खंड-खंड यात्रा कर नर्मदा की अखंड अमृत धारा बहा गए वेगड़ जी…

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खंड-खंड यात्रा कर नर्मदा की अखंड अमृत धारा बहा गए वेगड़ जी…

मां नर्मदा के सौंदर्य को न तो किताबों में, न ही चित्रों में और न ही दिलों में समेटा जा सकता है। पर अमृत लाल वेगड़ तो प्रत्यक्ष तौर पर नर्मदा पुत्र ही रहे हैं, जिनके चित्र, शब्द और भाव मां नर्मदा के सौंदर्य से पाठकों के दिल को सराबोर कर देते हैं। नर्मदा शब्द संसार में डुबकी लगाकर फिर पाठक इतना अमृतमयी हो जाता है कि मां नर्मदा के किनारे ही उसका मन विचरता रहता है। मां नर्मदा तीर बसी संस्कारधानी में जन्मे और संस्कारधानी से ही विदा हुए वेगड़ जी वास्तव में मां नर्मदा के वह लाल थे, जिनसे मिलकर हर व्यक्ति अमृतमयी हो जाता था। उन्हें याद करने का उद्देश्य यही है कि आज यानि 3 अक्टूबर को उनकी जन्म जयंती है। और उनकी पुस्तकें पढ़कर मां नर्मदा में डुबकी न लगा पाएं, तो उनको याद कर ही खुद को मां नर्मदा के करीब महसूस किया जा सकता है। अमृत लाल वेगड़ ने खंड-खंड नर्मदा की परिक्रमा कर अखंड अमृत की धारा बहाई है, जिसका आस्वादन कर हम अखंड आनंद को सहज ही पाकर धन्य हो सकते हैं। वैसे मां नर्मदा की गोद में समाए वेगड़ जी को छह साल हो गए, पर जब तक मां नर्मदा जीवन रेखा बन जीवन देती रहेंगी…तब तक वेगड़ जी हमारे जीवन में बने रहेंगे। महान चित्रकार आचार्य नंदलाल बोस के यशस्वी शिष्य अमृतलाल वेगड़ की कूची और कलम दोनों पर मां नर्मदा ने अपार कृपा की है। जितने सुंदर उनके चित्र हैं, उतने ही रंग शब्द चित्रों में हैं। वेगडज़ी ने नर्मदा माई की परिक्रमा पर तीन पुस्तकें लिखी हैं- सौन्दर्य की नदी नर्मदा, अमृतस्य नर्मदा और तीरे-तीरे नर्मदा। उनके इस खजाने को नर्मदा त्रयी भी कहते हैं।
अमृतलाल वेगड़ (जन्म- 3 अक्टूबर,1928, जबलपुर; मृत्यु- 6 जुलाई, 2018) प्रसिद्ध साहित्यकार, चित्रकार और नर्मदा प्रेमी थे। वे नर्मदा नदी समग्र के प्रमुख थे। उन्होंने नर्मदा संरक्षण में उल्लेखनीय भूमिका निभाई थी। अमृतलाल वेगड़ ने पर्यावरण संरक्षण के लिए उल्लेखनीय काम किया। उन्होंने नर्मदा की 4 हज़ार किलोमीटर की पदयात्रा की। उन्होंने नर्मदा अंचल में फैली बेशुमार जैव विविधता से दुनिया को परिचित कराया। 1977 में करीब 50 साल की उम्र में नर्मदा परिक्रमा करनी शुरू की, जो 2009 तक जारी रही।
अमृतलाल वेगड़ का जन्म 3 अक्टूबर, 1928 को जबलपुर, मध्य प्रदेश में हुआ था। मूलतः गुजराती संस्कृति से ताल्लुक रखने वाले वेगड़ ने 1948 से 1953 तक शांति निकेतन में कला का अध्ययन किया। नर्मदा नदी के प्रति उनकी गहरी आस्था थी। यही वजह है कि उनकी नर्मदा वृतांत की तीन पुस्तकें हिंदी, गुजरती, मराठी, बंगला, अंग्रेज़ी और संस्कृत में प्रकाशित हुईं। गुजराती और हिंदी में ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ और ‘महापंडित राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार’ जैसे अनेक राष्ट्रीय पुरस्कार से उन्हें सम्मानित किया गया था। उनके द्वारा लिखित ‘सौंदर्य की नदी नर्मदा’ प्रसिद्ध पुस्तक है।
2018 में ‘माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय’ के दीक्षांत समारोह में भारत के तत्कालीन उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू द्वारा मानक उपाधि अमृतलाल वेगड़ को प्रदान की गयी थी। उनका स्वास्थ्य खराब होने के कारण जबलपुर में उनके निवास पर एक सादे समारोह में उपाधि प्रदान की गयी थी।
अमृतलाल वेगड़ ने अपनी ‘नर्मदा परिक्रमा’ को परंपरागत परक्रमावासी की तरह पूरा नहीं किया। उन्होंने अखण्ड नहीं बल्कि खंड-खंड में मां नर्मदा की परिक्रमा की है। प्रत्येक यात्रा के बाद अगली नर्मदा परिक्रमा के लिए बालसुलभ व्याकुलता को वेगड़ जी के भीतर और उनके लेखन में महसूस किया जा सकता है। अपनी यात्रा का उद्देश्य स्पष्ट करते हुए वेगड़ जी ने लिखा भी है- “यह यात्रा मैं ‘स्वांत: सुखाय’ कर रहा हूँ, तो वह अर्द्धसत्य होगा। मैं चाहता हूँ कि जो सुख मुझे मिल रहा है, वह दूसरों को भी मिले। मैं ‘स्वांत: सुखाय’ भी चल रहा हूँ और ‘बहुजन सुखाय’ भी चल रहा हूँ”। और उनके इसी भाव ने उनकी खंड-खंड नर्मदा यात्रा का अखंड अमृतमयी आनंद हम सबकी झोली में उड़ेल दिया है…।