Wall Collapse Near Mahakal Temple : असमय काल कवलित हुई 2 अनमोल जिंदगियां, जिम्मेदार कौन?
उज्जैन से निरुक्त भार्गव की विशेष रिपोर्ट
ऐसा पहली बार हो रहा है कि इस फोरम पर मैं महाकाल जी से साष्टांग नतमस्तक होकर और नाक रगड़कर क्षमा मांग रहा हूं. मेरी ये पोस्ट उन श्रद्धेय गुरुजनों के निर्देशों और अनेकानेक हितचिंतकों की सलाह का भी घोर उल्लंघन है, जो चेताते रहते हैं कि दूसरों को मैदान संभालने दो, क्योंकर आफतों को बुलावा भेजते रहते हो…निकट के परिजनों के विलापों और प्रलापों का हवाला देना तो मानों व्यर्थ हो चला है…
ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर परिसर को दस गुना विस्तारित करने और उसका सौंदर्यीकरण करने के नाम पर काफी सारे प्रोजेक्ट्स भिन्न-भिन्न एजेंसियों द्वारा अमल में लाए जा रहे हैं! ये जरूर खोज का विषय है कि इसका “मास्टर प्लान” कब, कहां, किसने, क्यों और कैसे मंजूर किया? आखिर पूरे प्रोजेक्ट के अलग-अलग चरणों का निर्धारण, उसके बजट की व्यवस्था और कोई “डेड लाइन” तो तय की ही गई होगी…?
क्या कारण हैं कि बे-हिसाब जनधन से विकसित किए जा रहे, कथित रूप से, बे-सिर-पैर के ये प्रोजेक्ट लगातार आलोचनाओं के केंद्र में हैं? प्रमुख जनप्रतिनिधियों को किस वजह से सार्वजनिक जीवन में कचोटा जा रहा है?
श्राद्ध पक्ष के दसवें दिन संध्या समय दो मनुष्यों का काल-कवलित हो जाना और कम-से-कम इतनी ही संख्या के लोगों का हताहत होना क्या संकेत दे रहा है? माना कि ताज़ा घटनाक्रम महाकालेश्वर मंदिर से कोई 30 फिट दूरी पर हुआ, लेकिन इसके कारणों की तह में जाएं, तो प्रत्यक्षदर्शी इसे प्राकृतिक प्रकोप नहीं मान रहे हैं!
कभी दो लोगों की असामयिक मौत, कभी भस्मारती का अग्निकांड और उसमें हताहत लोग, कभी सप्त ऋषियों की मूर्तियों का धराशाई होना और सोमवती अमावस्या पर भस्मारती के दौरान 36 श्रद्धालुओं की मृत्यु…क्या ये सब प्रसंग भुला दिए जाने चाहिए? क्या इन्हें भगवान की लीलाओं का परिणाम स्वीकार कर लिया जाना चाहिए? और ये भी क्या कि इसमें पार्टी पॉलिटिक्स को महत्व दिया जाना चाहिए?
इस तथ्य से मैं तो सहमत नहीं हो सकता कि शुक्रवार शाम को घटित मामला बिगड़ैल मौसम की देन है! जब श्री महाकाल महालोक में एक-के-बाद-एक सप्तऋषियों की मूर्तियां अपने स्थान से धूल चाटने के लिए अभिशप्त कर दी गई थीं, तो वो ही राग दोहराया गया था, “प्राकृतिक प्रकोप”!
जिम्मेदारों को बहुत खटकेगा, लेकिन ये अकाट्य सत्य है कि जिस बाउंड्री वॉल के एक हिस्से ने दो ज़िंदगी लील लीं, उसके कथानक का पोस्टमार्टम किया ही जाएगा! रेस्क्यू ऑपरेशन, इंस्पेक्शन, कंपनसेशन और इंक्वायरी के शगूफे कब तक बर्दाश्त किए जा सकते हैं?
भीषण बात ये है कि सार्वजनिक जीवन में नेतानगरी और कथित तौर पर शासकीय पदों का ओहदा प्राप्त “माननीय” सज्जन क्यों अपने मान-सम्मान से वंचित होते जा रहे हैं…???