थर्ड जेण्डर की सकारात्मक और सम्मानजनक पहचान दिलाने न्यायाधीश आए आगे,किए परिचय पत्र जारी

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रतलाम से रमेश सोनी की रिपोर्ट

Ratlam MP: सामाजिक ढांचे में जेंडर या लैंगिक पहचान एक महत्वपूर्ण मुद्दा है.इस पहचान को सामाजिक मान्यताओं ने दिनों- दिन पुख्ता किया और समाज जेंडर को स्त्री-पुरुष की ‘बाइनरी’ में ही देखने व समझने का अभ्यस्त हो गया. इस अभ्यास के कारण ही समाज में थर्ड जेंडर को लेकर जो धारणा बनी वह उनकी पहचान पर भी संकट पैदा करने वाली थी क्योंकि वह प्रचलित बाइनरी से बाहर थे.

इस पहचान को लेकर थर्ड जेंडर समुदाय लम्बे समय से संघर्ष कर रहा था.यह संघर्ष सामाजिक और संवैधानिक दोनों स्तरों पर चल रहा था. पहचान के लिए समाज की स्वीकृति और संवैधानिक मान्यता दोनों बहुत जरुरी थे. यह ‘मैं भी हूँ’ की लड़ाई थी जिसे कम ही लोगों ने समझा लेकिन 15 अप्रैल 2014 को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए फैसले ने थर्ड जेंडर को संवैधानिक अधिकार दे दिए और सरकार को निर्देशित किया कि वह इन अधिकारों को लागू करने की प्रक्रिया को सुनिश्चित करे.उसके बाद 5 दिसंबर, 2019 को राष्ट्रपति से मंजूरी मिलने के बाद थर्ड जेंडर के अधिकारों को क़ानूनी मान्यता मिल गई.

इसी तारतम्य में रतलाम शहर के थर्ड जेंडर को पहचान दिलाने के लिए प्रधान जिला न्यायाधीश राजेश कुमार गुप्ता के मार्गदर्शन में जिला न्यायाधीश तथा सचिव जिला विधिक सेवा प्राधिकरण अरूण श्रीवास्तव तथा जिला विधिक सहायता अधिकारी सुश्री पूनम तिवारी द्वारा थर्ड जेंडर समुदाय के कल्याण हेतु नालसा (तस्करी और वाणिज्यिक यौन शोषण पीड़ितों के लिए विधिक सेवाएं) योजना, 2015 अंतर्गत पैरालीगल वालेंटियर्स विजय शर्मा के सहयोग से थर्ड जेण्डर के पहचान पत्र (आधार कार्ड) एवं सर्टिफिकेट बनवाये जाने संबंधी कार्य किया गया।

जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, रतलाम की पहल पर एक थर्ड जेंडर को पहचान पत्र एवं सर्टिफिकेट कलेक्टर कुमार पुरूषोत्तम द्वारा जारी किया गया। जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, रतलाम में संबंधित थर्ड जेंडर को बुलाकर उसे उसका थर्ड जेण्डर पहचान पत्र एवं सर्टिफिकेट अरूण श्रीवास्तव एवं सुश्री पूनम तिवारी द्वारा वितरण किया गया। जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, रतलाम की पहल से थर्ड जेण्डर को उनके पहचान पत्र जारी हुए जिससे उन्हें एक सकारात्मक पहचान और समाज में एक सम्मानजनक स्थान प्राप्त हो सकेगा।