रविवारीय गपशप :Google Confusion: ढूंढा दुबे साहब को मिल गए धीमान साहब!

रविवारीय गपशप :Google Confusion: ढूंढा दुबे साहब को मिल गए धीमान साहब!

पुराने जमाने में पता पूछने का काम राहगीरों से किया जाता था , यदि उत्साही राहगीर होता तो लपक के पूछे गये पते तक पहुँचा के भी आ जाता था । पते पूछने के दूसरे ठिकाने होते थे , चाय और पान की दुकानें , पर अब ये सारे काम “गूगल” कर रहा है अलबत्ता कई बार पता किए जाने वाले ठिकाने में इतने घुमावदार रास्ते आते हैं कि इंसान हैरान हो जाता है । हम भोपाल में चार इमली में जहां रहा करते थे , उसकी लोकेशन डालने पर गूगल के सहारे चला आदमी घर की पिछली गली में नमूदार हुआ करता था । पिछले दिनों किसी अख़बार में खबर भी छपी थी कि गूगल के बताये रास्ते में सड़क के बजाए नाला आ जाने से कार बहते बहते बची ।

इंदौर की एक पुरानी मज़ेदार घटना याद आ रही है ।उन दिनों मैं इंदौर में संभागीय अपर आयुक्त के तौर पर पदस्थ था और श्री प्रवीण दुबे साहब मुख्य वन संरक्षक के पद पर पदस्थ थे । सरकारी कामकाज के सिलसिले में मेरा उनसे कभी कभार मिलना जुलना हुआ भी करता था , पर हम से ज़्यादा मुलाक़ात मेरी श्रीमती और श्रीमती दुबे की महिला मण्डल के आयोजित होने वाली क्लब में हुआ करती थी । दुबे साहब के बारे में एक और बात मशहूर थी कि वन और प्रकृति के बड़े विशेषज्ञ और प्रेमी होने के अलावा उन्हें “ज्योतिष” का भी बड़ा अच्छा ज्ञान है , और इस विषय पर उनसे प्रशासनिक जगत के बड़े लोग परामर्श भी लिया करते थे । उन दिनों हम अपनी बड़ी बेटी के विवाह के लिए संबंधों की देखा-देखी का काम सहेजे हुए थे , तभी एक शाम रेसीडेंसी कोठी में “ईवनिंग वाक” के दौरान मेरी श्रीमती जी ने मुझसे कहा कि आप दुबे साहब को बिटिया की कुण्डली क्यों नहीं दिखाते हो ? सुना है उनसे तो बड़े-बड़े लोग पूछताछ किया करते हैं । मैंने जवाब में कहा कि उनसे तो कई महीनों से मेरी मुलाक़ात नहीं हुई है ना जाने अब वे कहाँ हैं ? श्रीमती जी बोलीं अरे फ़ोन लगा कर पता कर लो , इंदौर में हों तो चल कर मिल लेते हैं ।

ज्योतिष विषय ऐसा है कि दुनियादारी के सीधे सादे गणित में यक़ीन करने वाला भी उसकी चकाचौंध से बच नहीं पाता है । मैंने मन ही मन सोचा कि बुराई क्या है , मिल लेते हैं और अगले साप्ताहिक अवकाश दिवस में रविवार की शाम मैंने उनके मोबाइल फ़ोन पर घण्टी लगाई । दूसरी ओर से फ़ोन उठाते ही मैंने नमस्कार कर अपना परिचय दिया तो सामने से आवाज़ आयी कि अरे शर्मा जी आपको हम जानते हैं । मैंने कहा सर मैं सपरिवार आपसे मिलने आना चाहता हूँ , उन्होंने कहा ज़रूर आइये । मैंने पता पूछा तो उन्होंने कहा मैं अपनी लोकेशन भेज रहा हूँ , आप आ जायें । मैंने श्रीमती जी से चलने के लिए तैयार होने को कहा और ख़ुद जन्म कुंडली के दस्तावेज़ों की फाइल ढूँढने बैठ गया ।

थोड़ी देर बाद हम तैयार होकर नवरतन बाग़ की ओर निकल पड़े जो इंदौर में वन विभाग के दफ़्तर और रहवास की कालोनी है । छुट्टी का दिन था तो ड्राइवर था नहीं , ख़ुद ही कार चला रहा था , लिहाज़ा नक़्शे के बताये मार्ग अनुसार पतली पतली गलियों से होते हुए जिस मुक़ाम पर पहुँचे वहाँ बँगला तो था पर कोई था ही नहीं । दुबे साहब के मोबाइल नंबर पर फ़ोन लगाया और कहा पूछा कि आप कहाँ हैं तो वे बोले मैं तो घर पर ही हूँ । दुबारा लोकेशन माँगी , दुबारा ढूँढा और इस बार कालोनी की राह में चलते किसी सज्जन से भी पूछा और अंततः थोड़ी देर बाद बंगले के सामने पहुँचे । बँगले का मुख्य द्वार खुला था , हमने सीधे गाड़ी अंदर ली , और कार की हेडलाइट में देखा तो सामने पुरुषोत्तम धीमान साहब खड़े थे । मुझे लगा अरे लगता है ग़लत बँगले में आ गये , हम तो दुबे साहब को ढूँढ रहे हैं और ये तो धीमान साहब हैं । हालाँकि धीमान भी मेरे परिचित थे , मेरा बेटा और उनका बेटा बरसों पहले ग्वालियर में स्कूल में साथ पढ़े थे । मैं तब परिवहन में उपायुक्त प्रशासन था और वे ग्वालियर में डी.एफ़.ओ. हुआ करते थे । हम कार से उतरे तो धीमान साहब बोले अरे कब से आप फ़ोन लगा रहे हो , सीधा तो रास्ता है घर का ।

मैं समझ गया कि जिसे मैं दुबे साहब समझ कर बात कर रहा था वे धीमान साहब थे । ख़ैर परिचित तो हम पुराने थे ही , कुण्डली का बैग गाड़ी में ही छोड़ हम धीमान साहब के ड्राइंग रूम में बैठे , चाय और पकौड़े तैयार थे , जम के छके । पर चाय पीते पीते मैंने उनसे कह ही दिया कि दरअसल हम आपके यहाँ आये नहीं थे , हम तो दुबे साहब से मिलने आये थे । धीमान बोले “ मैं समझ तो गया था कि कुछ तो गफ़लत है , दरअसल पिछले महीने ही दुबे साहब का भोपाल ट्रांसफ़र हो गया है और उनकी जगह मैंने पदभार ग्रहण कर लिया है और जिस नंबर पर आप कॉल कर रहे थे वो सी.यू.जी. सिम है जो विभाग की ओर से मिलती है और चार्ज के साथ ही हैंड ओवर हो जाती है । हमने इस गफ़लत पर भी ठहाके लगाए , एक दूसरे के बच्चों के हाल जाने और जल्द फिर मिलने का वादा कर विदा ली , हाँ जाने से पहले मैंने धीमान साहब से उनका निजी मोबाइल नंबर लेकर सी.यू.जी. सिम वाला नंबर डिलीट कर दिया।