विशेष प्रसंग देखें -The Greatness of Shri Krishna Charit – स्त्रीजाति की सुरक्षा और सम्मान में एक विवेचना – शिक्षाविद-चिंतक श्री रमेशचंद्र चंद्रे
प्रस्तुति – डॉ घनश्याम बटवाल द्वारा
ज्ञात पौराणिक और प्रामाणिक तथ्यों के मुताबिक अवतारी पुरूष श्रीकृष्ण का अवतरण पांच हजार दो सौ साल के पहले हुआ । यूं तो सम्पूर्ण विश्व में श्रीकृष्ण को मान्यता है उनके व्यक्तित्व और जीवन दर्शन की महनीयता के लिये , उन्हें साक्षात देवता वा भगवान के रूप में हृदय से अंगीकार किया है स्वीकार किया है ।
पुरूष रूप में अवतरित होकर भगवान श्रीकृष्ण ने अपने सम्पूर्ण जीवन काल में जो चरित ब्रह्मांड के प्राणिमात्र के सम्मुख प्रस्तुत किया वह अदभुत है ।
आज जब वैज्ञानिक युग है विभिन्न स्तरों पर मूल्यांकन किया जाने का विधान है । पौराणिक और आध्यात्मिक आधार पर विराट स्वरूप श्रीकृष्ण का है और उनकी लीलाओं का दर्शन भी है , परंतु कतिपय प्रगति वादी पृथक दृष्टिकोण भी और शंका व्यक्त करते हैं ऐसे में जानना और समझना उचित प्रतीत होता है ।
सबसे महत्वपूर्ण तो यह कि महाभारत काल में कुरुक्षेत्र युद्ध में पांडवों के सारथी बनकर योगेश्वर श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जो उपदेश दिया वह साक्षात जीवन दर्शन का सत्य है और आज भी सर्वत्र स्वीकार्य है । यह गीतासार कर्म योग , ज्ञान योग और भक्ति योग के माध्यम से सबको प्रेरणा प्रदान करता है।
जानिए कथित प्रपंच की हक़ीकत
श्रीकृष्ण पर 16108 स्त्रियों के साथ विवाह करने का मिथ्या आरोप लगाना शामिल है , जबकि सच यह है कि-
*”स्त्रीजाति के सम्मान एवं सुरक्षा के प्रणेता थे युगंधर श्री कृष्ण*
कथा के अनुसार मथुरा में कंस के वध के पश्चात श्री कृष्ण ने अपने नाना राजा उग्रसेन को मथुरा का राजा बनाया, क्योंकि राजा उग्रसेन अतिवृद्ध एवं दुर्बल थे। इसलिए राज कार्य की संपूर्ण जिम्मेदारी श्री कृष्ण, बलराम और अक्रूर जी ने संभाली ।
कंस- वध के पश्चात कंस का ससुर महाबली जरासंध लगातार मथुरा पर आक्रमण कर रहा था और उसका एक सहयोगी राजा नरकासुर वह भी मथुरा पर अत्याचार करता था। नरकासुर ने हर आक्रमण के समय, मथुरा राज्य की स्त्रियों को उठाकर ले जाना शुरू किया।
इस प्रकार लगभग 16100 लड़कियां एवं विवाहित स्त्रियों को उठाकर वह ले गया एवं अपने राज्य में उन्हें बंदी बना दिया। इस घटना से संपूर्ण मथुरा में हाहाकार मच गया तथा वहां की जनता, अपनी बहन, बेटी, पत्नी और माता के लिए
श्रीकृष्ण पर दबाव बनाने लगे।
तत्कालीन विषम परिस्थितियों में श्रीकृष्ण ने न्याय सिद्धांत के आधार पर मथुरा की जनता की पुकार को महत्व देकर नरकासुर पर आक्रमण कर दिया तथा उसे हराकर उसके कब्जे से सभी 16100 स्त्रियों को मुक्त करा दिया।
किंतु अपहृत स्त्रियों के माता-पिता, भाई- बंधु, पति एवं अन्य सगे- संबंधी जो उन्हें वापस लाने के लिए आंदोलन कर रहे थे वह सभी उनके लौटने पर उन स्त्रियों को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हुए, उनका मानना था कि- जो स्त्री पराये स्थान पर रहकर आ गई है वह दुषित है वह पवित्र नहीं हो सकती। इसलिए वह हमारे परिवार में रहने काबिल नहीं! अतः हम उन्हें स्वीकार नहीं कर सकते। यह ध्यान देने वाली बात है कि तबकि सामाजिक स्थितियों में महिलाओं , युवतियों और स्त्री जाति कितनी विषम और प्रतिकूलता में थीं ,
परिवार जनों और समाज जनों की इन स्त्रियों , महिलाओं युवतियों के तिरस्कार की बात सुनकर श्री कृष्ण ने उन्हें विभिन्न शास्त्रों के उदाहरण देकर बहुत समझाने की कोशिश की किंतु वह लोग समझने के लिए तैयार नहीं थे। अब श्रीकृष्ण के सामने बड़ी विकट और असमंजस की स्थिति उत्पन्न हो गई।
किंतु उक्त विकट या विकराल स्थिति को देखकर श्रीकृष्ण भी यदि उन स्त्रियों को अनाथ छोड़ देते या अपने दायित्व से मुक्त हो जाते तो संपूर्ण मथुरा राज्य में वे स्त्रियां, जीविका उपार्जन के लिए दर-दर भटकती या पथ- भ्रष्ट हो सकती थी ? अतः एक न्याय प्रिय राजा की तरह विचार करते हुए उनके उद्धार हेतु श्रीकृष्ण ने यह घोषणा की कि- जिसका कोई स्वामी नहीं उसका मैं स्वामी रहूंगा अर्थात यह सभी स्त्रियां मेरे संरक्षण में रहेगी और उनके पति के नाम के रूप में मेरा नाम उनके जीवन के साथ जुड़ा रहेगा।
इसके साथ ही मथुरा राज्य के खर्चे से उनके निवास, जीविकोपार्जन और संरक्षण की व्यवस्था की गई।
चुंकि कंस वध के पश्चात श्री कृष्ण एक शक्तिशाली सम्पूर्ण व्यक्तित्व के रूप में उभरकर आए थे अतः पूरे मथुरा राज्य में उनके इस निर्णय को सहर्ष स्वीकार कर लिया गया ओर उन सभी 16100 स्त्रियों को सामाजिक पारिवारिक संरक्षण मिल पाया ।
इसके अतिरिक्त श्रीकृष्ण की आठ रानियां, रुक्मिणी, सत्यभामा, जामवंती, कालिंदी, मित्रबिंदा, सत्ता, भद्रा एवं लक्ष्मणा थी, जिसमें रुक्मणी और सत्यभामा पटरानी थी सभी ने श्री कृष्ण के इस महत्वपूर्ण और महिला संरक्षण के इस निर्णय को सहर्ष स्वीकार किया।
इसलिए श्रीकृष्ण पर 16108 रानियों के साथ विवाह करने का आरोप लगाने वाले इस सच को समझें मिथ्या और मनगढ़ंत प्रलापों से बचते हुए इस महान मिसाल के भावों को समझेंगे तो उचित होगा ।
इसके अतिरिक्त एक जानकारी और यह कि राधा से उनका विवाह कभी नहीं हुआ वैसे भी “राधा” का शाब्दिक अर्थ एवं भाव यह है कि, जो प्राणी मुक्ति के भाव से ईश्वर की आराधना करता है उसे “राधा” कहते हैं। इस प्रकार भगवान श्री कृष्ण की आराधना करने वाले सभी भक्त राधा की श्रेणी में आते हैं।
इस प्रकार से भगवान कृष्ण ने निराश्रित नारी- जाति के उद्धार के लिए एक साहस भरा कदम उठाया था और आगे चलकर महाभारत के समय धर्म की रक्षा के लिए अनेक नीतिगत एवं कूटनीतिक रणनीति से दुष्ट और दुराचारियों को युद्ध में पराजित कराया और अधर्म का नाशकर भारत में धर्म की स्थापना की। इसीलिए उन्हें “युगंधर कृष्ण” के नाम से संबोधित किया जाता है।
सनातन धर्म , हिंदू धर्म के साथ सभी धर्म के समस्त अनुयायियों मानने वालों को एवं अन्य को भी इस सच्चाई से अवगत होना चाहिए।
श्रीकृष्ण के जीवन चरित को और उनके द्वारा प्रदत्त गीता ज्ञान को जीवन में उतारना चाहिए ।
जन्माष्टमी के पावन पर्व पर बधाई ।
जय श्रीकृष्ण ।
प्रसंगवश – विशेष आलेख: जन्माष्टमी पर्व और परमात्मा श्रीकृष्ण