Roof of the World: सुमेरु पर्वत का अद्भुत सौंदर्य 

Roof of the World: सुमेरु पर्वत का अद्भुत सौंदर्य 

 

सुमेरु (पामीर) पर्वत के बारे में मुझे सातवीं कक्षा में पढ़ाया गया था। लूदर्स कॉनवेंट स्कूल, ग़ाज़ीपुर, उत्तर प्रदेश में छत्तीसगढ़ के रायगढ़ की रहने वाली हमारी टीचर, जो एक क्रिश्चियन नन भी थीं, भूगोल को बहुत मनोरंजक ढंग से पढ़ाया करती थीं। उनका पढ़ाया हुआ आज भी स्मरण है। उन्होंने बताया था कि पामीर का पहाड़ दुनिया की छत कहलाता है। उन्होंने बताया था कि विश्व की सबसे ऊँची अनेक पर्वत शृंखलाएँ पामीर के पहाड़ों में आकर मिलती हैं। यह अत्यधिक ऊँचा क्षेत्र बहुत दुर्गम भी है तथा इसके शिखरों को देखना लगभग असंभव है।

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63 वर्ष पूर्व मेरी टीचर द्वारा कही गई बात विधि के संयोग से मेरे जीवन में साकार हो गई। 15 दिन पूर्व मैं नई दिल्ली से ताशकंद की फ़्लाइट में था। दुर्भाग्यवश मेरी सीट के ठीक बाहर जहाज़ का विंग होने के कारण मैं नीचे देख नहीं पा रहा था। मैंने पहले से ही अनुमान लगा लिया था कि हमारा जहाज़ पामीर के ऊपर से अवश्य जाएगा। इसलिए मैं अपनी सीट के आगे लगे मैप ट्रैकर पर आंखें गड़ाए हुए था। पामीर आने का इसी नक़्शे से आभास होने पर मैं तत्काल आगे किसी अपरिचित सहयात्री की विंडों पर गया तथा नीचे देखा तो मैं विस्मित रह गया। सुमेरू या पामीर की पर्वत श्रृंखलाओं को मुझे इतने निकट से तथा आश्चर्यजनक स्पष्टता के साथ देखने का अद्भुत अवसर मिल रहा था। आकाश बिलकुल साफ़ था और धूप पूरी खिली हुई थी। हमारा विमान हिमाच्छादित शिखरों के ऊपर बिलकुल निकट से उड़ रहा था। शिखरों के साथ- साथ ही बहुत गहरी घाटियाँ तथा घाटियों में बनी प्राकृतिक छोटी- बड़ी झीलें स्पष्ट दिख रही थीं।मैं बहुत देर तक सहयात्री की विंडों से यह कल्पनातीत दृश्य निहारता रहा। मुझे दिव्य आनंद का अनुभव हो रहा था। काफ़ी देर बाद मुझे फ़ोटो लेने का ध्यान आया।

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भौगोलिक दृष्टि से पामीर की पर्वत शृंखलाएँ मध्य एशिया और भारतीय उप-महाद्वीप के बीच में है। हिमालय, तिआन शान, काराकोरम, कुनलुन और हिंदूकुश जैसी बड़ी पर्वत श्रृंखलाओं का जंक्शन पामीर है। पामीर विश्व के सबसे ऊँचे क्षेत्रों में है। पामीर का अधिकांश भाग ताजिकिस्तान में है। दक्षिण में यह अफ़ग़ानिस्तान में हिन्दूकुश और पाकिस्तान के चित्राल को छूता है। पूरब में चीन की सीमा में कॉंगुर ताग से लगा हुआ है तथा उत्तर में इसका एक भाग किर्गिस्तान में है।

भूगर्भ विज्ञान के अनुसार लगभग छह करोड़ वर्ष पूर्व भारतीय प्लेट उत्तर की ओर खिसकते हुए यूरेशिया की स्थिर प्लेट से जाकर टकरायी। भारतीय प्लेट लगातार यूरेशियाई प्लेट को धक्का लगाती रही और अगले दो तीन करोड़ वर्षों में पामीर सहित हिमालय तथा अन्य पर्वत श्रृंखलाओं का निर्माण हुआ। भारतीय प्लेट आज भी यूरेशियाई प्लेट को धक्का दे रही है, इसलिए ये सभी पर्वत शृंखलाएँ लगातार ऊँची होती जा रही हैं।

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भारतीय पुराणों में पामीर पर्वत को हिमालय का पश्चिमोत्तर भाग माना गया है। महाभारत में इसे हिमावत क्षेत्र कहा गया है। महाकवि कालिदास तथा प्राचीन भारतीय भूगोलवेत्ताओं ने इसे सुमेरु पर्वत के नाम से संबोधित किया है। प्राचीन बौद्ध और जैन धार्मिक साहित्य में इसे मेरू तथा सुमेरु नाम से पुकारा गया है। सुमेरु पर्वत को बौद्ध और जैन धर्म में पवित्र पांच शिखर वाला पर्वत कहा गया है। बौद्ध इसे सभी भौतिक और आध्यात्मिक ब्रह्मांडों का केंद्र मानते है।

ऐसे सांस्कृतिक, भौगोलिक तथा आध्यात्मिक महत्व के नैसर्गिक सुंदरता वाले पर्वत का मैं केवल संयोगवश ही भव्य और लोकातीत दर्शन कर सका।

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एन. के. त्रिपाठी

एन के त्रिपाठी आई पी एस सेवा के मप्र काडर के सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। उन्होंने प्रदेश मे फ़ील्ड और मुख्यालय दोनों स्थानों मे महत्वपूर्ण पदों पर सफलतापूर्वक कार्य किया। प्रदेश मे उनकी अन्तिम पदस्थापना परिवहन आयुक्त के रूप मे थी और उसके पश्चात वे प्रतिनियुक्ति पर केंद्र मे गये। वहाँ पर वे स्पेशल डीजी, सी आर पी एफ और डीजीपी, एन सी आर बी के पद पर रहे।

वर्तमान मे वे मालवांचल विश्वविद्यालय, इंदौर के कुलपति हैं। वे अभी अनेक गतिविधियों से जुड़े हुए है जिनमें खेल, साहित्यएवं एन जी ओ आदि है। पठन पाठन और देशा टन में उनकी विशेष रुचि है।