Silver Screen :कहानी बदली, कलाकार बदले, फिल्म का नाम वही!   

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Silver Screen :कहानी बदली, कलाकार बदले, फिल्म का नाम वही!   

दर्शकों को फ़िल्में जिस भी तरीके से आकर्षित करती है, उसके पीछे कई कारण होते हैं। फिल्म का कथानक, कलाकार और डायरेक्टर के अलावा पहला आकर्षण होता है फिल्म का नाम! ये नाम ही दर्शकों को इस बात का संकेत देता है कि फिल्म का कथानक किस विषय पर केंद्रित है। इस बात पर भले विश्वास न किया जाए, पर फिल्मों के नाम का फिल्म इतिहास में अपना अलग ही महत्व है। इतना ज्यादा कि कई फ़िल्में एक ही नाम से तीन-चार बार नहीं आठ बार तक बनाई गई। इसलिए कि फिल्म के कथानक को ये टाइटल इतने ज्यादा सटीक लगे, कि उसी को दोहराया गया। आज के दौर में फिल्मकार अपनी फिल्मों के कुछ अलग और हटकर नाम रखने की कोशिश करते हैं, ताकि उनकी फिल्म सबसे अलग लगे। लेकिन, फिर भी कुछ टाइटल ऐसे हैं, जिनका लोभ हमेशा बना रहा। समय के साथ टाइटल में बदलाव का रिवाज भी देखने को मिलता है। कभी टाइटल बहुत लंबे तो कभी बहुत छोटे रखे जाते रहे। ये ट्रेंड पर निर्भर है कि उस दौर के दर्शक क्या पसंद करते हैं। फिल्म इंडस्ट्री में ‘सलीम लंगड़े पे मत रो’ और ‘अलबर्ट पिंटो को गुस्सा क्यों आता है’ जैसे लम्बे-लम्बे टाइटल रखे गए तो ‘पा’ जैसे नाम की फिल्म भी आई।

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फिल्मकारों ने एक नाम से तीन या चार बार तो फिल्में बनाई। पर, एक नाम ऐसा है, जिस पर आठ बार फिल्म बनी है। न सिर्फ हिंदी में बल्कि बांग्ला, तमिल तेलुगु और उर्दू में भी ‘देवदास’ फिल्म बनाई गई। इस फिल्म की सबसे अनोखी विशेषता है, कि हर बार एक ही कहानी को दोहराया गया। शरतचंद्र चट्टोपाध्याय के उपन्यास ‘देवदास’ पर इतनी बार फ़िल्में बनी है कि उसका रिकॉर्ड शायद ही कभी टूटे। 1917 में लिखे गए इसी उपन्यास पर आठ बार फिल्म बनी। 1928 में पहली बार इस उपन्यास पर नरेश सी मित्रा ने मूक ‘देवदास’ बनाई थी। नरेश सी मित्रा खुद ने खुद भी एक्टिंग की थी। जबकि, ‘देवदास’ का किरदार फानी बर्मा ने निभाया था। 1935 में पीसी बरुआ ने बंगाली और हिंदी भाषाओं में ‘देवदास’ बनाई। ये पहली बोलती ‘देवदास’ कही जा सकती है। पीसी बरुआ ने बंगाली में बनी ‘देवदास’ में मुख्य किरदार निभाया था। जबकि, हिंदी में केएल सहगल ‘देवदास’ बने थे। फिल्म जबरदस्त हिट हुई थी, पर आज इस फिल्म का कोई प्रिंट उपलब्ध नहीं हैं। तीसरी बार 1953 में बनी ‘देवदास’ तेलुगू और तमिल में वेदान्तम राघावैया ने बनाई थी। इसमें ‘देवदास’ की भूमिका नागेश्वर राव की थी। दोनों फ़िल्में बेहद सफल रही थीं।

हिंदी में दिलीप कुमार वाली चौथी ‘देवदास’ 1955 में पीसी बरुआ ने ही बनाई। तब उनकी इस फिल्म के कैमरे का काम बिमल रॉय ने संभाला था। फिल्म के किरदार से उन्हें इतना लगाव हो गया था कि बाद में उन्होंने भी ‘देवदास’ बनाई। बिमल रॉय ने इस फिल्म में ट्रेजेडी किंग दिलीप कुमार को देवदास बनाया। वैजयंती माला चंद्रमुखी और सुचित्रा सेन ने पार्वती की भूमिका निभाई थी। पांचवी बार ‘देवदास’ 1965 में उर्दू में बनाई गई। इसका निर्देशन ख्वाजा सरफराज ने किया था। छठी बार ‘देवदास’ 1979 में बांग्ला में बनी जिसमें मुख्य भूमिका सौमित्र चटर्जी ने की थी। इसे दिलीप रॉय ने बनाया और उत्तम कुमार ने चुन्नी बाबू का रोल निभाया था। शक्ति सामंत ने 2002 में बंगाली में ‘देवदास’ को फिर बनाया। इसमें प्रसनजीत, तापस पॉल और इंद्राणी हलदर मुख्य भूमिका में थे। आठवीं बार इसे संजय लीला भंसाली ने 2002 में बड़े कैनवस पर शाहरुख़ खान को ‘देवदास’ बनाकर बनाया। इसमें माधुरी दीक्षित और ऐश्वर्या राय भी थी। ये हिंदी में बनी पहली रंगीन ‘देवदास’ है।

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इसके बाद फेमस टाइटल आता है ‘अंदाज’ जिस पर चार बार फ़िल्म बनी और अपने समय काल के दर्शकों ने पसंद भी किया। इस टाइटल से पहली बार 1949 में फिल्म बनी, जो रिलीज होने के साथ ही छाई थी। इस रोमांटिक फिल्म का निर्देशन महबूब खान ने किया था और इसमें नरगिस, दिलीप कुमार और राज कपूर मुख्य भूमिकाओं में थे। इसके बाद ‘अंदाज’ 1971 में बनाई गई। यह भी रोमांटिक फिल्म थी, जिसका डायरेक्शन रमेश सिप्पी ने किया। इसे चार लेखकों सलीम-जावेद, गुलजार और सचिन भौमिक ने लिखा था। 1994 में डेविड धवन की इसी नाम से बनी फिल्म में एक्शन कॉमेडी थी। इसमें अनिल कपूर, जूही चावला, करिश्मा कपूर और कादर खान थे। आखिरी बार ‘अंदाज’ 2003 में बना, जिसे राज कंवर ने निर्देशित और सुनील दर्शन ने बनाया था। इसमें अक्षय कुमार, लारा दत्ता और प्रियंका चोपड़ा थे।

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एक और फिल्म है, जो चार बार एक ही टाइटल से बनी। ये है ‘किस्मत’ जिसका पहली बार 1943 में ज्ञान मुखर्जी ने उपयोग किया। इसमें अशोक कुमार और मुमताज शांति ने काम किया था। ये फिल्म बार-बार बनी लेकिन, पहली बार को छोड़कर तीनों बार इसे दर्शकों ने नकार दिया। पहली बार की सफलता के बाद 1968 में फिर ‘किस्मत’ नाम फिल्म बनाई गई। इसे मनमोहन देसाई ने निर्देशित किया था। ये रोमांटिक सस्पेंस थ्रिलर फिल्म थी जिसमें विश्वजीत चटर्जी, बबीता कपूर, हेलेन और कमल मेहरा ने अदाकारी की थी। 1995 में फिर ‘किस्मत’ नाम से फिल्म बनी जिसका निर्देशन हरमेश मल्होत्रा ने किया। चौथी बार 2004 में इसी टाइटल का उपयोग करके गुड्डू धनोआ ने ‘किस्मत’ बनाई। ये एक्शन फिल्म थी, जिसमें बॉबी देओल और प्रियंका चोपड़ा मुख्य भूमिका में थे।

‘आंखे’ भी ऐसा ही टाइटल है जिस पर तीन बार फ़िल्म बनी और हर बार हिट रही। पहली बार 1968 में बनी ‘आंखे’ का निर्माण और निर्देशन रामानंद सागर ने किया था। यह जासूसी थ्रिलर फिल्म थी। इसमें धर्मेंद्र, माला सिन्हा, महमूद अहम रोल में थें। इसे कई देशों में शूट किया गया था और बेरूत में शूट की गई पहली हिंदी फिल्म थी। दूसरी बार ‘आंखें’ 1993 में बनी जो गोविंदा की सुपरहिट फिल्मों में एक गिनी जाती है। यह एक्शन-कॉमेडी फिल्म थी, जिसे डेविड धवन ने बनाया। इसमें गोविंदा के साथ चंकी पांडे भी लीड रोल में थे और दोनों ही डबल रोल में नजर आए। बाद में इसे तेलुगु में ‘पोकिरी राजा (1995)’ के नाम से बनाया गया। तीसरी बार ‘आंखें’ 2002 में बनाई गई जिसमें अमिताभ बच्चन, अक्षय कुमार और अर्जुन रामपाल ने अभिनय किया। इस फिल्म को उसकी अनोखी कहानी की वजह से दर्शकों ने पसंद किया।

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‘जेलर’ भी एक ऐसा टाइटल है जो तीन बार उपयोग किया गया। सबसे पहले 1938 में ‘जेलर’ फिल्म बनी। इसे सोहराब मोदी ने बनाया था। फिल्म में सोहराब मोदी, लीला चिटनिस, सादिक अली मुख्य भूमिकाओं में थे। इसी टाइटल से 1958 में फिर फिल्म बनाई गई। यह 1938 में आई पहली ‘जेलर’ की रीमेक थी। इसे फिर सोहराब मोदी ने ही निर्देशित किया था। इसकी कहानी और संवाद भी कमाल अमरोही ने ही लिखे थे। सोहराब मोदी ने एक बार फिर खुद को जेलर की मुख्य भूमिका में ढाला था। फिल्म में कामिनी कौशल, गीता बाली, अभि भट्टाचार्य थे। 1938 और 1958 के बाद 2023 में इसी नाम से रजनीकांत की ‘जेलर’ बनी। इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर इतिहास बना डाला। इसमें रजनीकांत के साथ विनायकन, राम्या कृष्णन और वसंत रवि हैं।

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एक ही टाइटल ‘जिद्दी’ से भी तीन बार फिल्म बनी। पहली बार 1948 में शाहिद लतीफ ने निर्देशन में बनी, जिसमें देव आनंद मुख्य भूमिका में थे। 1964 में प्रमोद चक्रवर्ती ने ‘जिद्दी’ बनाई जिसमें जॉय मुखर्जी, आशा पारेख और महमूद ने भूमिकाएं निभाई थी। तीसरी बार ‘जिद्दी’ 1997 में बनी, जिसमें सनी देओल मुख्य भूमिका में और रवीना टंडन फिल्म की अभिनेत्री थी। 2008 में आई फिल्म ‘रेस’ नाम से भी तीन फिल्में आ चुकी हैं। लेकिन, पहली फिल्म जैसी बाद की दोनों फ़िल्में नहीं चली। तीसरी में तो सलमान खान नजर आए थे। ‘शानदार’ भी एक ऐसा ही नाम है जिस पर अब तक तीन बार फिल्म बन चुकी। पहली बार फिल्म कब बनी इसका उल्लेख नहीं मिलता। लेकिन, दूसरी बार 1990 में जो ‘शानदार’ रिलीज हुई उसमें मिथुन चक्रवर्ती, मीनाक्षी शेषाद्रि और जूही चावला थे। 2015 में विकास बहन ने एक बार ‘शानदार’ टाइटल का उपयोग करके शाहिद कपूर और आलिया भट्ट को लेकर फिल्म बनाई जो बुरी तरह फ्लॉप रही।

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एक टाइटल से दो बार बनने वाली कई फ़िल्में हैं। फिल्म ‘लहू के दो रंग’ भी टाइटल से दो बार बनी। 1979 में आई फिल्म के निर्देशन की कमान महेश भट्ट ने संभाली थी। इसमें विनोद खन्ना, शबाना आज़मी और डैनी नजर आए थे। इसमें विनोद खन्ना ने दोहरी भूमिका थी। इसके बाद साल 1997 में अक्षय कुमार और करिश्मा कपूर को लेकर भी ‘लहू के दो रंग’ बनी। पर, ये खास प्रदर्शन नहीं कर पाई। 2009 में आई दीपिका पादुकोण और सैफ अली खान की फिल्म ‘लव आजकल’ को दर्शकों ने पसंद किया था। दूसरी बार बनी ‘लव आजकल’ में सारा और कार्तिक आर्यन नजर आए थे, जिसे खास सफलता नहीं मिली।

‘कुली नंबर वन’ में गोविंदा और करिश्मा कपूर की हिट जोड़ी ने धमाल मचा दिया था। इसी नाम से आई वरुण धवन और सारा अली खान की फिल्म कमाल नहीं दिखा पाई। सलमान खान की ‘जुड़वां’ ब्लॉकबस्टर साबित हुई थी। जबकि वरुण धवन और जैकलीन फर्नांडिस, तापसी पन्नू की ‘जुड़वां-2’ नापसंद कर दी गई। ‘स्टूडेंट ऑफ द ईयर’ सिद्धार्थ मल्होत्रा, आलिया भट्ट और वरुण धवन की डेब्यू फिल्म थी। इसके दूसरी पार्ट में टाइगर श्रॉफ, अनन्या पांडे और तारा सुतारिया नजर आए। यंग यूथ पर बेस्ड ये लव स्टोरी पहली फिल्म के मुकाबले एवरेज साबित हुई। अभी ये सिलसिला रुका नहीं है। आगे भी एक ही टाइटल पर बार-बार आगे भी फ़िल्में बनती रहेंगी।

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हेमंत पाल

चार दशक से हिंदी पत्रकारिता से जुड़े हेमंत पाल ने देश के सभी प्रतिष्ठित अख़बारों और पत्रिकाओं में कई विषयों पर अपनी लेखनी चलाई। लेकिन, राजनीति और फिल्म पर लेखन उनके प्रिय विषय हैं। दो दशक से ज्यादा समय तक 'नईदुनिया' में पत्रकारिता की, लम्बे समय तक 'चुनाव डेस्क' के प्रभारी रहे। वे 'जनसत्ता' (मुंबई) में भी रहे और सभी संस्करणों के लिए फिल्म/टीवी पेज के प्रभारी के रूप में काम किया। फ़िलहाल 'सुबह सवेरे' इंदौर संस्करण के स्थानीय संपादक हैं।

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