Caste Census & RSS : ‘संघ’ ने जातीय जनगणना का समर्थन किया, इसे राष्ट्रीय एकीकरण के लिए महत्वपूर्ण बताया!
New Delhi : जातीय जनगणना की मांग को लेकर कांग्रेस ने मोर्चा खोल रखा है। अखिलेश यादव, तेजस्वी यादव जैसे नेता भी इसे लेकर मुखर हैं। बीजेपी की अगुवाई वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के घटक जनता दल (यूनाइटेड) और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के प्रमुख चिराग पासवान से लेकर यूपी में अपना दल (सोनेलाल) की प्रमुख अनुप्रिया पटेल तक जातीय जनगणना की मांग के साथ दिखे हैं। ओबीसी कल्याण को लेकर संसदीय कमेटी की हालिया बैठक में जब विपक्षी दलों ने जातीय जनगणना का मुद्दा उठाया तब जेडीयू जैसे एनडीए के घटक दल ने भी इस मांग का समर्थन किया था।
जातीय जनगणना सालों बाद ऐसा मुद्दा है, जिसे लेकर बीजेपी और मोदी सरकार न सिर्फ विपक्ष बल्कि सहयोगियों का भी दबाव झेल रही हैं। दोनों ने इस मुद्दे पर न तो हां किया और न इससे इनकार किया। जातीय जनगणना के मुद्दे पर इसी असमंजस में फंसी बीजेपी को अब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्टैंड ने रास्ता दिखा दिया।
केरल के पलक्कड़ में तीन दिन तक चली समन्वय बैठक के बाद संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने जातिगत प्रतिक्रियाओं को संवेदनशील मुद्दा बताते हुए कहा कि यह राष्ट्रीय एकीकरण के लिए महत्वपूर्ण है। उन्होंने जातीय जनगणना के समर्थन का संकेत देते हुए यह भी कहा कि इसका इस्तेमाल चुनाव प्रचार और चुनावी उद्देश्यों के लिए नहीं किया जाना चाहिए। संघ से हरी झंडी मिलने के बाद अब जातीय जनगणना की गेंद बीजेपी के पाले में है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) हमेशा से जातिविहीन हिंदू राष्ट्र की बात करता रहा है। उसकी संकल्पना रही कि जातियों में बंटा समाज राष्ट्र के विकास और सुरक्षा की दृष्टि से उचित नहीं होता। उसके अनुसार, यदि राष्ट्र को आर्थिक-शैक्षिक दृष्टि से मजबूत बनाना है तो समाज में लोगों की जातिगत पहचान को महत्त्व नहीं दिया जाना चाहिए। वह लोगों से अपनी जातिगत पहचान को महत्त्व देने की बजाय भारतीय या सनातनी पहचान को महत्त्व देने का आग्रह करता रहा है। यही कारण है कि जब संघ ने देश में चल रही जातिगत जनगणना के मुद्दे को अपना समर्थन दिया तो इससे उन लोगों को हैरानी हुई जो संघ को अपने सिद्धांतों के प्रति दृढ़ रहने वाला संगठन मानते रहे हैं। जातिगत जनगणना के मुद्दे पर संघ का बदला रुख वास्तव में आश्चर्यजनक है।
जातियां भारतीय समाज की एक कटु सच्चाई
संघ का जातिगत जनगणना को दिया गया यह समर्थन यह बताता है कि वह देश की नई सियासी चाल को समझ रहा है। संघ समझ रहा है कि जातियां भारतीय समाज की एक कटु सच्चाई हैं। यह भी सच है कि अपनी जातिगत पहचान को लेकर इस समय लोगों के अंदर एक विशेष तरह का आकर्षण देखा जा रहा है। ऐसे में यदि वह जातिगत जनगणना का विरोध करता है, तो विपक्षी दलों के द्वारा उसे दलित-पिछड़ी जातियों के विकास का विरोधी करार दिया जा सकता है। यही कारण है कि संघ ने जातिगत जनगणना के मुद्दे का निःसंकोच समर्थन किया।
बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान आरक्षण की समीक्षा संबंधी बयान देकर संघ राजनीतिक नुकसान देख चुका है। यदि एक बार फिर वह जातिगत जनगणना के विरोध में कुछ कहता है, तो विपक्षी दल इसे भाजपा की असली सोच बताते हुए इसका विरोध कर सकते है। चार राज्यों के प्रस्तावित विधानसभा चुनावों में इससे बीजेपी को बड़ा नुकसान हो सकता था। यही कारण है कि संघ ने इस मुद्दे पर जन भावनाओं को देखते हुए इसका समर्थन कर दिया।
संघ में जाति को लेकर भी उठे सवाल
इससे पहले वामपंथी विचारक भी संघ के अंदर पिछड़ी-दलित जातियों के लोगों की उच्च पदों पर पर्याप्त भागीदारी न होने का सवाल उठाते रहे हैं। लेकिन, तब भी संघ कभी विचलित नहीं हुआ। बल्कि, संघ ने इन आरोपों का हमेशा ही खंडन किया। उसका कहना रहा है कि वह कभी किसी व्यक्ति को जाति के रूप में नहीं देखता। संघ के वरिष्ठ पदाधिकारियों को भी कभी अपने आसपास के लोगों की जातियों के बारे में कोई जानकारी नहीं होती। इसका सबसे बड़ा कारण यही है कि संघ में किसी की जाति को देखने की संस्कृति नहीं है। वह अपने कार्यकर्ताओं-पदाधिकारियों का मूल्यांकन उनके सामाजिक कार्यों और संघ में दिए गए सेवाकाल के आधार पर करता है। लेकिन, जब संघ पर ऐसे आरोप लगे, तब यही देखा गया कि संघ के कई बेहद महत्त्वपूर्ण और शक्तिशाली पदों पर विभिन्न जातीय समुदायों के लोग बैठते रहे हैं।