आखिर लौकी से क्यों डरता है इंसान!
लौकी की इजाद क्यो की होगी भगवान ने ? इसकी दो वजह हो सकती है।पहली बात तो ये कि वो यह चाहते हों कि औरतो के पास कम से कम एक आध तो ऐसा मारक हथियार तो हो ही जिससे वो आदमियों को परास्त कर सके।दूसरी शायद वो खुद ही औरत हो।औरत लौकी बनाये बिना रह नही सकती।लौकी हमारी दुनिया मे है इसलिये हमे ये मान लेना चाहिये कि भगवान है और वह औरत ही है।
लौकी नाराजगी जताने का सबसे कारगर तरीका है औरतो का। थाली मे लौकी देखते ही बेवकूफ से बेवकूफ आदमी ये समझ जाता है कि उससे कोई बडी चूक हो चुकी। आदमी तूफान से नही डरता। बारिश उसके कदम रोक नही सकती।पर लौकी! लौकी किसकी भी सख्त जान आदमी की साँस उखाड सकती है। आदमी भूत से, राहू, केतु, शनि से डरे या ना डरे लौकी से तो डरता ही है।
आदमी लौकी की वजह से ही दबता है अपनी बीबी से। कायदे से रहता है। कोशिश करता है कि बीबी को नाराज होने का कोई मौका ना दे। आदमी को तमीज सिखाने का क्रैडिट यदि किसी को दिया जा सकता है तो वो लौकी ही है।
मेरी यह समझ मे यह बात कभी आयी नही कि लौकी से कैसे निपटें।लौकी आती है थाली में तो थाली थरथराने लगती है।रोटियाँ मायूस होकर किसी कोने मे सिमट जाती हैं।जीभ लटपटा जाती है। आप अचार, चटनी, पापड़ या दही के भरोसे हो जाते हैं। हर कौर के बाद पानी का गिलास तलाशते हैं आप। हाथ पाँव ठंडे पड़ने लगते हैं। आपको लगने लगता है कि आपकी तबियत खराब है। आप आई सी यू मे भर्ती हैं। बंदा डिप्रेशन मे चला जाता है। दुनिया वीरान वीरान सी महसूस होती है। लगता है कुछ भी अच्छा है नही दुनिया में। कुछ अच्छा होने की कोई उम्मीद बाकी नहीं रह जाती। मन गिर जाता है। लगता है अकेले पड़ गये हैं। किसी सुनसान बियाबान मे अकेले छूट जाने का अहसास होता है। थाली एक गहरे कुएं में बदल जाती है और आप बहुत गहरे गिरते जाते हैं।
दरअसल लौकी, लौकी नही होती, वो आपकी बीबी की इज्जत का सवाल होती है। आप पूरी हिम्मत करके लौकी का एक एक निवाला गले से नीचे उतारते है। बीवी सामने बैठी होती है। जानना चाहती है लौकी कैसी बनी।आप बीवी का मन रखने के लिये झूठ बोलना चाहते हैं पर लौकी झूठ बोलने नहीं देती। लौकी की खासियत है। ये इसे खाते हुए आदमी हरीशचन्द्र हो जाता है। आप चाहते हुये भी लौकी की तारीफ नहीं कर पाते।
मेरा ख्याल से बंदे को शादी करने के पहले यह पता लगाने की कोशिश जरूर करनी चाहिये कि उसकी होने वाली बीवी लौकी से प्यार तो नहीं करती। वैसे ऐसी लड़की मिल भी जाये तो इसकी कोई ग्यारंटी नहीं कि शादी होने के बाद उसका झुकाव लौकी की तरफ नहीं हो जायेगा। दुनिया मे ऐसी लड़की अब तक पैदा ही नहीं हुई है जो बीवी की पदवी हासिल कर लेने के बाद पति को सबक सिखाने के लिये लौकी का सहारा लेने से परहेज करे।
जब तक जहर इजाद नही हुआ था तब तक आदमी दुश्मनो को मारने के लिये लौकी का ही इस्तेमाल किया करता था।लम्बे टाईम से टिके मेहमान को दरवाजा दिखाने के लिये लौकी से बेहतर और कोई तरीका नहीं। थाली में दूसरे, तीसरे वक्त लगातार लौकी के दर्शन कर आने वाला कितना भी बेशर्म हो। समझ जाता है कि अब चला चली का वक्त आ गया है।
लौकी होती है शनि जैसी।शनि की परदादी है ये।हर एक की कुंडली में बैठे है शनि महाराज। उनसे बचना मुहाल है। शनि को जब आना हो वो आकर रहते है। वो आते है और आपकी वॉट लगा देते है। ऐसी ही कहानी लौकी की है, उसे आपकी थाली में यदि आना है तो वो आयेगी। वो आयेगी और आपका जीना और खाना दोनों खराब कर देगी।
पर एक तारीफ तो करनी ही पडेगी इस लौकी की। न्यायप्रिय होती है ये। सब को एक सा दुख देती है। स्वाभिमानी भी होती है ये। अपने मूल स्वभाव और कर्तव्यों से कभी नहीं डिगती। लाख मसाले, तेल डाल दें आप इसमें। ये पट्ठी टस से मस नहीं होती। आप मर जायें सर पटक कर पर लौकी हमेशा लौकी ही बनी रहती है।
लौकी खाना कोई नहीं चाहता, पर इस धरती पर पैदा हुए हर आदमी को लौकी खिलाई जाती है। लौकी का रायता, लौकी का हलवा, लौकी खिलाने के वैसे वाले ही बहकावे हैं जैसे बचपन में अम्मा गुलाबजामुन के अंदर कुनैन की गोली रखकर खिला दिया करती थी।
लौकी इस बात का प्रतीक है कि बुरे दिन कैसे होते है। लौकी खाते वक्त जो आदमी धीरज रख सकता है वो किसी भी कठिनाई से पार पा सकता है। ये सहनशीलता सिखाती है। आदमी विनम्र हो जाता है इसे खाते हुए। सदाचारी भावनायें उबाल मारने लगती है मन में। यही वो गुण है जो आपको ऊँचाई पर ले जाते हैं।
एक बात और जो मेरी समझ मे कभी नही आई कि लौकी खाने से ही क्लोरेस्ट्राल क्यो कम होता है? ये भी भगवान का मजाक ही है आदमी के साथ।ये काम गुलाब जामुन को भी सौंप सकता था वो।पर ऐसा किया नहीं उन्होंने। जानबूझकर लौकी को ही सौंपी ये जिम्मेदारी। यही बात काफी है यह मानने के लिये कि यदि भगवान है तो वो कोई ऐसी झगड़ालू औरत है जिसे आदमियों की जात पसंद नही।यदि ऐसा नहीं तो वो शर्तिया बेहद मज़ाक़िया है।