High Court Decision : NHAI अधिकारियों के खिलाफ FIR रद्द करने से हाई कोर्ट का इंकार!
Jabalpur : मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) के अधिकारियों के खिलाफ दायर याचिका को ‘सद्भावना’ (Good Faith) के आधार पर रद्द करने की मांग को ठुकरा दिया। दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (सीआरपीसी) की धारा 482 1 के तहत दायर एक आवेदन में जस्टिस जीएस अहलूवालिया, की एकल पीठ ने कहा कि प्रथम दृष्टया यह नहीं कहा जा सकता कि आवेदकों ने सद्भावना से काम किया। क्योंकि, आवेदकों ने एनएच-7 के प्रति अपने रखरखाव कर्तव्यों को पूरा नहीं किया। इस आधार पर उन्होंने एफआईआर रद्द करने से इनकार किया। हाई कोर्ट ने आवेदकों को ट्रायल कोर्ट में उपस्थित होने का निर्देश दिया।
शिकायतकर्ता का 31 अगस्त 2013 को एक्सीडेंट हुआ था, जिसमें उसे चोटें आईं और उसकी मोटरसाइकिल NH-7 से खाई में गिरने से टूटफूट गई थी। शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) के अधिकारी और आवेदक राजमार्ग का रखरखाव करने में विफल रहे। आवेदकों का तर्क था कि वे एनएचएआई अधिनियम की धारा 28 के तहत आपराधिक अभियोजन से सुरक्षित हैं, जिसे कोर्ट ने नहीं माना।
एनएचएआई अधिनियम की धारा 28 के तहत संरक्षण क्यों
शिकायतकर्ता ने दावा किया कि NH-7 के रखरखाव में लापरवाही के कारण ही उसे चोटें आईं और उसकी मोटरसाइकिल क्षतिग्रस्त हो गई। आवेदकों ने धारा 482 के तहत वर्तमान आवेदन दायर कर पुलिस स्टेशन धूमा (सिवनी) में आईपीसी की धारा 431 2 , 283 3 , 290 4 , 336 5 और 427 6 के तहत दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग की है। 19 फरवरी 2014 के अंतरिम आदेश ने आपराधिक कार्यवाही पर रोक लगा दी थी। मुख्य मुद्दा यह था कि क्या आवेदकों के खिलाफ एनएचएआई अधिनियम की धारा 28 के तहत संरक्षण के आधार पर सीआरपीसी की धारा 482 के तहत एफआईआर को रद्द किया जाना चाहिए?
राजमार्ग का रखरखाव करने में विफल रहे
आवेदकों ने तर्क दिया था कि वे एनएचएआई अधिनियम की धारा 28 के तहत आपराधिक अभियोजन से सुरक्षित हैं। क्योंकि, उन्होंने सद्भावनापूर्वक कार्य किया। आवेदकों ने इकबाल मोहम्मद सिद्धिकी बनाम मध्य प्रदेश राज्य, एमसीआरसी संख्या 4197/2014, 22-09-2015 को तय किए गए समन्वय पीठ के पिछले आदेश पर भरोसा किया। हालांकि, प्रतिवादी ने तर्क दिया कि आवेदकों ने सद्भावनापूर्वक कार्य नहीं किया। क्योंकि, वे राजमार्ग का रखरखाव करने में विफल रहे, इस कारण शिकायतकर्ता की दुर्घटना हुई और उसे चोटें आईं। राष्ट्रीय राजमार्गों और सरकार द्वारा उसे सौंपे गए किसी भी अन्य राजमार्ग का विकास, रखरखाव और प्रबंधन करना भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण का कर्तव्य है। राजमार्ग को बनाए रखने का मतलब होगा कि भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण को राजमार्ग को वाहन चलाने योग्य स्थिति में रखना होगा। हाई कोर्ट ने कहा कि भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) की जिम्मेदारी राजमार्गों का रखरखाव करना और यह सुनिश्चित करना है कि वे यातायात के लिए सुरक्षित हों। कोर्ट ने कहा कि एनएच-7 पर खाई होने के बावजूद आवेदकों ने न तो सड़क की मरम्मत की और न राजमार्ग के क्षतिग्रस्त हिस्से को बंद करने के लिए कदम उठाए।
राजमार्ग क्षतिग्रस्त हुआ तो क्या कदम उठाए गए
कोर्ट ने कहा कि यदि राजमार्ग क्षतिग्रस्त हो गया था और उस पर वाहन नहीं चलाए जा सकते थे, तो फिर उसके रखरखाव के लिए कोई कदम क्यों नहीं उठाया गया! राजमार्ग या उसके क्षतिग्रस्त हिस्से को बंद करने के लिए कोई कदम नहीं उठाना या वाहनों की संख्या और गति को प्रतिबंधित करके यातायात को नियंत्रित करने के लिए कोई कदम क्यों नहीं उठाया। कोर्ट का यह मत है कि प्रथम दृष्टया यह नहीं कहा जा सकता कि आवेदकों ने सद्भाव से काम किया था। कोर्ट ने पाया कि आवेदक यह प्रदर्शित करने में असफल रहे कि उन्होंने आईपीसी की धारा 52 (7) के तहत परिभाषित सद्भाव से काम किया, जिसके लिए उचित देखभाल और ध्यान देने की आवश्यकता होती है।
कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि आवेदकों ने सद्भाव से काम किया या नहीं, यह तथ्य का प्रश्न है जिसे साक्ष्य के आधार पर परीक्षण के दौरान तय किया जाना चाहिए। हाई कोर्ट ने वर्तमान आवेदन को खारिज कर दिया और आवेदकों को ट्रायल कोर्ट में पेश होने का निर्देश दिया। कोर्ट ने कहा कि आवेदकों के पेश न होने पर गिरफ्तारी वारंट जारी किया जाएगा।