आज की बात : नया जमाना नए तौर-तरीके
आज के समय में पांच पैसे, दस पैसे, चवन्नी, अट्ठन्नी नहीं चलते हैं। लेकिन हमारी पीढ़ी उस जमाने की है जब एक पैसा भी चलता था औऱ सबसे बड़ा नोट सौ रुपया ही होता था।
लोग कुर्ता पहनते कम ही थे कंधे पर ही रखकर काम चला लिया करते थे।
एक ही कुर्ता और एक जोड़ी जूता पर कभी पूरा टोला रिश्तेदारी में शान से घूम आता था।
सर्फ़ और शैंपू तो थे नहीं। सोडा और चिकनी मिट्टी से ही काम चल जाया करता था। जब सनलाइट, लाइफबॉय आया तो खास घरों में ही दिखता था। बड़ी इज्जत थी लक्स की। इसे बस महिलाएं ही लगाती थीं औऱ ग्लैक्सो का बिस्कुट तो बुखार लगने पर ही मिला करता था, खाने के लिए।
हमारे उस जमाने में बैल गाड़ी ही बारात की गाड़ी, बहु बेटियों को लाने ले जाने और बाजार से सामान ढूलाई का साधन हुआ करती थी। एंबुलेंस भी कम ही थीं और वो भी नहीं मिली तो चारपाई पर लोग अस्पताल ले जाए जाते थे।
सायकिल, रेडियो और घड़ी भी इक्का दुक्का घरों में होते थे।
आज एक – एक घर में कई कई बाइकें और एक एक गांव टोलों में कई – कई चार पहिया गाड़ियां हैं। टीवी भी हर घर में एक से अधिक मिल जायेंगे।
आज दौर बहुत बदला है और बदलते दौर में बहुत कुछ बदल गया है।
सिर्फ ये पैसे ही अप्रासंगिक नहीं हुए हैं। बल्कि बहुत सारे नए रहन – सहन, रिवाज, व्यवहार और विचार भी समाज में स्थापित हुए हैं।
पहले हर किसी के घर में रुपए भी हमेशा नहीं होते थे आज तो सबके पॉकेट में, वॉलेट में और मोबाइल में रहते हैं।
चंद दशकों में जहां रुपए की कीमतें गिरी हैं वैसे ही आदमी और रिश्तों की कीमत भी गिरी है।
आज हमारे समय के ये दस पैसे, पच्चीस पैसे, अठन्नी ही अप्रासंगिक नहीं हुए हैं, मानवीय मूल्य भी अप्रासंगिक हुए हैं।
*जय हिंद*
*अशोक बरोनिया*