मेहगांव घटना : निर्दोष को सताना, ब्रह्म ह्त्या दोष और ब्राह्मण

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मेहगांव जिला धार में श्रीराम मन्दिर के पुजारी श्री अजय दुबे व उनके पुत्र शशांक दुबे की हत्या या आत्म हत्या की निष्पक्ष मजिष्ट्रीयल या सीबीआई जांच फरार अपराधियों को शीघ्र गिरफ्तार करने, इस अपराध में लिप्त थाना धामनोद के पुलिस कर्मियों को आरोपी  बनाने की मांग ब्राह्मण समाज द्वारा की गई है ,यह घटना कई दृष्टी से चिंतन के लिए बाध्य करती है   यह घटना मानवीय दृष्टी  मनुष्य समाज से इस बात के लिए भी सजग करती है कि बेवजह किसी निर्दोष को इतना भी प्रताड़ित मत करिए कि वह  त्रस्त होकर जीवन ही समाप्त कर ले .तब कानून आपको सजा दे ना दे आप निर्दोष की  मृत्य के कारण आत्मा के कटघरे से नहीं बच पायेंगे .यह एक तरह से ब्रह्म ह्त्या  का दोष है जिससे कोई मुक्त  नहीं हो सकता .और ब्रह्म ह्त्यादोष  ने भगवानों से लेकर राजाओं तक को इसकी सजा  भुगती थी .इतिहास और हमारी पौराणिक मान्यता  भी यही कहती हैं . ब्राह्मणों को आध्यात्मिक प्रशिक्षक माना जाता है, इसलिए, आपको ज्ञान और बुद्धि देने वाले शिक्षकों और शिक्षाविदों को निराश करने की कोशिश करना भी ब्रह्म हत्या दोष माना जाएगा। कुंडली में ब्रह्महत्या दोष के प्रभाव के बारे में , ब्राह्मणों का सम्मान करना और उनका आभार व्यक्त करना याद रखें ताकि आप कुंडली में ब्रह्महत्या दोष से पीड़ित होने से बच सकें। 

हिंदू धर्म में जिस ब्रह्म हत्या को पंच महापाप में गिना जाता है,’ब्रह्म हत्या दोष’ शब्द का अर्थ ब्राह्मण की हत्या या उसे नुकसान पहुँचाने के पाप से है .यह जाने अनजाने ही हुआ हो पर यह दोष कई पीढ़ियों को झेलना पड़ता है .क्या निर्दोष ब्राह्मणों की ह्त्या या आत्महत्या के लिए बाध्य करने वाले सजा और कानून की पकड से बच गए तो भी क्या वे चैन की  नींद सो पायेंगे . आत्मा की ग्लानी उनके सुख चैन को बैचेनी में  बदल कर रख देगी .और सबसे बड़ा कटघरा आत्मा का ही होता है जो गिल्ट के रूप में ताउम्र सालता  रहता है .हमारी पौराणिक मान्यता के अनुसार ब्राह्मण की हत्या को बड़ा पाप माना गया है. यानि जिस व्यक्ति को ब्रह्म का ज्ञान हो जो धर्म का काम करे , उसकीकीकि हत्या एक बड़ा दोष मानी गई है. जिसके लगने पर व्यक्ति के पूरे कुल का नाश हो जाता है और उसे जीवन में तमाम तरह के कष्ट झेलने पड़ते हैं. हिंदू मान्यता के अनुसार इस दोष के लगने पर आम आदमी के साथ देवता को भी कष्ट झेलना पड़ा है. त्रेतायुग में जिस ब्रह्म हत्या पाप के भागीदार न सिर्फ भगवान राम बल्कि उनके पिता भी बने थे,मान्यता के अनुसार जब भगवान राम लंका विजय के बाद प्रयागराज पहुंचे और उन्होंने भारद्वाज मुनि के दर्शन के लिए अपना संदेश भेजा तो उन्होनें उन पर ब्रह्म हत्या का दोष लगे होने के कारण मिलने से  मना कर दिया था .

यह बात बताती है भगवान् भी इस  दोष से  नहीं बच  सके थे .महाभारत में भी गुरु द्रोणाचार्य के मामले में ब्रह्म हत्या और गुरुदोषम का पाप कहा गया है .तब दो ब्राह्मण जो ना केवल  जाति से ही ब्राह्मण थे बल्कि वे तो कर्म से भी पुजारी ,और धर्म गुरु रहे स्व. श्री अजय दुबे और पुत्र शशांक दुबे की मृत्यु के कारण बननेवाले  लोग इस दोहरे  ब्रह्मह्त्या के  दोषी हुए.इस धटना का दोषी कोई भी हो .कारण कुछ भी रहे हों सवाल यह है . क्या उस गाँव के वे लोग उस ब्राह्मण माँ को देख पायेंगे , नजर मिला पायेंगे जिसका जवान बेटा और उसका सुहाग जिनकी वजह से चली गई .क्या आत्मा पर एम् गरीब ब्राह्मण परिवार की हाय का बोझ उन्हें जीने देगा ? यह घटना मानवीय दृष्टी  से इस बात के लिए भी सजग करती है कि बेवजह किसी निर्दोष को इतना भी प्रताड़ित मत करिए कि वह  त्रस्त होकर जीवन ही समाप्त कर ले .

बावीसा ब्राह्मण समाज का एक होनहार युवा और  एक पिता जो पंडित है ,जो मंदिर में देव सेवा कर रहा था सिर्फ शक और आरोपों की बली  चढ़ा दिया गया .बेबुनियाद शक की अंदरूनी वजह तो सिर्फ आरोप लगानेवाले ही जानते होंगे. मैं उन गाँव के  लोगों से सिर्फ यह जानना चाहती हूँ कि जो युवक CA की तैयारी इंदौर में रह कर करकरते हुए चोरी करने जा सकता है क्या ?जिसका भविष्य इतना उज्जवल था क्या वह इस तरह के काम करके अपने भविष्य को अन्धकार में डालेगा .कर्म हमारी मानसिकता को प्रभावित करते हैं ,तब क्या ब्राह्मण व्यक्ति इस तरह का  व्यवहार करेगा ?ब्राह्मण हिंदू समाज में एक वर्ण है। वेदिक और वेदिक के बाद के समय में, ब्राह्मण को पंडित का दर्जा दिया गया है .जो पंडित और गुरु के तरह काम करते है.

धर्म, संस्कृति, कला तथा शिक्षा के क्षेत्र में देश की आजादी और भारत राजनीति व इतिहास में इनका प्रशंसनीय योगदान भी रहा है.धर्मग्रंथों के अनुसार ब्राम्हण का मुख्य कार्य मंदिरों की देखभाल और खेती किसानी व जमींदारी करके जीवन यापन करना है .ब्राह्मण भारत में आर्यों की समाज व्‍यवस्‍था अर्थात् वर्ण व्यवस्था का सबसे ऊपर का वर्ण है। भारत के सामाजिक बदलाव के इतिहास में जब भारतीय समाज को हिन्दू के रूप में संबोधित किया जाने लगा, तब ब्राह्मण वर्ण, जाति में भी परि‍वर्तित हो गया। ब्राह्मण वर्ण अब हिन्दू समाज की एक जाति भी है। ब्राह्मण को ‘विप्र’, ‘द्विज’, ‘द्विजोत्तम’ कहे गए हैं तब विचारणीय यह है कि समाज ने जिसे ‘द्विजोत्तम’ कहा है वह कोई भी असामाजिक कार्य नहीं कर सकता है ?  .एक परिवार शक,झूठे आरोपों के चलते पूरी तरह बर्बाद कर दिए जाने

हिंदू धर्म में जिस ब्रह्म हत्या को पंच महापाप में गिना जाता है,’ब्रह्म हत्या दोष’ शब्द का अर्थ ब्राह्मण की हत्या या उसे नुकसान पहुँचाने के पाप से है .यह जाने अनजाने ही हुआ हो पर यह दोष कई पीढ़ियों को झेलना पड़ता है .क्या निर्दोष ब्राह्मणों की ह्त्या या आत्महत्या के लिए बाध्य करने वाले सजा और कानून की पकड से बच गए तो भी क्या वे चैन की  नींद सो पायेंगे . आत्मा की ग्लानी उनके सुख चैन को बैचेनी में  बदल कर रख देगी .और सबसे बड़ा कटघरा आत्मा का ही होता है जो गिल्ट के रूप में ताउम्र सालता  रहता है .हमारी पौराणिक मान्यता के अनुसार ब्राह्मण की हत्या को बड़ा पाप माना गया है. यानि जिस व्यक्ति को ब्रह्म का ज्ञान हो जो धर्म का काम करे , उसकी हत्या एक बड़ा दोष मानी गई है. जिसके लगने पर व्यक्ति के पूरे कुल का नाश हो जाता है और उसे जीवन में तमाम तरह के कष्ट झेलने पड़ते हैं. हिंदू मान्यता के अनुसार इस दोष के लगने पर आम आदमी के साथ देवता को भी कष्ट झेलना पड़ा है. त्रेतायुग में जिस ब्रह्म हत्या पाप के भागीदार न सिर्फ भगवान राम बल्कि उनके पिता भी बने थे,मान्यता के अनुसार जब भगवान राम लंका विजय के बाद प्रयागराज पहुंचे और उन्होंने भारद्वाज मुनि के दर्शन के लिए अपना संदेश भेजा तो उन्होनें उन पर ब्रह्म हत्या का दोष लगे होने के कारण मिलने से  मना कर दिया था .