच और पार्षद लायक भी नहीं थे। लिहाजा, उन्होंने प्रदेश कांग्रेस को छोटे से गांव की पार्टी बनाकर चलाई, जिससे कांग्रेस ऊंचाई के बजाय रसातल में जाती दिखाई दी। लेकिन, इस बार राहुल गांधी ने इस प्रदेश में अपने सबसे करीबी व्यक्ति भंवर जितेन्द्र सिंह को प्रभारी बनाकर भेजा। हालांकि, अलवर वाले ये भाई साहब कुछ दिन तो ठीक चले और कांग्रेसियों को भी लगा कि अब छोटे लोगों की भी पूछ परख बढेगी।

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लेकिन, अभी जो जानकारी आ रही है वो यह है कि भंवर साहब के कारनामे भी अब प्रदेश के नेता दिल्ली भेजने लगे। क्योंकि, ये भाई साहब भी निष्ठावान कार्यकर्ताओं को मजबूती देने की बजाय बड़े और बुजुर्ग नेताओं की बात को ज्यादा तवज्जो देने में लगे हैं। पता चला है कि अब प्रदेश के कुछ नेता जितेन्द्र सिंह को भंवर में फंसाने की रणनीति बना चुके है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि जितेंद्र सिंह भंवर में फसते हैं या नहीं!
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*नागर सिंह के साथ यह होना ही था*
किस मंत्री के पास कौन सा विभाग होगा यह मुख्यमंत्री का विशेषाधिकार होता है। किन्तु जिस प्रकार से नागर सिंह चौहान से वन और पर्यावरण विभाग लेकर रामनिवास रावत को दिए गए ये सामान्यतः सहज निर्णय दिखाई नहीं देता।

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क्योंकि, नागर सिंह चौहान यूं तो भले आदमी हैं, लेकिन उनके मंत्रिमंडल से पर कतरे जाने की इबारत बहुत पहले ही लिखी जा चुकी थी। भले ही ऊपरी तौर पर यह दिखाई देता हो कि उनके पास तीन विभाग थे, इसलिए उनसे वन एवं पर्यावरण रामनिवास रावत को देने में कोई अचंभा दिखाई नहीं देता। लेकिन, विभाग बदलने के जो मूल दो कारण अंदर की खबर रखने वालों ने बताए है। वे अपने आप में यह कहते है कि ये तो होना ही था। इन लोगों की माने तो नागर सिंह ऐसे व्यक्ति के यस मेन बने हुए थे जो पिछले सालों में विवादों में रहे हैं और जिन्हें शिवराज सरकार में एक महत्वपूर्ण पद देने के बाद हटाया गया था। एक एक और खबरें हाई कमान तक पहुंच रही थी कि नागर सिंह के विभागों में एक अल्पसंख्यक व्यक्ति का दबदबा भी काफी बढ़ गया था। इन्हीं दो मुद्दे को लेकर सरकार और संगठन तक चिंता और चिंतन हो रहा था कि नागर सिंह के विभाग में आखिर ऐसे लोगों का दबदबा क्यों कायम हो गया जिनके कारण सत्ता, संगठन और स्वयं मुख्यमंत्री की छवि को धक्का पहुंच रहा था। अब भले ही मामला ठंडा हो गया हो, पर खराश तो है।
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*चतुर अधिकारी की पकड़ाई कारस्तानी* 
आमतौर पर किसी अधिकारी के तबादले के बाद यह मान लिया जाता है, कि अब पूर्व कार्यालय से स्थानांतरित हुए अधिकारी का कोई हस्तक्षेप नहीं रहेगा। लेकिन, रतलाम जिले में पदस्थ एक आला अधिकारी का एक दिलचस्प कारनामा सामने आया। घटना यह है कि रतलाम में पदस्थ यह अधिकारी कार्यालय की मलाई पर तो हाथ साफ कर ही रहे हैं, वे जहां से तबादला होकर आए वहां के भी पुरानी तारीखों में आदेश जारी कर रहे हैं। बताते हैं कि बकायदा सेटिंगबाज लोग रतलाम जाते है, पुरानी डेट में मनचाहा ज्ञान गणित वाला आदेश लेकर आ जाते हैं। इस खेल का भांडा कभी नहीं फूटता, पर पिछले दिनों एक व्यक्ति ऐसा ही आदेश लेकर आया और दफ्तर में उसे लागू करवाने के लिए बहस करने लगा। बाबू ने देखा कि ये आदेश जिस दिन का बताया जा रहा है, उस दिन तो यह जावक में ही नहीं है। जैसे ही बाबू ने अपनी बाबूगिरी बताई, पोल खुलने के डर से वह व्यक्ति भाग खड़ा हुआ। लेकिन, उसके भागने से रतलाम के अधिकारी की पोल जरूर खुल गई।
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*विधायक पर होंगी सत्ता की टेडी नजर*
नेताओं में पद और पावर आता है तो निश्चित तौर पर अहंकार और गुरूर भी साथ लाता है। धार जिले में एक विधायक द्वारा एक शीर्ष महिला अधिकारी के साथ जो तू-तू मैं-मैं का वाकया हुआ। इससे उस विधायक की मुश्किलें बढ़ती दिखाई दे रही है। विधायक आए दिन अधिकारियों को कामकाज के लिए चमकाते-धमकाते रहते हैं। लेकिन, इस बार जिले के इन विधायक ने हद कर दी कि जब एक विभाग की बड़ी ओहदे वाली महिला अधिकारी ने इनसे इन्हीं के अंदाज में बात करके इनका  दिमाग ठिकाने लगा दिया । विधायक की अधिकारियों से विवाद और दादागिरी करने का पुराना शगल रहा है। लेकिन, विधायक द्वारा महिला अधिकारी के साथ जो फोन पर निचले स्तर की अशोभनीय बातें की, मैडम ने वो बातें भोपाल के हस्तिनापुर में न सिर्फ पहुंचा दी, बल्कि ये माना जा रहा है कि सत्ता की कड़ी नजर विधायक पर हो जाए तो कोई आश्चर्य नहीं समझा जाना चाहिए।
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*अंत में*
केन्द्रीय मंत्री सावित्री ठाकुर के धार विधानसभा और खासतौर पर जिला मुख्यालय पर सक्रियता से धार के एक नेता के माथे पर चिंता की लकीरें दिखाई देने लगी है। उनकी खोजबीन की जा रही है जो सावित्री ठाकुर को धार में सक्रिय रख रहे हैं। क्योंकि, लम्बे समय से धार की राजनीति में भाजपा में किसी नेता को इतना सक्रिय नहीं देखा गया था। ऐसे में सावित्री ठाकुर की सक्रियता आंखों में खटकना स्वाभाविक है।

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