टुकड़े-टुकड़े दिन बीता, धज्जी-धज्जी रात मिली…

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टुकड़े-टुकड़े दिन बीता, धज्जी-धज्जी रात मिली…

टुकड़े-टुकड़े दिन बीता, धज्जी-धज्जी रात मिली। जिसका जितना आंचल था, उतनी ही सौगात मिली।

यह शब्द शायद सभी की जिंदगी की कहानी बयां करते हैं। पर यह लेखनी ट्रेजेडी क्वीन मीना कुमारी की है। मीना कुमारी जितनी अच्छी अदाकारा थीं, उतनी ही बेहतरीन शायरी लिखती थीं। इसके अलावा भी अलग-अलग कलाओं में पारंगत मीना कुमारी की जिंदगी को त्रासों ने भी कोई मोहलत नहीं दी। मीना कुमारी को हम आज इसलिए याद कर रहे हैं, क्योंकि उनका जन्म 1 अगस्त को ही हुआ था। मीना कुमारी (1 अगस्त, 1933 – 31 मार्च, 1972) (मूल नाम -महज़बीं बानो) भारत की एक मशहूर हिन्दी फिल्मों की अभिनेत्री थीं। इन्हें खासकर दुखांत फ़िल्मों में इनकी यादगार भूमिकाओं के लिये याद किया जाता है। मीना कुमारी को भारतीय सिनेमा की ट्रैजेडी क्वीन (शोकान्त महारानी) भी कहा जाता है। अभिनेत्री होने के साथ-साथ मीना कुमारी एक उम्दा शायारा, कॉस्ट्यूम डिज़ाइनर एवम् पार्श्वगायिका भी थीं। इन्होंने वर्ष 1939 से 1972 तक फ़िल्मी पर्दे पर काम किया। बाल कलाकार से नामी अदाकारा तक मीना को शोहरत में बुलंदियां मिलीं, तो दुखों के सागर भी उनके आसपास ही रहे। आज हम मशहूर अदाकारा मीना कुमारी जो शायरी भी कहती थीं, की तीन चुनिंदा ग़ज़लें पढ़कर उनके जीवन की पूरी दास्तां महसूस की जा सकती है। तो पढ़ते हैं मीना कुमारी की यह तीन गजल –

1-

चांद तन्हा है आसमां तन्हा,

दिल मिला है कहां-कहां तन्हा।

बुझ गई आस, छुप गया तारा,

थरथराता रहा धुआं तन्हा।

ज़िन्दगी क्या इसी को कहते हैं,

जिस्म तन्हा है और जां तन्हा।

हमसफ़र कोई गर मिले भी कभी,

दोनों चलते रहें कहां तन्हा।

जलती-बुझती-सी रौशनी के परे,

सिमटा-सिमटा-सा एक मकां तन्हा।

राह देखा करेगा सदियों तक

छोड़ जाएंगे ये जहां तन्हा।

2-

टुकड़े-टुकड़े दिन बीता, धज्जी-धज्जी रात मिली,

जिसका जितना आंचल था, उतनी ही सौगात मिली।

रिमझिम-रिमझिम बूंदों में, ज़हर भी है और अमृत भी

आंखें हंस दीं दिल रोया, यह अच्छी बरसात मिली।

जब चाहा दिल को समझें, हंसने की आवाज़ सुनी

जैसे कोई कहता हो, ले फिर तुझको मात मिली।

मातें कैसी घातें क्या, चलते रहना आठ पहर

दिल-सा साथी जब पाया, बेचैनी भी साथ मिली।

होंठों तक आते आते, जाने कितने रूप भरे

जलती-बुझती आंखों में, सादा-सी जो बात मिली।

3-

 

आगाज़ तो होता है अंजाम नहीं होता

 

जब मेरी कहानी में वो नाम नहीं होता।

 

जब ज़ुल्फ़ की कालिख़ में घुल जाए कोई राही

 

बदनाम सही लेकिन गुमनाम नहीं होता।

 

हंस-हंस के जवां दिल के हम क्यों न चुनें टुकडे़

 

हर शख्स़ की किस्मत में ईनाम नहीं होता।

 

बहते हुए आंसू ने आंखों से कहा थम कर

 

जो मय से पिघल जाए वो जाम नहीं होता।

 

दिन डूबे हैं या डूबे बारात लिये कश्ती

 

साहिल पे मगर कोई कोहराम नहीं होता।

 

मीना कुमारी की जिंदगी को जीने के लिए यही तीन गजलें काफी हैं। वैसे फ़िल्म पाक़ीज़ा के रिलीज़ होने के तीन हफ़्ते बाद मीना कुमारी की तबीयत बिगड़ने लगी। 28 मार्च 1972 को उन्हें बम्बई के सेंट एलिज़ाबेथ अस्पताल में दाखिल करवाया गया।

 

31 मार्च 1972, गुड फ्राइडे वाले दिन दोपहर 3 बजकर 25 मिनट पर महज़ 38 वर्ष की आयु में मीना कुमारी ने अंतिम सांस ली। पति कमाल अमरोही की इच्छानुसार उन्हें बम्बई के मज़गांव स्थित रहमताबाद कब्रिस्तान में दफनाया गया। हालांकि मौत से काफी पहले मीना कुमारी अपने पति कमाल से अलग रह रही थीं मीना कुमारी इस लेख को अपनी कब्र पर लिखवाना चाहती थीं:

 

“वो अपनी ज़िन्दगी को

 

एक अधूरे साज़,

 

एक अधूरे गीत,

 

एक टूटे दिल,

 

परंतु बि

ना किसी अफसोस

 

के साथ समाप्त कर गई” (अंग्रेज़ी से अनुवादित)