Administrative Initiative: चिरंजीवी अभियान
हमारी सड़क दुर्घटनाओं का ग्राफ संसार में सबसे भयानक देशों में शामिल है। प्रतिवर्ष लाखों परिवार तबाह हो रहे हैं। भारत सरकार इस मुद्दे पर सतत कार्य कर रही है पर जन जागरूकता के बिना सुधार कठिन है। पिछले हफ़्ते मीडियावाला के इसी कॉलम में मैंने अपनी दुर्घटना की यादें आपसे साझा की थीं। आज की कड़ी उससे आगे की कथा है .
हमारे यहाँ सड़कों के जाल बिछ गये और वाहनों की बाढ़ आ गई पर नहीं आई सड़कों पर चलने और वाहन चलाने की तमीज़ और शऊर। नागरिक ज़िम्मेदारी तो पढ़े लिखे विशिष्ट जन भी उठाने को तैयार नहीं तो जन साधारण ही क्यों यह बोझ उठाने लगा। चालक लाइसेंस की प्रक्रिया इतनी हास्यास्पद है कि उस पर कोई रोता तक नहीं। यातायात के नियम पाठ्यक्रम का हिस्सा नहीं .
शाजापुर कलेक्टर के रूप में मेरा कार्यालय और बँगला दोनों आगरा मुंबई राजमार्ग पर होने से सड़क दुर्घटना एक नित्य घटना थी। वर्षों पूर्व इसी ज़िले में पंद्रह अगस्त के दिन सड़क दुर्घटना से आक्रोशित भीड़ ने क़ानून अपने हाथ में ले लिया था और डीएम,एसपी भीड़ और शासन दोनों के आक्रोश का शिकार हुए थे .अब मैं कलेक्टर था और दुर्भाग्य को दोहराते हुए नहीं देखना चाहता था।
मैंने ट्रैफ़िक,पुलिस ,परिवहन ,PWD ,NH आदि अधिकारियों की बैठक बुलाई और सड़क दुर्घटनायें रोकने के संकल्प के साथ ज़िम्मेदारियाँ बाँटी। सभी विद्यालयों में यातायात के दिशा निर्देश और संकेत चिन्ह दीवारों पर अंकित कराये। प्रार्थना के समय नियमित रूप से सावधानियाँ बच्चों को बताई जाने लगी। सभी निजी वाहनो के ड्राइवरों का स्वास्थ्य परीक्षण विशेषकर आँखों की जाँच की गई। बस और ट्रक मालिकों को सप्रेम बताया गया कि ज़िले में उनके वाहन से दुर्घटना हुई तो ड्राइवर के साथ वे भी अभियुक्त होंगे, यदि वाहन मैंटेन नहीं पाया गया। ओवर लोडिंग सख़्ती से रोक दी गई।
अच्छी बात यह रही कि पुलिस और परिवहन विभाग ने लीड ली। शेष सब ने सहयोग किया। हमारे ज़िले में दुर्घटनायें 80 प्रतिशत तक कम हों गई।
इस समूचे अभियान को नाम दिया गया ‘चिरंजीवी अभियान’ जिसने कितने ही चिरंजीवों को बचा लिया। प्रदेश के परिवहन विभाग ने भी शाजापुर के प्रयासों की खुलकर सराहना की।