Signal of Rebellion : चंपई सोरेन ने पार्टी से बगावत का इशारा किया, उसके पीछे के कारण भी गिनाए!

मुख्यमंत्री रहते हुए उनका अपमान किया गया, कार्यक्रम तक कैंसिल करवा दिए गए!

267

Signal of Rebellion : चंपई सोरेन ने पार्टी से बगावत का इशारा किया, उसके पीछे के कारण भी गिनाए!

New Delhi : सियासी अटकलों के बीच झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन का बड़ा बयान सामने आया। बीजेपी में जाने की अटकलों के बीच चंपई सोरेन ने कहा है कि मेरे लिए सभी विकल्प खुले हैं। झारखंड का मुख्यमंत्री रहते हुए मेरा अपमान हुआ था। विधायक दल की बैठक में ही मैंने भारी मन से कहा था कि आज से मेरे जीवन का नया अध्याय शुरू होने जा रहा है। इसमें मेरे पास तीन विकल्प थे। पहला, राजनीति से सन्यास लेना, दूसरा, अपना अलग संगठन खड़ा करना और तीसरा, इस राह में अगर कोई साथी मिले, तो उसके साथ आगे का सफर तय करना।

सोशल मीडिया पर एक के बाद एक पोस्ट करते हुए चंपई सोरेने कहा कि अपने सार्वजनिक जीवन की शुरुआत में औद्योगिक घरानों के खिलाफ मजदूरों की आवाज उठाने से की थी। इसके बाद झारखंड आंदोलन तक, मैंने हमेशा जन-सरोकार की राजनीति की है। आदिवासियों, मूलवासियों, गरीबों, मजदूरों को उनका अधिकार दिलवाने का प्रयास करता रहा। हर पल जनता के लिए उपलब्ध रहा। जिन्होंने झारखंड राज्य के साथ, अपने बेहतर भविष्य के सपने देखे थे।

न किसी के साथ गलत किया, न होने दिया

सोरेन ने आगे कहा कि अभूतपूर्व घटनाक्रम के बाद 31 जनवरी को मुझे झारखंड के 12वें मुख्यमंत्री के तौर पर राज्य की सेवा करने के लिए चुना गया। पहले दिन से लेकर आखिरी दिन (3 जुलाई) तक, मैंने पूरी निष्ठा के साथ अपने कर्तव्यों का निर्वहन किया। हमने जनहित में कई फैसले लिए, हर किसी के लिए सदैव उपलब्ध रहा। मेरे सीएम रहते जो काम मैंने किए है जनता उसका मूल्यांकन करेगी। चंपई सोरेन ने कहा कि झारखंड का बच्चा-बच्चा जानता है कि अपने कार्यकाल के दौरान, मैंने कभी भी, किसी के साथ न गलत किया, न होने दिया। जब सत्ता मिली, तब बाबा तिलका मांझी, भगवान बिरसा मुंडा और सिदो-कान्हू जैसे वीरों को नमन कर राज्य की सेवा करने का संकल्प लिया था।

मैं मुख्यमंत्री था, पर मेरे कार्यक्रम कैंसिल करवाए

इसी बीच, हूल दिवस के अगले दिन, मुझे पता चला कि अगले दो दिनों के मेरे सभी कार्यक्रमों को पार्टी नेतृत्व द्वारा स्थगित करवा दिया गया। इसमें एक सार्वजनिक कार्यक्रम दुमका में था, जबकि दूसरा कार्यक्रम पीजीटी शिक्षकों को नियुक्ति पत्र वितरण करने का। पूछने पर पता चला कि गठबंधन द्वारा 3 जुलाई को विधायक दल की एक बैठक बुलाई गई है, तब तक आप सीएम के तौर पर किसी कार्यक्रम में नहीं जा सकते।

उन्होंने कहा कि क्या एक मुख्यमंत्री के लिए लोकतंत्र में इससे अपमानजनक कुछ हो सकता है कि कोई दूसरा व्यक्ति कार्यक्रम को स्थगति करवा दे? अपमान का यह कड़वा घूंट पीने के बावजूद मैंने कहा कि नियुक्ति पत्र वितरण सुबह है, जबकि दोपहर में विधायक दल की बैठक होगी, तो वहां से होते हुए मैं उसमें शामिल हो जाऊंगा। लेकिन, उधर से साफ इंकार कर दिया गया।

इस घटना ने मुझे तोड़ दिया

पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि पिछले चार दशकों के अपने बेदाग राजनीतिक सफर में, मैं पहली बार, भीतर से टूट गया। समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूं. दो दिन तक, चुपचाप बैठ कर आत्म-मंथन करता रहा, पूरे घटनाक्रम में अपनी गलती तलाशता रहा। सत्ता का लोभ रत्तीभर भी नहीं था, लेकिन आत्म-सम्मान पर लगी इस चोट को मैं किसे दिखाता? अपनों द्वारा दिए गए दर्द को कहां जाहिर करता?

ये अपमान असहनीय था

उन्होंने कहा कि अपमानजनक व्यवहार से भावुक होने के बाद मैं खुद को संभालने मं लगा था। लेकिन, किसी को सिर्फ कुर्सी से मतलब था। मुझे ऐसा लगा, मानो उस पार्टी में मेरा कोई वजूद ही नहीं है, कोई अस्तित्व ही नहीं है, जिस पार्टी के लिए मैंने अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। इस बीच कई ऐसी अपमानजनक घटनाएं हुईं, जिसका जिक्र फिलहाल नहीं करना चाहता। इतने अपमान एवं तिरस्कार के बाद मैं वैकल्पिक राह तलाशने के लिए मजबूर हो गया और उसी का फैसला करूंगा।