रविवारीय गपशप:सचमुच गणेश जी ने ही समय पर प्रेरणा और सहायता की वरना मुश्किल होनी तय थी!

रविवारीय गपशप:सचमुच गणेश जी ने ही समय पर प्रेरणा और सहायता की वरना मुश्किल होनी तय थी!

 

अब तो जगह जगह गणपति विराज गये हैं , अगले दस दिनों तक गणपति की आराधना और भक्ति की धूमधाम रहेगी । गजनायक हमारे मन में ऐसे समाये हैं कि कभी इस त्योहार के बहाने तिलक ने आज़ादी के संग्राम की संकल्पनाएँ रचीं थीं । गणेश प्रथम पूज्य देव हैं और किसी भी देव की आराधना के पहले उनकी पूजा होती है । आज भी हमारे घरों में मंगल कार्य की पहली पाती भगवान गणेश को ही अर्पित की जाती है । कहते हैं प्रसिद्ध वैज्ञानिक राजा रमन्ना जो भौतिक शास्त्र के प्रखर विद्वान और परमाणु विज्ञानी थे , हमेशा अपने ब्रीफ़केस में गणपति की छोटी सी प्रतिमा रखा करते थे । गणपति गणनायक हैं , उन्हें विघ्नों का स्वामी भी कहते हैं और विघ्न हर्ता भी ।

विदिशा में जब मेरी पदस्थापना हुई तो मुझे पता लगा वहाँ गणेश जी का एक मंदिर है , जिन्हें “ बाढ़ वाले गणेश “ के नाम से जाना जाता है । इसकी भी एक रोचक कथा है । विदिशा में प्रवेश करते ही रंगई पुल है , इसके पास बेतवा के किनारे इन्ही दिनों में गणेश जी की प्रतिमा की स्थापना की गई थी । अचानक तेज़ पानी गिरा और नदी में बाढ़ आ गई , आसपास का सारा इलाक़ा पानी से सराबोर हो गया । बाढ़ के तेज पानी ने सब कुछ बहा दिया पर संयोग से गणेश की प्रतिमा नहीं बही । लोगों ने इसे चमत्कार की तरह लिया और आज वहाँ एक बड़ा ही सुंदर मंदिर है । प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री हर साल इसके समारोह में शामिल होते हैं और पूजन हवन और आमजन के भोजन भंडारे का विशाल कार्यक्रम संपन्न होता है ।

विदिशा में अपनी पोस्टिंग के दौरान इनके दर्शनों और कार्यक्रम में शामिल होने का मुझे भरपूर मौक़ा मिला । ऐसे ही अवसर का एक दिलचस्प क़िस्सा याद आ रहा है । मंदिर में भण्डारे का कार्यक्रम आयोजित होना था । कलेक्टर होने के नाते मैंने आयोजकों से कार्यक्रम के बाबत अपनी भूमिका पूछी तो मुझे बताया गया कि ये तो निजी कार्यक्रम है सरकारी नहीं , आप तो बस भोजन के लिए पधार जाना । मैंने अपने अधीनस्थ स्टाफ से भी पूछताछ की तो कहा गया कि यद्यपि माननीय मुख्यमंत्री और उनकी धर्मपत्नी स्वयम् कार्यक्रम में आते हैं , पर इसके इंतज़ामात मंदिर समिति के लोग ही करते हैं , हम तो ट्रेफ़िक और साफ़सफ़ाई के इंतज़ामों तक ही सीमित रहते हैं । बार बार पूछने पर भी यही जवाब मिला तो मैं निश्चिंत हो गया । कार्यक्रम वाले दिन मुझे लगा कि VIP के आने से पहले सब कुछ देख लिया जाये सो मैं अलसुबह अपने ए.डी.एम. त्रिवेदी और तहसीलदार अरुण के साथ ज़िले के एस. पी. श्री चन्द्रवंशी को लेकर मंदिर पहुँच गया । मंदिर पहुँच कर हम आने और जाने के मार्ग तथा गाड़ियों के पार्किंग के बारे में चर्चा कर ही रहे थे कि अचानक बादल घिर आए । लोगों के भोजन के पंगत के इन्तज़ाम के लिए टेंट लगे थे पर पानी के रोकने के लिए वे पर्याप्त नहीं थे , शायद ठण्ड के दिनों में पानी के आने की कल्पना समिति के लोगों ने भी ना की होगी । व्ही.आई.पी. के आने का समय होने वाला था और कार्यक्रम के स्थल पर पानी का अंदेशा देख हमारे हाथ पैर फूल गये समिति के ज़िम्मेदार लोग मेरे पास आये और बोले कलेक्टर साहब बतायें अब क्या करें ? मुझे याद आया मुझे सबने कहा था कि आप तो बस भोजन के लिए पधार जाना बाक़ी सब इंतिज़ाम हो जाएँगे पर असल बात तो यही है कि अचानक आयी परिस्थिति की व्यवस्थाएँ तो प्रशासन को ही करनी होती हैं । मैं अपने अमले को साथ लेकर दौड़ा , आसपास जगह देखी , मंदिर के पास ही एक ढाबा नुमा होटल था । होटल के मालिक से बात की , गुज़ारिश की कि तुम्हारी जगह दे दो , बेशक उसकी भरपाई के लिए समिति के लोग पैसे देने तैयार थे पर मालिक मुश्किल से ही माना , पर मान गया और उसकी जगह दिन भर के लिए किराए पर ले ली गई । मैंने गणेश जी को प्रणाम किया और पानी के भारी भरकम रूप लेने के पहले ही खाने के इंतज़ामों को उस ढाबे में शिफ्ट कर दिया । थोड़ी ही देर में माननीय मुख्यमंत्री सपरिवार पधारे , पानी को देख थोड़ा चिंतित थे , पर व्यवस्थाएँ बखूबी हो चुकी थीं सो सब कुछ ठीक रहा । कार्यक्रम आरंभ हुआ और कुछ घंटों बाद तो उस छोटे से ढाबे पर भोपाल के अतिविशिष्ट लोगों का जो आना जाना शुरू हुआ तो देख के लगा सचमुच गणेश जी ने ही समय पर प्रेरणा और सहायता की वरना मुश्किल होनी तय थी ।